नागरिकता संशोधन क़ानून पर देश भर में मचे बवाल के साथ किसी राजनीतिक दल या नेता का नाम उभरा हो या नहीं लेकिन एक संगठन का नाम बहुत तेजी से इस दौरान लिया गया। इस संगठन का नाम है पीएफ़आई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया। यूपी पुलिस ने कई जिलों में इस संगठन से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया है। पीएफ़आई क्या है, इसका नाम क्यों लिया जा रहा है और यह कैसे काम करता है, इस पर बात करते हैं।
काट दी थी प्रोफ़ेसर की हथेली
किसी संगठन को समझने के लिए उस संगठन की विचारधारा यानी आइडियोलॉजी को समझना बहुत ज़रूरी होता है। पीएफ़आई को समझने के लिए दस साल पहले की एक सत्य घटना का उल्लेख ज़रूरी है। यह घटना केरल की है। पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) नामक मुसलिम संगठन के कार्यकर्ताओं ने 4 जुलाई, 2010 को प्रोफ़ेसर टी.जे. जोसेफ़ के दाहिने हाथ की हथेली काट दी थी। पीएफ़आई मलयालम प्रोफ़ेसर जोसेफ़ से नाराज था। उसका मानना था कि जोसेफ़ ने कॉलेज की परीक्षा में कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी। इसका बदला लेने के लिए पीएफ़आई के कार्यकर्ताओं ने चर्च से लौटते समय सरेआम जोसेफ़ के दाहिने हाथ की हथेली काट दी थी। इस मामले में कोर्ट ने पीएफ़आई के 14 लोगों को दोषी करार दिया था। यह संगठन अपनी विचारधारा को लेकर कितना कट्टर है, यह इस बात का आईना भर है
पिछले कुछ सालों में अपने कथित कारनामों की वजह से पीएफ़आई पूरे देश में चर्चा में है। विशेषज्ञों का मानना है कि पीएफ़आई सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है।
आईएस से भी मिलाया हाथ?
सामान्य रूप से यह संगठन मुसलिम युवा, मुसलिम कल्याण और मुसलिम एकीकरण की बात करता है। लेकिन विभिन्न एजेंसियों की ख़ुफ़िया रिपोर्टें इस संगठन के मूल में हिंसा और गिरोहबंदी होने की पुष्टि करती हैं। बताने वाले तो यहां तक बताते हैं कि आजकल पीएफ़आई ने कुख़्यात आतंकवादी संगठन आईएसआईएस से हाथ मिला लिया है। कुछ लोग इसकी तुलना लश्कर-ए-तैयबा चीफ़ हाफिज़ सईद के संगठन जमात-उद दावा से भी करते हैं। जमात भी इसी तरह मानव कल्याण की बात करता है लेकिन हकीक़त में यह लश्कर और जैश-ए-मुहम्मद के बीज का अंकुरण केंद्र है। इसीलिए पाकिस्तान सहित कई देशों में जमात-उद दावा पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
लेकिन वर्तमान में केवल झारखंड ऐसा अकेला राज्य है जिसने पीएफ़आई पर प्रतिबंध लगा रखा है और वह भी दूसरी बार। पहली बार लगे प्रतिबंध को कोर्ट के आदेश पर हटाना पड़ा था मगर पिछले साल ही झारखंड सरकार ने पीएफ़आई पर फिर से प्रतिबंध लगा दिया। सीएए यानी नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में नाम आने के बाद अब पीएफ़आई पर देश भर में प्रतिबंध का ख़तरा मंडराने लगा है। यही वजह है कि पीएफ़आई खुद पर लगे आरोपों का बचाव सार्वजनिक रूप से करने लगा है।
सिमी से प्रभावित हैं पीएफ़आई कार्यकर्ता
