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सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, देशविरोधी नारे लगाना राजद्रोह नहीं है

आपने पढ़ा होगा कि जेएनयू में कन्हैया और 9 अन्य के ख़िलाफ़ धारा 124 (क) के तहत देशद्रोह का मामला दायर किया गया है। आपने ग़लत पढ़ा है। धारा 124 (क) देशद्रोह के बारे में नहीं है, राजद्रोह (यानी सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह) के बारे में है और इस धारा में जो लिखा हुआ है, उसके आधार पर फ़ेसबुक या कहीं भी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ लिखने वाले हर व्यक्ति पर राजद्रोह (मीडिया के शब्दों में देशद्रोह) का मुक़दमा चलाया जा सकता है। मैं मज़ाक नहीं कर रहा। आप नीचे पढ़ लें कि धारा 124 (क) में क्या लिखा हुआ है। क़ानूनी भाषा है जिसको मैंने हूबहू कॉपी-पेस्ट किया है इसलिए आपको पढ़ने-समझने में थोड़ी परेशानी आ सकती है लेकिन मुझे उम्मीद है कि उसका सार आप समझ लेंगे। सुविधा के लिए मैंने नीचे अंग्रेज़ी में भी वही बात दे दी है।
जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा, या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपण द्वारा, या अन्यथा, विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घॄणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का प्रयत्न करेगा या अप्रीति प्रदीप्त करेगा, या प्रदीप्त करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

Whoever by words, either spoken or written, or by signs, or by visible representation, or otherwise, brings or attempts to bring into hatred or contempt, or excites or attempts to excite disaffection towards, the Government established by law in India,  shall be punished with imprisonment for life, to which fine may be added, or with imprisonment which may extend to three years, to which fine may be added, or with fine.

एक वाक्य में कहा जा सकता है कि यदि आप लिखकर, बोलकर या किसी भी तरीक़े से देश की सरकार के ख़िलाफ़ घृणा फैलाएँगे या उसका अपमान करेंगे तो आप पर राजद्रोह का मुक़दमा चल सकता है।

तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि वह हर व्यक्ति जो आज मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बोल या लिख रहा है, और दूसरे शब्दों में उसके प्रति घृणा फैला रहा है, वह राजद्रोही है? या फिर इस सरकार के आने से पहले जो मनमोहन सरकार की आलोचना कर रहे थे, क्या वे सब-के-सब राजद्रोही थे?

इस सवाल का जवाब देने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस सेक्शन से वाक् स्वतंत्रता (Freedom of Expression) का हनन न हो, तीन स्पष्टीकरण दिए गए हैं। नीचे वे स्पष्टीकरण पढ़ें। अगर पूरी तरह समझ में न आएँ तो भी कोई बात नहीं। इनका मोटा-मोटा अर्थ यह है कि आप सरकारी नीतियों और कामों की आलोचना कर सकते हैं बशर्ते आपकी आलोचना से सरकार के प्रति ‘अप्रीति, अपमान या घृणा’ आदि नहीं पैदा हों। 

  • स्पष्टीकरण 1 -अप्रीति पद के अंतर्गत अभक्ति और शत्रुता की समस्त भावनाएँ आती हैं।
  • स्पष्टीकरण 2 -घॄणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उनको परिवर्तित कराने की दृष्टि से अननुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं। 
  • स्पष्टीकरण 3 -घॄणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार की प्रशासनिक या अन्य क्रिया के प्रति अननुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध गठित नहीं करतीं।
  • Explanation 1- The expression "disaffection" includes disloyalty and all feelings of enmity. 
  • Explanation 2- Comments expressing disapprobation of the measures of the Government with a view to obtain their alteration by lawful means, without exciting or attempting to excite hatred, contempt or disaffection, do not constitute an offence under this section. 
  • Explanation 3- Comments expressing disapprobation of the administrative or other action of the Government without exciting or attempting to excite hatred, contempt or disaffection, do not constitute an offence under this section.

