जस्टिस सीकरी ने लंदन में सीएसएटी पोस्टिंग का प्रस्ताव ठुकराकर बहुत अच्छा किया। कोई भी व्यक्ति जो अपने चरित्र पर कीचड़ उछाला जाना बर्दाश्त नहीं कर सकता, वह ऐसा ही करता। उम्मीद है कि आलोक वर्मा मामले में उनपर जो आरोप लगा था कि चार साल की इस पोस्टिंग के लालच में उन्होंने मोदी यानी सरकारी पक्ष का साथ दिया था, वह समाप्त नहीं तो धुँधला अवश्य होगा। हालाँकि कहनेवाले तो अब भी कहेंगे कि चूँकि मामला प्रकाश में आ गया इसलिए जस्टिस सीकरी ने यह प्रस्ताव ठुकराया है वरना वे इसे लपक ही लेते।
फ़ैसला अगर ख़िलाफ़ है, कह दो, जज बेईमान है
- विचार
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- 27 Jan, 2019

जस्टिस सीकरी ने लदंन में सीएसएटी पोस्टिंग का प्रस्ताव ठुकराकर बहुत अच्छा किया। कोई भी व्यक्ति जो अपने चरित्र पर कीचड़ उछाला जाना बर्दाश्त नहीं कर सकता, वह ऐसा ही करता।
मुझे लगता है, जस्टिस ए. के. सीकरी के साथ मीडिया के एक पक्ष ने घोर अन्याय किया है और इससे आज के दौर की पत्रकारिता और सोशल मीडिया का बहुत ही चिंताजनक पहलू सामने आता है जहाँ मीडिया का एक तबक़ा जिसे सोशल मीडिया का भी व्यापक सपोर्ट है, सरकार या अदालत के हर फ़ैसले को रंगीन चश्मे से देखता है, ख़ासकर तब जब वह उसके पक्ष में न आया हो। पिछले दिनों जब सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने एससी-एसटी ऐक्ट में मौजूद ‘शिकायत के साथ ही गिरफ़्तारी’ वाले प्रावधान को रद्द कर दिया था तो कहा गया था वे सवर्ण हैं, इसीलिए ऐसा फ़ैसला दिया है। हाल ही में अयोध्या मामले में बनी बेंच में मुस्लिम जज न होने की भी शिकायत कुछ लोगों ने की है जिनको लगता है कि इससे फ़ैसला मुसलमानों के विरुद्ध आएगा।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश