देश में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव होता है या नहीं? इस सवाल का जवाब बेहद आसान है। हो भी क्यों न! चाहे हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला हो या आईआईटी बॉम्बे के दलित छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या का। चाहे देश भर में दलितों पर उत्पीड़न के मामले हों या मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफ़रती भाषण व लिंचिंग के मामले, देश भर में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव की ख़बरें आती रही हैं। तो सवाल है कि कितने लोग यह मानते हैं कि ऐसे भेदभाव होते हैं? इस सवाल का जवाब प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में आया है।
देश में जातिगत, धार्मिक भेदभाव कितना गहरा? जानें प्यू रिसर्च ने क्या कहा
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- सत्य ब्यूरो
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- 10 Jan, 2025
प्यू रिसर्च सेंटर ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है ‘आर्थिक असमानता को दुनिया भर में एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है’। जानिए, इसमें जातीय व धार्मिक भेदभाव को लेकर क्या कहा गया है।

प्यू रिसर्च सेंटर की नई रिपोर्ट के अनुसार 70 प्रतिशत से अधिक भारतीयों का मानना है कि भारत में धार्मिक भेदभाव या तो मध्यम या बहुत बड़ी समस्या है। 69 फीसदी भारतीय मानते हैं कि भारत में जातिगत आधार पर भेदभाव होता है। खास बात यह है कि यह दुनिया भर में सर्वेक्षण किए गए 36 देशों में सबसे अधिक अनुपात में है। हालाँकि अन्य देशों के उत्तरदाताओं से जाति के बजाय ‘नस्लीय और जातीय’ भेदभाव के बारे में पूछा गया था।