क्या इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारियों और इसके आँकड़ों को चुनाव आयोग ने नहीं रखा है? जब सुप्रीम कोर्ट ने उससे जानकारी मांगी तो उसने आख़िर ऐसा क्यों कह दिया कि 2019 के बाद से उसके पास इसकी जानकारी नहीं है? ये सवाल इसलिए भी काफी अहम हैं कि चुनाव आयोग के पास आँकड़े तब नहीं हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने उसे 2019 में ही आँकड़े रखने के लिए कहा था। चुनावी बॉन्ड की पारदर्शिता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।
चुनावी बॉन्ड को लेकर ऐसी अजीबो-गरीब स्थिति को देखते हुए ही कई याचिकाएँ दाखिल की गई हैं और सरकार की मंशा पर सवाल उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंगलवार को उन याचिकाओं की जांच शुरू की, जिन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना को एक अपारदर्शी प्रणाली बताते हुए राजनीतिक दलों के चंदे के ब्योरे तक पहुंच के अधिकार की मांग की है। याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि यह चुनावी बॉन्ड चुनावों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि चुनाव आयोग चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा और राजनीतिक चंदा देने वाले के बारे में पूरी और अद्यतन जानकारी रखने के लिए बाध्य है। अदालत ने चुनाव आयोग के उस दावे को खारिज कर दिया कि ऐसे आँकड़े को केवल 2019 तक रखा जाना था।
दरअसल, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के 2019 के उसके एक अंतरिम फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा कि आँकड़े 2019 के लिए ही तैयार किए जाने थे। तब राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में चुनावी बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने के मामलों पर सुनवाई हुई थी। 12 अप्रैल, 2019 को अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने सभी राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों की जानकारी सहित चुनावी चंदे की जानकारी एक सीलबंद कवर में ईसीआई को देने का एक अंतरिम आदेश दिया था। यह इन चुनावी बांडों की वैधता को चुनौती देने वाली लंबित याचिकाओं पर फैसला होने तक एक अंतरिम उपाय के रूप में किया गया था। इस तरह की जानकारी जमा करने की समय सीमा 30 मई, 2019 तय करते हुए आदेश में कहा गया था, 'हर राजनीतिक दल द्वारा अब तक प्राप्त चुनावी बांड के संबंध में सभी जानकारी तुरंत पेश किया जाए।'
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने जब चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड से जुड़ी राजनीतिक फंडिंग पर ताज़ा जानकारी मांगी तो चुनाव आयोग के वकील ने जवाब दिया कि उनके पास केवल 2019 तक चुनावी बॉन्ड की जानकारी है।
इस पर पीठ ने चुनाव आयोग के वकील अमित शर्मा से कहा, 'सिर्फ 2019 तक ही क्यों? यह एक सतत आदेश था। यह अंतरिम आदेश था और इसे अंतिम आदेश तक जारी रहना था। आपको आज तक ऐसा डेटा रखना चाहिए था।'
शीर्ष अदालत ने शर्मा से पूछा कि क्या चुनाव आयोग की समझ यह है कि अदालत के 12 अप्रैल, 2019 के आदेश में 30 मई, 2019 तक ही जानकारी पेश करने की बात कही गई है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पीठ ने पूछा कि क्या आपने 2019 के बाद का डेटा नहीं रखा है? इस पर शर्मा ने कहा कि वह डेटा की उपलब्धता पर ईसीआई से सलाह लेंगे और जवाब देंगे। वकील ने पीठ से कहा, 'मैं निर्देश लूंगा और वापस आऊंगा।'
सुनवाई के दौरान मंगलवार को वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और वकील प्रशांत भूषण, शादान फरासत और निज़ाम पाशा ने तर्क दिया कि इसने राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदा और भारतीय व विदेशी कंपनियों द्वारा गुमनाम फंडिंग के द्वार खोल दिए हैं। भूषण ने याचिकाकर्ताओं के समूह की ओर से राजनीतिक फंडिंग के स्रोत को जानने के लोगों के अधिकार पर जोर देते हुए दलीलें दीं। भूषण 2017 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर और गैर-लाभकारी कॉमन कॉज द्वारा संयुक्त रूप से दायर एक याचिका के लिए उपस्थित हुए। भूषण ने दावा किया कि चुनावी बॉन्ड योजना में गोपनीयता खंड लोगों के फंडिंग के स्रोत के बारे में जानकारी पाने के अधिकार को खत्म कर देता है। यह अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत नागरिकों का मौलिक अधिकार है।
बता दें कि चुनावी बॉन्ड पर सुनवाई शुरू होने से पहले केंद्र ने कहा है कि भारत के नागरिकों को किसी भी राजनीतिक दल की फंडिंग के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत जानकारी का अधिकार नहीं है। भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर बयान में यह बात कही है।
अटॉर्नी जनरल ने कहा- उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास के बारे में जानने के नागरिकों के अधिकार को बरकरार रखने वाले निर्णयों का यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानकारी का भी अधिकार है। वे फैसले चुनावी उम्मीदवारों के बारे में सूचित करने और जानने के संदर्भ में थे। वो फैसले नागरिकों के "दोषमुक्त उम्मीदवारों को चुनने की पसंद के खास मकसद" को पूरा करते हैं।
चुनावी बॉन्ड योजना लाने के लिए केंद्र ने दो वित्त अधिनियमों- वित्त अधिनियम, 2017 और वित्त अधिनियम, 2016 के माध्यम से कई संशोधन किए थे, दोनों को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था।
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