घृणा-अपराध हत्या और मॉब लिंचिंग के लिए आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है। इसके प्रावधान क़ानून संशोधनों में प्रस्तावित हैं। इसके अलावा इसमें आतंकवाद की परिभाषा में भी बदलाव किया गया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी, 1860; दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को बदलने के लिए लोकसभा में तीन आपराधिक कानून विधेयकों के संशोधित संस्करण मंलगवार को पेश किए हैं।
आईपीसी की जगह आने वाली भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 में मॉब लिंचिंग के लिए सजा का प्रावधान करती है जो आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है। अगस्त में पेश किए गए इसके पहले संस्करण में विधेयक में सात साल से लेकर मौत तक की सज़ा का प्रावधान था।
विधेयक ने पहली बार मॉब लिंचिंग और घृणा अपराध हत्या की एक अलग श्रेणी बना दी थी। यह अपराध उन मामलों से जुड़ा है जब पाँच या अधिक व्यक्तियों की भीड़ नस्ल, जाति, समुदाय या व्यक्तिगत आस्था के आधार पर हत्या करती है।
आतंकवाद के अपराध के तहत संहिता में अब भारत की रक्षा या किसी अन्य सरकारी मक़सद से विदेश में खड़ी की गई संपत्ति को नुकसान पहुंचाना या नष्ट करना भी शामिल है। पहले संस्करण में यह केवल भारत के भीतर सरकारी या सार्वजनिक सुविधाओं, सार्वजनिक स्थानों, निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने तक ही सीमित था। भारत सरकार, राज्य सरकारों या विदेशी सरकारों को किसी भी गतिविधि को करने या करने से रोकने के लिए किसी व्यक्ति को पकड़ने या अपहरण को भी आतंकवाद के दायरे में लाया गया है।
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