बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया यानी बीसीसीआई ने कुछ प्रशासनिक बदलाव करने का फ़ैसला किया। इसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और वह बुधवार को स्वीकार कर ली गई। उस याचिका में राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच अनिवार्य कूलिंग-ऑफ अवधि को ख़त्म करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद अब क्रिकेट संघ के अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह के पद पर बने रहने का रास्ता साफ़ हो गया है।
पहले उन पदों पर वे लगातार नहीं बने रह सकते थे। इसके लिए कूलिंग-ऑफ़ अवधि होनी चाहिए थी। यानी लगातार दो कार्यकाल तक वे पद पर नहीं रह सकते थे। लेकिन अब प्रशासकों को लगातार दो कार्यकाल के बाद ही कूलिंग-ऑफ़ पीरियड से गुजरना होगा।
यह नया नियम अब बीसीसीआई के साथ ही राज्य क्रिकेट संघों पर भी लागू होगा। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पदाधिकारियों का लगातार 12 साल का कार्यकाल हो सकता है जिसमें राज्य संघ में छह साल और बीसीसीआई में छह साल शामिल हैं। गांगुली और शाह दोनों का बीसीसीआई में तीन साल का कार्यकाल जल्द ही समाप्त होने वाला था।
बीसीसीआई में आने से पहले गांगुली जहां बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन में पदाधिकारी थे, वहीं जय शाह ने गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन में काम किया था।
शीर्ष अदालत ने बीसीसीआई से यह भी पूछा था कि वह आईसीसी में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए 70 साल से अधिक उम्र के लोगों को क्यों रखना चाहता है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच कूलिंग-ऑफ़ अवधि को समाप्त नहीं किया जाएगा क्योंकि 'कूलिंग ऑफ़ अवधि का उद्देश्य यह है कि कोई निहित स्वार्थ नहीं होना चाहिए'।
बीसीसीआई द्वारा अपनाए गए संविधान के अनुसार, एक पदाधिकारी को राज्य संघ या बीसीसीआई या संयुक्त रूप से दोनों में लगातार दो कार्यकालों के बीच तीन साल की कूलिंग-ऑफ़ अवधि से गुजरना पड़ता था।
रिपोर्ट के अनुसार बीसीसीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शुरुआत में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से कहा कि देश में क्रिकेट का खेल काफी सुव्यवस्थित है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने कहा है कि जब उप-नियम कार्यात्मक तैयारियों के लिए बनाए जाएंगे, तो अदालत की अनुमति से कुछ बदलाव किए जा सकते हैं।
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