एक अमेरिकी फोरेंसिक फर्म की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि एक्टिविस्ट स्टैन स्वामी के कंप्यूटर में कथित तौर पर कई आपत्तिजनक दस्तावेज डाले गए थे। स्टैन स्वामी अब दुनिया में नहीं हैं। उन्हें 2020 में कथित आतंकी लिंक के लिए गिरफ्तार किया गया था। 84 वर्षीय स्टैन स्वामी ने महीनों तक अदालतों में अपनी बेगुनाही का दावा किया और चिकित्सा देखभाल की गुहार लगाई, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। क़रीब आठ महीने बाद जुलाई 2021 में हिरासत में ही अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी।
अमेरिका का प्रतिष्ठित अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने ख़बर दी है, "अब मैसाचुसेट्स स्थित डिजिटल फोरेंसिक फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग ने उनके कंप्यूटर की एक इलेक्ट्रॉनिक कॉपी की जाँच की है। कंपनी की नई रिपोर्ट के अनुसार, इसका निष्कर्ष है कि एक हैकर ने उनके डिवाइस में घुसपैठ की और साक्ष्य प्लांट किए। डिफेंस टीम का कहना है कि विश्लेषण इस बात का अधिक प्रमाण है कि स्वामी और उनके सह-आरोपियों को एक ऐसे मामले में फंसाया गया था, जो नागरिक समाज और प्रमुख आलोचकों के खिलाफ भारत सरकार की कार्रवाई की मिसाल है।'
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, स्टैन स्वामी के वकीलों ने इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की जाँच कराने के लिए आर्सेनल कंसल्टिंग से संपर्क किया था। रिपोर्ट के अनुसार कंपनी का कहना है कि तथाकथित 'माओवादी वाले पत्रों' सहित लगभग 44 दस्तावेज़ एक अज्ञात साइबर हमलावर द्वारा डाले गए थे। हमलावर ने स्टैन स्वामी के कंप्यूटर तक पांच साल- 2014 से 2019 तक- पहुँच बनाई थी।
बता दें कि आदिवासियों के बीच काम करने वाले झारखंड के स्टैन स्वामी को भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किया गया था। इस कार्रवाई की व्यापक निंदा हुई थी। आलोचना तब और बढ़ गई जब कोरोना से संबंधित जटिलताओं के कारण कुछ महीनों के भीतर उनकी मृत्यु हो गई। फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु की खबर पर संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ दोनों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
एनआईए ने दावा किया था कि वह 2018 में महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में दंगे भड़काने के लिए 15 अन्य लोगों के साथ एक साजिश का हिस्सा थे।
आर्सेनल की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टैन स्वामी लगभग पांच वर्षों के लिए ठीक जून 2019 में पुलिस द्वारा उनके डिवाइस को जब्त किए जाने तक एक व्यापक मैलवेयर अभियान के निशाने पर थे। उस दौरान, हैकर का उनके कंप्यूटर पर पूरा नियंत्रण था, बिना उनकी जानकारी के दर्जनों फाइलों को एक छिपे हुए फोल्डर में छोड़ा गया।
वाशिंगटन पोस्ट ने ख़बर दी है कि इस मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया।
आर्सेनल की यह रिपोर्ट स्टैन स्वामी के खिलाफ एनआईए के आरोपों को कमजोर करती है। क्योंकि एनआईए के आरोप स्टैन स्वामी और कथित माओवादी नेताओं के बीच कथित इलेक्ट्रॉनिक पत्राचार के इर्द-गिर्द केंद्रित है।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार आर्सेनल का कहना है कि, उन्हें 'कोई सबूत नहीं मिला जो यह बता सके कि... दस्तावेजों को कभी भी स्टैन स्वामी के कंप्यूटर पर किसी भी वैध तरीके से इंटरैक्ट किया गया था।'
रिपोर्ट में पाया गया था कि एक अज्ञात हैकर ने रोना विल्सन के कंप्यूटर पर 30 से अधिक दस्तावेज और सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर पर कम से कम 14 आपत्तिजनक पत्र लगाए थे। आर्सेनल के अनुसार, तीनों - स्टेन स्वामी, सुरेंद्र गाडलिंग और रोना विल्सन - को एक ही हैकर ने निशाना बनाया था।
स्टैन स्वामी, सुरेंद्र गाडलिंग और रोना विल्सन उन 16 आरोपियों में से एक हैं जिन्हें भीमा कोरेगाँव के मामले में आरोपी बनाया गया है। ये सभी 16 आरोपी किसी न किसी रूप में ग़रीब आदिवासियों के लिए काम करते रहे हैं या थे।
भीमा कोरेगाँव मामला
हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं और वे वहाँ बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। 2018 को 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे थे। इस दौरान हिंसा हो गई थी। इस हिंसा का आरोप एल्गार परिषद पर लगाया गया। ऐसा इसलिए कि 200वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले एल्गार परिषद की बैठक हुई थी। इसी हिंसा के मामले में कार्रवाई की गई और इस मामले में जुड़े होने को लेकर जन कवि वर वर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, वरनों गोंजाल्विस और गौतम नवलखा को भी अभियुक्त बनाया गया है।
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