भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे पर किए गए ट्वीट्स के कारण अदालत की अवमानना की कार्रवाई झेल चुके वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने एक और धमाकेदार ट्वीट किया है। भूषण का ये ट्वीट भी सीजेआई पर है और इसमें उन्होंने कान्हा पार्क के भ्रमण के दौरान मध्य प्रदेश की सरकार द्वारा उन्हें विशेष चॉपर दिए जाने पर सवाल उठाए हैं।
भूषण ने बुधवार को किए एक ट्वीट में कहा है कि सीजेआई बोबडे मध्य प्रदेश सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए चॉपर में कान्हा नेशनल पार्क और अपने होम टाउन नागपुर गए। भूषण ने कहा कि ऐसे वक्त में सीजेआई ने चॉपर की सेवा ली जब मध्य प्रदेश में अयोग्य ठहराए गए बाग़ी विधायकों का मामला उनके सामने लंबित है और मध्य प्रदेश सरकार का सत्ता में रहना इस मामले में फ़ैसले पर निर्भर करता है।
The CJI avails a special chopper provided by the MP Govt (authorised by the CM) for a visit to Kanha National Park& then to his home town in Nagpur, while an important case of disqualification of defecting MLAs of MP is pending before him. Survival of MP govt depends on this case pic.twitter.com/XWkYVjHkvH
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) October 21, 2020
जस्टिस बोबडे रविवार को मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में स्थित कान्हा नेशनल पार्क पहुंचे थे और मंगलवार को वहां से लौटे थे।
मध्य प्रदेश में इस साल मार्च में कांग्रेस विधायकों की बग़ावत के कारण कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई थी। इस मामले में कांग्रेस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी पहचान रखने वाले भूषण के इस ताज़ा ट्वीट के बाद यह बहस शुरू हो गई है कि क्या इस मामले में भी अदालत उन्हें अवमानना का नोटिस जारी करेगी। सवाल यह भी है कि क्या सीजेआई किसी राज्य की सरकार से इस तरह की सुविधा लेने के लिए अधिकृत हैं या नहीं।
हालांकि इस मामले में टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों का राज्यों में मेहमान की तरह स्वागत होता है और उन्हें रहने, कहीं आने-जाने और सुरक्षा की सुविधा दी जाती है। सीजेआई बोबडे को एमपी सरकार द्वारा चॉपर दिए जाने को लेकर कहा गया है कि कुछ महीने पहले बोबडे शनि शिंगणापुर गए थे और फिर नागपुर लौटे थे, तब भी उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने चॉपर उपलब्ध कराया था, इसलिए इस मामले में सवाल उठाने का कोई तुक नहीं है।
प्रशांत भूषण ने जून में सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश को लेकर दो ट्वीट लिखे थे। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की थी। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था।
माफ़ी मांगने से किया था इनकार
प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया था। कोर्ट में दाखिल किए गए अपने हलफ़नामे में प्रशांत भूषण ने कहा था कि उनके बयान सद्भावनापूर्ण थे और अगर वह माफ़ी मांगेंगे तो यह उनकी अंतरात्मा और उस संस्थान की अवमानना होगी जिसमें वो सर्वोच्च विश्वास रखते हैं।सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाया नहीं जा सकता है। भूषण ने कहा, ‘मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि सुप्रीम कोर्ट कमजोरों और शोषितों के लिए उम्मीद की आख़िरी किरण है और मेरा इरादा कभी भी न्यायपालिका को अपमानित करने का नहीं था लेकिन अदालत के अपने रिकॉर्ड से भटक जाने के कारण मैं अपनी पीड़ा को व्यक्त करना चाहता था।’
दोषी करार दिए जाने के बाद अदालत ने उन्हें दंड के रूप में 1 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। भूषण ने कहा था, ‘मैंने जो कहा है, सुप्रीम कोर्ट ने तो इसे अवमानना कहा है लेकिन मुझे लगता है कि यह हर नागरिक का सबसे अहम कर्तव्य है। जहां ग़लत हो रहा है, उसके ख़िलाफ आवाज़ उठानी चाहिए।’ हाल ही में भूषण ने अदालत की अवमानन मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करते हुए कहा था कि उन्होंने ज़ुर्माना भर दिया, इसका मतलब यह नहीं कि उन्होंने अदालत के फ़ैसले को स्वीकार कर लिया है।
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