आटा, चावल, दाल, तेल, साबुन, बिस्किट जैसे हर रोज़ की ज़रूरत के सामान की भारी किल्लत हो सकती है। लॉकडाउन के कारण अब स्टोर के स्टॉक में पहले से पड़े सामान ख़त्म हो रहे हैं और ऊपर से सप्लाई सही से हो नहीं रही है। ये समस्याएँ किसी एक स्तर पर नहीं है, बल्कि फ़ैक्ट्रियों में कच्चा माल जाने से लेकर, ढुलाई, निर्माण, मज़दूरों की कमी और आपूर्ति करने तक में हैं। अब इसका असर यह हुआ है कि जो स्टॉक पड़े हुए भी थे उससे बड़े शहरों में तो फिर भी कुछ समय के लिए आपूर्ति ठीकठाक होती रही, लेकिन छोटे शहरों और कस्बों में इसकी दिक्कतें पहले से ही आ रही हैं। अब बड़े शहरों में भी ऐसी दिक्कत आ सकती है। क्या ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कोई तैयारी है?
लॉकडाउन यानी पाबंदी लगाए जाने के बाद जो सबसे ज़्यादा दिक्कत आई है वह है मज़दूरों का फ़ैक्ट्रियों में नहीं जाना। अधिकतर फ़ैक्ट्रियों में काम बंद होने से जब मज़दूर अपने घर जाने लगे तो जिन फ़ैक्ट्रियों में काम चल भी रहा था उसके मज़दूर भी साथ-साथ अपने घर के लिए निकल गए। यही कारण है कि लॉकडाउन के 4-5 दिन बाद तक हाइवे पर हज़ारों लोगों को बड़े-बड़े शहरों से निकलते देखा गया। अब ज़ाहिर है मज़दूर नहीं होंगे तो उत्पादन कैसे होगा। सिर्फ़ मशीनें ही तो सबकुछ नहीं कर सकती हैं न! मशीनों को चलाने के लिए भी तो आदमी की ज़रूरत होगी। फिर उसकी देखरेख, कच्चे माल को मंगाने, तैयार सामान को भेजने जैसे काम के लिए तो लोगों की ज़रूरत होगी।
इससे सिर्फ़ फ़ैक्ट्रियों में उत्पादन ही प्रभावित नहीं हुआ है, बल्कि सामान को एक से दूसरी जगह पहुँचाने में भी दिक्कतें आ रही हैं। ट्रक पर सामान लोड करने और उतारने से लेकर वितरकों और खुदरा दुकानदारों तक सामान पहुँचाने में बड़ी समस्या है।
लॉकडाउन से पहले जिन हज़ारों ट्रकों पर सामान पहले से लदा हुआ था वे भी एक से दूसरी जगह नहीं जा पा रहे हैं। अधिकतर राज्यों की सीमाओं को सील कर दिया गया है और इस कारण हज़ारों ट्रक जहाँ के तहाँ फँसे हुए हैं। इसका नतीजा यह निकल रहा है कि सामान आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। इससे दो बड़ी दिक्कतें आ रही हैं।
- उपयोग किए जाने वाले तैयार सामान नहीं पहुँच रहे हैं।
- कच्चे माल भी ट्रकों में हैं, उत्पादन ही प्रभावित हो रहा है।
क्या इन दिक्कतों को टाला नहीं जा सकता है? आख़िर इन ट्रकों को क्यों रोका गया है? क्या केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन में बेहतर तालमेल हो तो क्या हज़ारों ट्रकों को फँसने की नौबत आती? क्या इन्हें यह नहीं पता कि ट्रकों की आवाजाही रोक दी जाएगी तो फिर लोगों की हर रोज़ की ज़रूरत की चीजें आम लोगों तक कैसे पहुँचेंगी? जब ट्रकों में कच्चे माल ही फँसे रहेंगे तो फ़ैक्ट्रियों में उत्पादन कैसे होगा?
रिपोर्ट है कि क़रीब 75 फ़ीसदी दाल मिलें बंद हैं क्योंकि न तो मज़दूर उपलब्ध हैं और न ही कच्चा माल। डाबर इंडिया और नेस्ले जैसी कंपनियाँ भी मज़दूरों की कमी से काम करने की स्थिति में नहीं हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में डाबर इंडिया के कार्यकारी निदेशक (ऑपरेशंस) शाहरुख ख़ान ने कहा, 'ज़रूरी चीजों के उत्पादन के लिए हम अपने कर्मचारियों को विनिर्माण इकाइयों तक पहुँचने में मदद करने के लिए विशेष बसें तैनात कर रहे हैं। हालाँकि, कच्चे माल और पैकिंग सामग्री की उपलब्धता बड़ी चुनौती है। ट्रकों की सीमित आवाजाही है। इन वजहों से उत्पादन में दिक्कतें आ रही हैं।'
नेस्ले इंडिया ने भी कहा कि उत्पादन और वितरण फ़ैक्ट्रियों में या तो काफ़ी कम हो गए हैं या फिर पूरी तर बंद हो गए हैं।
हाल के दिनों में मेट्रो कैश एंड कैरी की थोक बिक्री में 50 फ़ीसदी की कमी आ गई है। कंपनी के सीईओ और एमडी अरविंद मेदिरत्ता ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'हमारे पास अगले दो हफ्तों के लिए हमारे स्टोर पर सभी आवश्यक खाद्य पदार्थों - चावल, दाल, अटा का भंडार है। और फिर हमारे पास भी इसकी कमी हो जाएगी।' मेडिकल स्टोर पर भी कुछ दवाइयों की कमी पड़ने लगी है। दिल्ली स्थित ग्लोब मेडिकोस के फार्मेसी प्रबंधक डीके चौधरी ने कहा, 'हम विटामिन सी और मल्टीविटामिन ब्रांडों की कमी देख रहे हैं।'
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