जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की तीन जजों की बेंच ने भूषण के ट्वीट पर फ़ैसला सुनाया।
अदालत में सुनवाई के दौरान अभिव्यक्ति की आज़ादी की प्रशांत भूषण की दलीलें नहीं चलीं। भूषण ने कहा था कि वह अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग कर रहे हैं और अदालत के कामकाज के बारे में अपनी राय दे रहे हैं। उन्होंने कहा था कि उनकी यह राय 'न्याय में बाधा' नहीं है जिससे अवमानना की कार्रवाई की जाए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पाँच अगस्त को इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि इस पर फ़ैसला बाद में सुनाया जायेगा। कोर्ट ने इस मामले में प्रशांत भूषण को 22 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। नोटिस में अदालत ने पूछा था कि न्यायपालिका के ख़िलाफ़ गंभीर आरोप लगाने वाले ट्वीट के लिए क्यों न उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए। इस पर प्रशांत भूषण ने कहा था कि ‘सीजेआई सुप्रीम कोर्ट नहीं हैं।'
अपने 132 पेज के जवाबी एफ़िडेविट में प्रशांत भूषण ने कई केसों का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि पिछले चार सीजेआई के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक मूल्यों, नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कानून के शासन की रक्षा के अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल रहा है।
प्रशांत भूषण ने अपने दोनों ट्वीट्स का समर्थन करते हुए लिखा था कि उनके ये विचार पिछले छह सालों में हुई घटनाओं की अभिव्यक्ति हैं। भूषण ने लिखा, ‘यह अवमानना नहीं हो सकती। अगर सुप्रीम कोर्ट मेरे ट्वीट्स को अवमानना मानता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर बिना कारण का प्रतिबंध होगा और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को भी रोकने की तरह होगा।’
बता दें कि कोर्ट ने प्रशांत भूषण के दो ट्वीट के संबंध में नोटिस दिया था। उनका एक ट्वीट 27 जून को पोस्ट किया गया था जिसमें उन्होंने पिछले चार सीजेआई का ज़िक्र किया था। भूषण ने ट्वीट किया था, जब भविष्य के इतिहासकार पिछले 6 वर्षों को देखेंगे कि औपचारिक आपातकाल के बिना भी भारत में लोकतंत्र कैसे नष्ट कर दिया गया है तो वे विशेष रूप से इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को चिह्नित करेंगे, और विशेष रूप से अंतिम 4 प्रधान न्यायाधीशों की भूमिका।'
उनका दूसरा ट्वीट सीजेआई को लेकर था जिसमें एक तसवीर में वह नागपुर में एक हार्ले डेविडसन सुपरबाइक पर बैठे हुए दिखे थे। यह ट्वीट 29 जून को पोस्ट किया गया था। इस ट्वीट में भूषण ने कहा था कि ऐसे समय में 'जब नागरिकों को न्याय तक पहुँचने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित करते हुए वह सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन मोड में रखते हैं, चीफ़ जस्टिस ने हेलमेट या फ़ेस मास्क नहीं पहना'।
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