एकनाथ शिंदे के ख़िलाफ़ लड़ाई में उद्धव ठाकरे के लिए बुरी ख़बर आई है। सुप्रीम कोर्ट ने आज चुनाव आयोग को यह तय करने पर रोकने से इनकार कर दिया कि असली शिवसेना किसकी है। इसके साथ ही संविधान पीठ ने उद्धव ठाकरे समूह द्वारा दायर स्टे की अर्जी खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस मामले में सुनवाई कर रही थी। इस मामले की सुनवाई करने वाली 5 जजों की बेंच में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, एम.आर. शाह, कृष्णा मुरारी, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा शामिल थे।
उद्धव ठाकरे के धड़े ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि चुनाव आयोग को असली शिवसेना और उसके चुनाव चिह्न पर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले समूह के दावे पर फ़ैसला करने से रोका जाए।
टीम ठाकरे ने शिंदे के नेतृत्व वाले बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। यदि विधायक अयोग्य ठहराए जाते हैं, तो शिंदे की सरकार मुश्किल में पड़ सकती है। ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट से अयोग्यता के सवाल का समाधान होने तक असली शिवसेना पर कोई भी निर्णय लेने पर रोक लगाने के लिए कहा था।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार जून महीने में गिरने और उनके पूर्व सहयोगी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार बनाने के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा। बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने वाले शिंदे ने तख्तापलट के बाद उद्धव के पिता बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना पर दावा किया है। शिंदे ने 30 जून को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, इसमें बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस उप-मुख्यमंत्री बने हैं।
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने उद्धव समूह के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पूछा कि शिंदे ने असली शिवसेना के रूप में अपने दावे के साथ भारत के चुनाव आयोग से किस हैसियत से संपर्क किया।
सिब्बल ने जवाब दिया कि क्योंकि शिंदे अयोग्य होने के बाद चुनाव आयोग से संपर्क नहीं कर सकते। उन्होंने आगे कहा, 'मैंने चुनाव आयोग जाने वाले व्यक्ति की स्थिति को चुनौती दी थी।'
पीठ ने आगे पूछा कि चुनाव आयोग की किन शक्तियों का इस्तेमाल किया गया है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सिब्बल ने जवाब दिया कि शिंदे का दावा चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश और सादिक अली मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के आधार पर है। उन्होंने कहा कि जब सादिक अली और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया तब दसवीं अनुसूची को संविधान में पेश किया जाना बाकी था।
उन्होंने तर्क दिया कि शिंदे ने अयोग्यता का सामना किया है क्योंकि उनका कृत्य 'स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ने' के तौर पर है। इसके अलावा उन्होंने दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)(बी) के तहत पार्टी व्हिप का भी उल्लंघन किया है।
पीठ ने जब पूछा कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता का सिंबल आदेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा? सिब्बल ने जवाब दिया कि अयोग्य सदस्य को चुनाव आयोग से संपर्क करने की अनुमति देना लोकतंत्र के लिए बुरा है। वरिष्ठ वकील ने कहा, 'तब किसी भी सरकार को बाहर किया जा सकता है और उनका अपना अध्यक्ष होगा जो अयोग्यता पर फैसला नहीं करेगा।'
उन्होंने कहा कि जब कोई निर्वाचित सदस्य अपनी ही सरकार के विरुद्ध राज्यपाल को लिखता है तो यह स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ने के बराबर होता है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में चुनाव आयोग को कोई फ़ैसला नहीं करने को कहा था। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के गुटों के बीच चल रही सियासी खींचतान और शिवसेना पर कब्जे जैसे कई अहम मसलों पर फ़ैसला होना था। 3 जजों की बेंच ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि इस पूरे संकट के दौरान सामने आए मुद्दों को संवैधानिक बेंच को भेजा जाएगा।
बेंच ने चुनाव आयोग को मौखिक निर्देश दिया था कि असली शिवसेना किसकी है, इसे लेकर ठाकरे और शिंदे गुटों के बीच चल रही तकरार के मामले में वह अभी कोई फैसला नहीं ले।
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