दायरा व्यापक

यानी कुछ भी बोलें, लिखें, चित्र बनाएँ या इशारा करें, यदि उससे ‘विधि द्वारा स्थापित’ सरकार के ख़िलाफ़ अभक्ति और शत्रुता झलकती है तो आप राजद्रोही हैं। यदि आपके बोलने-लिखने में सरकार के प्रति घृणा का भाव है और उससे घृणा फैलती है तो आप राजद्रोही हैं।

इस धारा का दायरा कितना व्यापक है और वह इसीलिए है कि यह अंग्रेज़ों के ज़माने से चली आ रही है। उन्होंने इसे ऐसा इसीलिए बनाया था कि सरकार की आलोचना करनेवाले किसी भी व्यक्ति को आसानी से जेल में बंद किया जा सके।

दुख की बात है कि हमारे काले अंग्रेज़ों ने आज़ादी के बाद भी इसे बनाए रखा है और जब भी उनपर आलोचना की मार पड़ती है, वे भी इसका उपयोग कर किसी को भी जेल में डालने से परहेज़ नहीं करते। रोचक तथ्य यह है कि ब्रिटेन ने 2009 में राजद्रोह से जुड़े इस क़ानून को समाप्त कर दिया है।

कन्हैया कुमार का मामला

आपमें से कुछ लोग कहेंगे कि कन्हैया और उनके साथियों ने महज़ सरकार की आलोचना नहीं की थी, देश को तोड़ने के नारे लगाए थे और उन पर देशद्रोह, सॉरी राजद्रोह का तो मुक़दमा बनता ही है।

देशविरोधी नारे लगाने के कारण कन्हैया पर राजद्रोह का मुक़दमा बनता है या नहीं, यह समझने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट के दो फ़ैसलों की शरण लेनी होगी। चूँकि राजद्रोह से जुड़ी यह धारा इतनी व्यापक है और सरकारों ने बात-बात में इसका इस्तेमाल किया है इसलिए बार-बार मामला कोर्ट में जाता है जहाँ सरकार की हर बार हार होती है। राजद्रोह क्या है और किन मामलों में किसी पर राजद्रोह संबंधी इस धारा के तहत मामला चलाया जा सकता है, इसपर सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण निर्णय हैं। एक है केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) और दूसरा है 1995 में देशविरोधी और अलगाववादी नारों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला।

protest against nation not sedition, says supreme court - Satya Hindi

केदारनाथ सिंह मामला

केदारनाथ सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि 124 (क) के तहत किसी के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला तभी बनता है जबकि किसी ने सरकार के ख़िलाफ़ हिंसा की हो या हिंसा के लिए उकसाया हो। (फ़ैसला पढ़ें)

1995 का मामला था दो लोगों का जिनपर आरोप था कि उन्होंने खालिस्तान ज़िंदाबाद और हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए थे। कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि केवल नारे लगाने से राजद्रोह का मामला नहीं बनता क्योंकि उससे सरकार को कोई ख़तरा पैदा नहीं होता। (फ़ैसला पढ़ें)

अब आप इन दोनों फ़ैसलों के आलोक में कन्हैया और उनके साथियों के आचरण को तौलिए।

  • 1. क्या उन्होंने देशविरोधी नारे लगाए? पता नहीं, शायद कुछ ने लगाए, कुछ ने नहीं लगाए। लेकिन यदि एक बार के लिए मान भी लें कि उन सभी ने ये नारे लगाए तो क्या उनपर राजद्रोह का मुक़दमा बनता है। 1995 के दो जजों की बेंच के अनुसार तो नहीं बनता।
  • 2. क्या उन्होंने नारे लगाकर या अपने भाषणों द्वारा हिंसा को बढ़ावा दिया? अभी तक तो ऐसा कोई प्रूफ़ नहीं आया कि उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ शस्त्र उठाने की बात कही हो या लोगों को हिंसा के लिए भड़काया हो।
यानी सुप्रीम कोर्ट के इन दो फ़ैसलों के मद्देनज़र कन्हैया और उनके साथियों पर 124 (क) राजद्रोह का मामला बनता ही नहीं है। लेकिन पुलिस है कि अपने आक़ाओं को ख़ुश करने के लिए उसने और धाराओं के साथ-साथ 124 (क) के तहत अभियोग लगाया है। और यह तब जबकि सितंबर 2016 में यानी सिर्फ़ सवा दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर कह चुका है कि देश में 124 (क) के तहत कोई मामला तभी दर्ज़ हो जब वह केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य केस में फ़ैसले में दी गई परिभाषा के अनुरूप हो। यानी यदि कोई सरकार के ख़िलाफ़ हिंसा कर रहा हो या हिंसा को बढ़ावा दे रहा हो, या क़ानून-व्यवस्था में बिगाड़ पैदा कर रहा हो, तभी उसपर राजद्रोह का मुक़दमा चले।
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नीरेंद्र नागर
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