झारखंड में पीएफ़आई पर फिर से प्रतिबंध लगाने के लिए की गई ख़ुफ़िया विभाग की सिफारिश की रिपोर्ट की एक प्रति इस पत्रकार के पास भी मौजूद है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़, पीएफ़आई की शुरुआत केरल में साल 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ़्रंट (एनडीएफ़) (केरल) के उतराधिकारी के रूप में हुई। इसके अधिकांश सदस्य स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) की विचारधारा से प्रभावित थे। सरकारी कार्रवाई में सिमी के सिमट जाने के बाद पीएफ़आई को ख़ूब बढ़ावा मिला। 2010 में पहली बार आरोप लगा था कि पीएफ़आई का संबंध सिमी से है। तर्क यह था कि पीएफ़आई का राष्ट्रीय अध्यक्ष अब्दुल रहमान सिमी का राष्ट्रीय सचिव रह चुका है। इसका एक और चेहरा अब्दुल हमीद भी झारखंड में सिमी का राज्य सचिव रह चुका है।
एनआईए कर रही है जांच
कहा तो यह भी जाता है कि सिमी के ज्यादातर लोग अब पीएफ़आई में सक्रिय हैं। पीएफ़आई की सक्रियता केरल में प्रमाणित हो चुकी है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के पास कई मामले हैं जिनमें पीएफ़आई की भूमिका के बारे में जांच हो रही है। सिमी और पीएफ़आई में मूल फर्क भी यही है। कहा जाता है कि सिमी उत्तर से दक्षिण पहुंचा था जबकि पीएफ़आई दक्षिण से शुरू होकर उत्तर में फैल रहा है। केरल वालापुरम, कन्नूर कांड संख्या 1010/17 में चार पीएफ़आई कार्यकर्ता आरोपी हैं। इनसे पूछताछ में पता चला है कि पीएफ़आई के लोग आईएसआईएस से प्रभावित हैं। इनके कई लोग अवैध तरीके से सीरिया जाते हुए पकड़े भी जा चुके हैं और कुछ लोग गुपचुप तरीके से सीरिया जा भी चुके हैं।
पीएफ़आई का वर्तमान में 12 राज्यों में व्यापक संगठन है और 23 राज्यों में सक्रियता है। राजनीतिक तौर पर पीएफ़आई भोजन के अधिकार, बोलने के अधिकार और काले क़ानून का विरोध करता है। लेकिन सरकारी सूत्रों के मुताबिक़ यह सिर्फ़ दिखावा है।
पीएफ़आई की कार्यशैली
यह संगठन शारीरिक कक्षाएं, प्रशिक्षण शिविर आदि का आयोजन करता है। कहते हैं कि यह ब्रेन वॉश की कक्षाएं भी आयोजित करने लगा है। केरल में इसका उदय 2006 में एक राजनीतिक दल के वारिस के रूप में हुआ था। आंध्र प्रदेश, राजस्थान और अन्य कई राज्यों में इसका विलय अलग-अलग संगठनों के साथ हो गया। बताते हैं कि पीएफ़आई की सोच आधुनिक है और यह नकाब की जगह स्कार्फ़ को प्राथमिकता देता है। अपने आंदोलनों में महिलाओं को आगे रखना इसकी पहचान है। प्रदर्शनकारियों में स्कार्फ़ पहनी महिलाएं आगे होती हैं। आधुनिक विचारों और अत्याधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल पीएफ़आई को युवाओं में लोकप्रिय बनाता है।
पीएफ़आई का दावा है कि वह मुसलिम कल्य़ाण के साथ-साथ मानवाधिकारों के लिए भी काम करता है। मगर दूसरी तरफ़ ख़ुफ़िया एजेंसियों का कहना है कि यह सिर्फ दिखावा है। कहते हैं कि मई, 2003 में केरल के मलाड समुद्र तट पर हुए नरसंहार में पीएफ़आई का शुरुआती संगठन एनडीएफ़ शामिल था। इस नरसंहार में 8 मछुआरे मारे गए थे। 2009 में एक विशेष अदालत ने एनडीएफ़ से जुड़े 65 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
फैलता जा रहा है पीएफ़आई
