अजमेर में ऐतिहासिक 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' मस्जिद को मंदिर तोड़कर बनाए जाने का दावा किया गया है। कुछ दिन पहले ही अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग वाली याचिका दायर की गई है। इससे पहले यूपी के संभल में एक मस्जिद को लेकर ऐसा ही दावा किया गया और सर्वे भी शुरू कर दिया गया। हिंसा तक हुई। इससे पहले काशी, मथुरा में भी मस्जिदों पर दावे किए जा रहे हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसे कई मामले लगातार आ रहे हैं। आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध वकील दुष्यंत दवे ने एक लेख लिखा है। इसमें उन्होंने हाल के ऐसे मामलों पर तीखी टिप्पणी की है और कहा है कि क्या अदालतें अपनी ही अवमानना कर सकती हैं, ऐसा संभव है?
दुष्यंत दवे क्यों लिखते हैं 'क्या अदालतें अपनी ही अवमानना भी कर सकती हैं?'
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- 3 Dec, 2024
एक के बाद एक मस्जिदों पर आख़िर क्यों दावे किए जा रहे हैं? पहले आख़िर ऐसा अलग क्या था कि देश भर में अलग-अलग मस्जिदों पर इस तरह से दावे नहीं किए जा रहे थे?

दरअसल, उन्होंने जो यह टिप्पणी की है वह इस संदर्भ में है कि संसद द्वारा 1991 में अधिनियमित उपासना स्थल अधिनियम संविधान के मौलिक मूल्यों की रक्षा करता है। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में लिखा है कि यह कानून दो अनिवार्य मानदंड लागू करता है: धारा 3 द्वारा किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाई गई है। यह कानून 15 अगस्त, 1947 को मौजूद हर पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को संरक्षित करता है। इसका सीधा मतलब है कि आजादी के समय जिस धार्मिक स्थल की जो पहचान रही हो, वही उसकी क़ानूनी स्थिति होगी। यानी इसको लेकर इतिहास के किसी कालखंड को पलटकर कुछ भी दावा नहीं किया जा सकता है।