11 राजनीतिक दलों की ओर से याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने बेंच को उनकी दलीलों से संतुष्ट नहीं होते देख याचिका वापस लेने की मांग की।
सिंघवी ने कुछ आंकड़ों के जरिए अदालत में दलील दी कि केंद्र द्वारा नियंत्रित जांच एजेंसियों को राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ 'चुनिंदा और टारगेट' तरीके से तैनात किया जा रहा है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि गिरफ्तारी और रिमांड के साथ-साथ जमानत के लिए उचित दिशा-निर्देशों होने चाहिए। लेकिन ऐसा दिशा निर्देश किसी भी केंद्रीय जांच एजेंसी के लिए नहीं है।
गिरफ्तारी और रिमांड के लिए, याचिकाकर्ताओं ने पुलिस अधिकारियों द्वारा ट्रिपल टेस्ट (यह निर्धारित करना कि क्या किसी व्यक्ति के साथ फ्लाइट रिस्क है, सबूतों के साथ छेड़छाड़ की उचित आशंका या गवाहों को प्रभावित / डराने की आशंका है) के आवेदन की मांग की है।
सवाल उठाया गया कि ईडी के अधिकारी और अदालतें गंभीर शारीरिक हिंसा को छोड़कर किसी भी संज्ञेय अपराध में व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए एक जैसा नजरिया रखती हैं। कोर्ट को सलाह दी गई कि जहां ये शर्तें संतुष्ट नहीं करतीं, जांच की मांगों को पूरा करने के लिए निश्चित घंटों पर पूछताछ या अधिक से अधिक हाउस अरेस्ट जैसे विकल्पों का इस्तेमाल होना चाहिए। इसी तरह, जमानत के संबंध में, याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि 'जमानत नियम के रूप में, जेल अपवाद के रूप में' सिद्धांत का सभी अदालतों द्वारा पालन किया जाना चाहिए, विशेष रूप से उन मामलों में जहां अहिंसक अपराध का आरोप लगाया गया है और जमानत से इनकार केवल वहीं किया जाना चाहिए जहां उपरोक्त ट्रिपल-टेस्ट संतुष्ट करता हो।
याचिका में दिए गए आंकड़े
मांगों को पुख्ता करने के लिए, याचिका में बताया गया है कि छापे पर कार्रवाई की दर यानी छापे के परिणामस्वरूप दर्ज की गई शिकायतें 2005-2014 में 93 प्रतिशत से घटकर 2014-2022 में 29 प्रतिशत हो गई हैं। इसके अलावा, यह दावा किया गया है कि मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम, 2002 के तहत अब तक केवल 23 अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया है। यहां तक कि पीएमएलए के तहत ईडी द्वारा दर्ज मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है (वित्त वर्ष 2013-14 में 209, 2020-21 में 981 और 2021-22 में 1,180)।याचिका में यह भी कहा गया है कि 2004-14 के बीच, सीबीआई ने जिन 72 राजनीतिक नेताओं की जांच की, उनमें से 43 (60 प्रतिशत से कम) उस समय के विपक्ष से थे। अब यह आंकड़ा बढ़कर 95 प्रतिशत से अधिक हो गया है। ईडी की जांच में भी यही पैटर्न दिखाई देता है। जांच किए गए राजनेताओं की कुल संख्या में से विपक्षी नेताओं का अनुपात 54 प्रतिशत (2014 से पहले) से बढ़कर 95 प्रतिशत (2014 के बाद) हो गया है।
वकील सिंघवी का तर्क
उन आंकड़ों को रेखांकित करने के बाद, वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया: स्पष्ट रूप से सीबीआई और ईडी की नजर तिरछी है। यह असमानता विपक्ष को पूरी तरह से मौका नहीं दे रही है। यह दिन की तरह स्पष्ट है क्योंकि केवल विपक्ष ही इन केसों को लड़ रहा है। हम भारत में कोई लंबित मामला नहीं चाहते हैं। न ही अभी चल रही किसी चल रही जांच में हस्तक्षेप करने या प्रभावित करने के लिए यह याचिका लगाई है। हम केवल दिशा-निर्देशों की मांग कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कानून की तिरछी नजर का हमारे लोकतंत्र पर भारी प्रभाव पड़ता है।इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा -
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क्या आप कह रहे हैं कि इन आँकड़ों के कारण जाँच से छूट मिलनी चाहिए? नागरिकों के रूप में, राजनेता सभी एक ही कानून के अधीन हैं।
-चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, सुप्रीम कोर्ट, 5 अप्रैल 2023 सोर्सः लाइव लॉ
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देश नहीं दे सकता है। एक या एक से अधिक मामलों के साथ वापस आएं, जहां एक विशिष्ट उदाहरण या एजेंसियों का उपयोग चुनिंदा नेताओं को टारगेट करने के लिए किया गया हो। हमने जो कानून तय किया है, उसके आधार पर हम तथ्यों के संबंध में सामान्य सिद्धांत विकसित कर सकते हैं। इस तरह के विशिष्ट तथ्यों के अभाव में सामान्य दिशानिर्देश तैयार करने का प्रयास करना 'खतरनाक' होगा।
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सामूहिक गिरफ्तारी लोकतंत्र के लिए खतरा है। यह अधिनायकवाद का संकेत है। प्रक्रिया सजा बन जाती है।
-अभिषेक मनु सिंघवी, वरिष्ठ वकील, 5 अप्रैल 2023 सोर्सः लाइव लॉ
चीफ जस्टिस ने इसके जवाब में कहा - जब आप कहते हैं कि विपक्ष के लिए जगह (स्पेस) सिकुड़ रही है, तो इलाज भी उसी राजनीतिक स्पेस में है। कोर्ट नहीं।
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