बताया जाता है कि पीएफ़आई देश के कई राज्यों में अशांति को बढ़ावा देने में भी जुटा है। 2014 में पंजाब के कई हिस्सों में वंचित समूहों ने हिंसक आंदोलन किये थे। माना जाता है कि वंचितों को भड़काने में पीएफ़आई का हाथ था। इसी तरह कुछ समय़ पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए जातीय संघर्ष में भी पीएफ़आई का नाम लिया गया। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश में गिरफ्तार शहरी नक्सली रोना विल्सन का संबंध पीएफ़आई की झारखंड इकाई से था। बताते हैं कि पीएफ़आई ने रोहिंग्या मुसलमानों से भी संबंध जोड़ लिए हैं।
केरल पुलिस का आंतरिक सुरक्षा जांच दल आईएसआईटी भी पीएफ़आई की गतिविधियों की जांच कर रहा है। आईएसआईटी ने दावा किया है कि केरल में छापों के दौरान तालिबानी सामग्री, वीडियो और अत्यधिक विध्वंसक साहित्य जब्त किया गया है।
केरल हाई कोर्ट में पेश एक एफिडेविट में केरल सरकार के तत्कालीन उप गृह सचिव राजशेखरन नायर ने दावा किया था कि पीएफ़आई के ठिकानों से अल-क़ायदा से जुड़ी सीडी पाई गई। झारखंड की विशेष शाखा ने पीएफ़आई पर दुबारा प्रतिबंध लगाने से पहले विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी।
2 नवंबर, 2018 को प्रधान सचिव के पास भेजी गई इस रिपोर्ट में दुबारा प्रतिबंध लगाने का सबसे बड़ा आधार बताते हुए कहा गया था कि पीएफ़आई झारखंड और अन्य राज्यों में हिंसा, भयादोहन, सांप्रदायिक उन्माद एवं कट्टरता के आधार पर सामाजिक विभाजन, भारत विरोधी और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने, आईएसआईएस जैसे आतंकी समूहों से संपर्क रखने और विधि व्यवस्था को प्रभावित करने वाली गतिविधियों में लिप्त रही है।
कई राज्यों में दर्ज हैं मुक़दमे
इस रिपोर्ट में कोलकाता एसटीएफ़ के एक केस का हवाला दिया गया है। 2 फरवरी, 2018 को एसटीएफ़ कांड संख्या 01 में गिरफ्तार आतंकी का संबंध पीएफ़आई से पाया गया। इस रिपोर्ट में बिहार में भी पीएफ़आई की सक्रियता के बारे में बताया गया है। पीरबोहर थाने में दर्ज प्राथमिकी कांड संख्या 190 में बताया गया है कि 15 जुलाई, 2016 पीएफ़आई/एसडीपीआई ने एक जुलूस निकाला था जिसमें पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए। इससे पहले केरल में भी इस तरह के कई मुक़दमे दर्ज हैं। अकेले केरल में 28 ऐसे मुक़दमे दर्ज हैं जिसमें पीएफ़आई की संलिप्तता बताई गई है। असम में पीएफ़आई के ख़िलाफ़ चार मुक़दमे दर्ज हैं।
झारखंड की इस ख़ुफ़िया रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पीएफ़आई राष्ट्रीय स्तर पर फैलाव की कोशिश कर रहा है। झारखंड में पाकुड़, साहेबगंज आदि जिलों में पीएफ़आई की मजबूत पकड़ बताई गई है।
तमिलनाडु में बनाये हैं केंद्र
बताया जाता है कि पीएफ़आई ने तमिलनाडु के थेनी और अवाडी में केंद्र स्थापित किया हुआ है। पीएफ़आई का दावा है कि इन केंद्रों का इस्तेमाल केवल मज़हबी प्रचार के लिए किया जाता है। पुलिस का आरोप है कि ये केंद्र धर्म परिवर्तन के अड्डे हैं। पीएफ़आई हर साल 15 अगस्त को फ्रीडम परेड निकालती है। इस परेड में उसके समर्थक अर्धसैनिक बलों की तरह की वर्दी पहन कर शामिल होते हैं। इस तरह की परेड केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के कई शहरों में निकाली जा चुकी है।
