हिरासत में ज़्यादतियों की लगातार आती रही ख़बरों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस थानों के साथ ही सीबीआई, ईडी, एनआईए जैसी जाँच करने वाली एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएँ। ये कैमरे नाइट विज़न वाले होने चाहिए और इसके साथ ही ऑडियो रिकॉर्डिंग भी हो। सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में ज़्यादतियों को रोकने के लिए ये क़दम उठाने का फ़ैसला दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय पंजाब में कस्टोडियल यातना के एक मामले की सुनवाई कर रहा था और तभी यह सामने आया कि इन कार्यालयों में 2018 में आदेश के अनुसार सुरक्षा कैमरे नहीं लगाए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके निर्देश संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को ध्यान में रखते हुए थे।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला अहम इसलिए है कि देश में पुलिस के रवैये पर सवाल उठते रहे हैं। हिरासत में मौत के मामलों से ये सवाल और गंभीर हो जाते हैं। क्योंकि हिरासत में मौत के मामले अक्सर देश के अलग-अलग हिस्सों से आते रहे हैं। इसकी पुष्टि आधिकारिक तौर पर भी होती है। हालाँकि आधिकारिक आँकड़ों में मौत की वजह अलग-अलग बताई जाती रही है।
अब नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आँकड़ों को ही देखें। इसके अनुसार, 2018 में पुलिस हिरासत में 70 लोगों की मौत हुई। इनमें से 12 मौतें तमिलनाडु में हुई थीं। देश में यह राज्य दूसरे स्थान पर रहा था। गुजरात में सबसे अधिक 14 ऐसी मौतें हुई थीं।
इन 70 मौतों में से केवल तीन मौत के मामलों में दिखाया गया था कि पुलिस द्वारा शारीरिक हमला किया गया था। 70 में से 32 मामलों में मृत्यु के कारण के रूप में बीमारी दर्ज की गई थी। इन मौतों में से 17 को आत्महत्या के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया था। सात मामलों में बताया गया कि उनको चोटें पुलिस हिरासत में लिए जाने से पहले लगी थीं। सात की मौत हिरासत से भागते समय- एक सड़क दुर्घटना में या जाँच से जुड़ी यात्रा के दौरान, जबकि बाक़ी तीन की मौत अन्य कारणों से हुई। 'हिंदुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी एनएचआरसी में 2019 में पुलिस हिरासत में कम से कम 117 लोगों की मौत की रिपोर्ट दर्ज की गई।
जस्टिस आरएफ़ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि ये कैमरे उन-उन जगहों पर ज़रूर लगाए जाने चाहिए जिससे कि सभी प्रवेश और निकास द्वार, मुख्य द्वार, सभी लॉक-अप, सभी गलियारे, लॉबी, रिसेप्शन क्षेत्र और लॉक-अप रूम के बाहर के क्षेत्र जद में हों।
बेंच ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक पुलिस स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएँ।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्योंकि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, राजस्व खुफिया विभाग और गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय सहित अधिकांश जाँच एजेंसियाँ अपने कार्यालयों में पूछताछ करती हैं, सीसीटीवी उन सभी कार्यालयों में 'अनिवार्य रूप से स्थापित' होना चाहिए जहाँ इस तरह की पूछताछ होती है और आरोपी रखे जाते हैं।
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बता दें कि कोर्ट ने मानवाधिकारों के हनन की जाँच के लिए पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश पहले ही दिया था।
आदेश में कहा गया है कि यदि ज़रूरी हो तो साक्ष्य के लिए वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग को 18 महीने तक रखना होगा। एक स्वतंत्र पैनल समय-समय पर रिकॉर्डिंग के लिए किसी भी मानवाधिकार उल्लंघन की जाँच और निगरानी के लिए कह सकता है। डाटा को कम से कम एक साल तक तो रखना ही होगा।
राज्यों को छह सप्ताह के भीतर आदेश का पालन करने के लिए समयसीमा के साथ कार्य योजना दाखिल करने के लिए कहा गया है। इसी तरह के आदेश केंद्र सरकार के अधीन आने वाली एजेंसियों को भी दिया गया है कि उन एजेंसियों के कार्यालय में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएँ।
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