इस संबंध में काउंटिंग एजेंटों के लिए फरवरी 2019 में जारी गाइडलाइंस में यही बात कही गई है कि किसी भी हालत में पोस्टल बैलेट की गिनती पूरा करने से पहले ईवीएम गिनती के सभी राउंड के नतीजे घोषित नहीं किए जाने चाहिए। हालांकि अब भी पोस्टल बैलेट की गिनती पहले शुरू होती है लेकिन ईवीएम के वोटों की गिनती से इसे पहले पूरा करना जरूरी नहीं है।
चुनाव आयोग ने 2019 के आम चुनाव के बाद ही इस नियम को बदल दिया। क्योंकि पोस्टल बैलेट की संख्या बढ़ गई थी। इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ईटीपीबीएस) यानी इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के जरिए पोस्टल बैलेट भारी तादाद में आने लगे। साथ ही पांच मतदान केंद्रों के वीवीपैट पर्ची की रैंडम (अचानक) गिनती भी जरूरी हो गई। इन दोनों कामों में समय लगने लगा तो उनकी प्राथमिकता ही बदल दी गई।
चुनाव आयोग ने 18 मई, 2019 को अपने पहले के दिशानिर्देश को वापस ले लिया कि ईवीएम की गिनती डाक मतपत्रों की गिनती पूरी होने के बाद ही की जाए। उसने अपने नए निर्देश में कहा, ईवीएम की गिनती "पोस्टल बैलेट की गिनती के बावजूद जारी रह सकती है"। आयोग ने यह भी कहा कि ईवीएम की गिनती पूरी होने के बाद वीवीपैट पर्चियों की गिनती की जा सकती है।
इस तरह आयोग ने पोस्टल बैलेट के अनिवार्य रूप से दोबारा गिनती के नियम को भी बदल दिया। पहले का नियम था कि अगर जीत का अंतर पोस्टल बैलेट की कुल संख्या से कम था, तो पोस्टल बैलेट फिर से गिने जाते थे। अब, गिनती के दौरान अमान्य करार दिए गए पोस्टल बैलेट का फिर से सत्यापन किया जाएगा, अगर जीत का अंतर ऐसे मतपत्रों की संख्या से कम है।
चुनाव आयोग को 2019 के आम चुनाव में 22.71 लाख पोस्टल बैलेट मिले थे। यानी कुल 60.76 करोड़ वैध मतों का 0.37%। लेकिन इस बार पोस्टल बैलेट की तादाद बढ़ने की उम्मीद है। सुरक्षा बलों में कार्यरत मतदाताओं या ऐसे कर्मचारी जो अपने गृह राज्यों के बाहर तैनात हैं, इनके डाक मत तो पहले से ही प्राप्त हो रहे हैं। लेकिन आयोग ने अक्टूबर 2019 में 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और विकलांग लोगों के लिए भी पोस्टल बैलेट की व्यवस्था कर दी। अब वरिष्ठ नागरिकों की आयु सीमा बढ़ाकर 85 वर्ष कर दी गई है। कोविड-19 रोगियों के पोस्टल बैलेट को इसी तरह की सूची में शामिल किया गया है।
आयोग के बार-बार बदलते निर्देश की वजह से ही विपक्ष चिंतित है। चुनाव आयोग को दिए गए ज्ञापन में विपक्ष ने बिहार का उल्लेख किया है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत का अंतर राज्य के लिए 12,700 वोटों का था, जबकि डाक मतपत्रों की संख्या 52,000 थी। कोविड के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव था। इस पर बिहार में काफी हंगामा भी हुआ था। बिहार में ईवीएम के वोटों की गिनती के बाद पोस्टल बैलेट पेपर गिने गए थे।
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