पीएफ़आई पर पीएचडी कर रहे विनय कुमार सिंह के एक लेख में केरल के पूर्व महानिदेशक विन्सन एम. पॉल ने तो यहां तक कहा है कि पीएफ़आई में शामिल होने वाले युवकों को मोबाइल फोन, मोटरसाइकिल और पैसे दिए जाते हैं और खाड़ी देशों में उन्हें नौकरी भी दिलाई जाती है। जाहिर है कि पीएफ़आई पर शक करने के तमाम आधार मौजूद हैं। हालांकि पीएफ़आई उसके ख़िलाफ़ लगाए गए सारे आरोपों को निराधार बताता रहा है।
पीएफ़आई का संगठनात्मक ढांचा
केंद्रीय सचिवालय यानी (सीएस) में अध्यक्ष और महासचिव होते हैं। अध्यक्ष को नेशनल एग्जीक्यूटिव कमेटी यानि एनईसी में अधिकतम 4 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है। एनईसी में 15 सदस्य होते हैं। इन सदस्यों का चुनाव नेशनल जनरल असेंबली (एनजीए) करती है। एनजीए में हर राज्य से सदस्य होते हैं अधिकतम सदस्यों की संख्या 300 हो सकती है।
राज्य सचिवालय (एसएस)
राज्य इकाई के अध्यक्ष का काम राज्य सचिवालय का गठन करना होता है। इसमें अध्यक्ष 4 लोगों को अपनी तरफ से मनोनीत कर सकता है। स्टेट एग्जीक्यूटिव काउंसिल (एसईसी) में 19 सदस्य होते हैं जिनमें से 5 राज्य अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष और राज्य सचिव होते हैं।
स्टेट जनरल असेंबली (एसजीए) में डिविजन प्रेसीडेंट, सचिव, जिला अध्यक्ष, जिला सचिव, जोनल अध्यक्ष होते हैं। एसईजी के सदस्य स्टेट जनरल असेंबली के सदस्य होते हैं।
जोनल काउंसिल (जेडसी) में दो जिलों के लोग शामिल होते हैं। इसके अलावा जोनल प्रेसीडेंट और जोनल सचिव भी इसके सदस्य होते हैं। डिस्ट्रिक्ट एग्जीक्यूटिव कमेटी यानी डीईसी में 3-10 डीविजन होती हैं। इसके अलावा जिला अध्यक्ष और सचिव इसके सदस्य होते हैं। एरिय़ा कमेटी (एसी) में 10 यूनिट होती हैं और एरिया प्रेसीडेंट और सचिव भी इसके सदस्य होते हैं। यूनिट में 20 सदस्य होते हैं।
कहां से होती है फ़ंडिंग
ख़ुफ़िया सूत्रों की मानें तो पीएफ़आई को अरब देशों से फ़ंडिंग होती है। वहां रह कर काम करने वाले पीएफ़आई के कई सदस्य फ़ंड का इंतजाम करते हैं। ईडी ने पीएफ़आई की फ़ंडिंग की जांच शुरू कर दी है। शुरुआती जांच में ईडी ने पाया है कि पीएफ़आई से जुड़े खातों में एक तय समय में 120 करोड़ रुपये जमा किए गए। कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, नागरिकता कानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान पीएफ़आई से जुड़े खातों में 1.04 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन संदिग्ध माना गया है। लेकिन पीएफ़आई का कहना है कि उसके ख़िलाफ़ बदले की राजनीति के तहत कार्रवाई की जा रही है। लेकिन नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ जिस तरह देश भर में नेतृत्वविहीन संगठित आंदोलन शुरू हुए और कई जगह इनमें हिंसा भी हुई, उसे लेकर पीएफ़आई को जानने वाली एजेंसियों का मानना है कि इस तरह के आंदोलन पीएफ़आई जैसा संगठन ही कर सकता है।
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