सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पटाखों पर संपूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है और ग्रीन क्रैकर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द करते हुए यह कहा है जिसमें कोरोना महामारी के बीच वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए सभी पटाखों की बिक्री, खरीद और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया था। ग्रीन क्रैकर्स अपेक्षाकृत कम प्रदूषण फैलाने वाली चीजों का इस्तेमाल कर बनाए गए पटाख होते हैं।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। शीर्ष अदालत की उस विशेष पीठ में न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और अजय रस्तोगी शामिल थे। ये याचिकाएँ पटाखा बनाने वाली कंपनियों की ओर से दायर की गई थीं।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए संभावना तलाशने को कहा कि प्रतिबंधित पटाखों और इससे संबंधित चीजों का आयात नहीं किया जाए। पटाखों से जुड़े एक अन्य मामले में शुक्रवार को शीर्ष अदालत के एक आदेश का ज़िक्र करते हुए हुए न्यायाधीशों ने कहा, 'पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं हो सकता है। दुरुपयोग को रोकने के लिए तंत्र को मज़बूत किया जाए।'
बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने काली पूजा, दिवाली और छठ के दौरान रात 8 से 10 बजे के बीच केवल ग्रीन क्रैकर्स फोड़ने की अनुमति दी थी, लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पिछले शुक्रवार को ही 31 दिसंबर तक ग्रीन क्रैकर्स सहित सभी पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। हालाँकि, आदेश में यह भी कहा गया था कि प्रतिबंध मोम और तेल वाले दीयों पर लागू नहीं होगा।
कलकत्ता उच्च न्यायालय का आदेश एक पर्यावरण कार्यकर्ता द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया था।
उस याचिका में उत्सवों के दौरान पटाखों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी ताकि लोगों को स्वच्छ और साँस लेने लायक हवा के अधिकार की रक्षा की जा सके।
इसके बाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि काली पूजा, दिवाली समारोह के साथ-साथ छठ पूजा, जगधात्री पूजा, गुरु नानक के जन्मदिन और क्रिसमस और नए साल की पूर्व संध्या व समारोहों के दौरान किसी भी प्रकार के पटाखे का उपयोग नहीं हो।
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