loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
56
एनडीए
24
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
233
एमवीए
49
अन्य
6

चुनाव में दिग्गज

कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय

जीत

पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व

जीत

मुसलिमों की आबादी दर तेज़ी से घटी है!

क्या आपने ऐसा कुतर्क सुना है कि मुसलमान जान-बूझकर आबादी बढ़ा रहे हैं ताकि वे हिंदुओं से आगे निकल जाएँ? दक्षिणपंथियों द्वारा हिंदुओं को अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह बार-बार क्यों दी जाती है? साक्षी महाराज ने क्यों कहा था कि ज़्यादा बच्चे पैदा करो? या फिर 2016 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने क्यों कहा था कि 'हिंदुओं की आबादी घट रही है और अल्पसंख्यक बढ़ रहे हैं'? अब उत्तर प्रदेश और असम जैसे बीजेपी शासित राज्यों में परिवार नियोजन क्यों किया जा रहा है? क्या इससे यह साबित करने की कोशिश नहीं की जाती रही है कि मुसलमान अधिक बच्चे पैदा करते हैं? 

लेकिन मुसलिमों के ख़िलाफ़ दिए ये सारे बयान प्यू रिसर्च सेंटर के एक शोध में ध्वस्त होते नज़र आते हैं। इस शोध से यह भी पता चलता है कि दरअसल, ऐसे तर्क नफ़रत फैलाने के लिए गढ़े जाते रहे हैं! तो आख़िर क्या है प्यू रिसर्च सेंटर के शोध में?

ताज़ा ख़बरें

प्यू रिसर्च सेंटर ने नए शोध में कहा है कि विभाजन के बाद से भारत की आबादी की धार्मिक संरचना काफ़ी हद तक स्थिर रही है। हिंदू और मुसलिम की प्रजनन दर में न केवल एक बड़ी गिरावट आई है, बल्कि यह अब क़रीब-क़रीब बराबरी पर आती दिख रही है। इसके लिए प्यू रिसर्च सेंटर ने भारत की जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफ़एचएस के आँकड़ों का सहारा लिया है। 

शोध में जिस प्रजनन दर यानी टीएफ़आर का ज़िक्र किया गया है उसका मतलब है- देश का हर जोड़ा अपनी ज़िंदगी में औसत रूप से कितने बच्चे पैदा करता है। किसी देश में सामान्य तौर पर टीएफ़आर 2.1 रहे तो उस देश की आबादी स्थिर रहती है। इसका मतलब है कि इससे आबादी न तो बढ़ती है और न ही घटती है। 

फ़िलहाल भारत में टीएफ़आर 2.2 है। इसमें मुसलिमों की प्रजनन दर 2.6 और हिंदुओं की 2.1 है। यानी इन दोनों की प्रजनन दर में अब ज़्यादा अंतर नहीं रह गया है। लेकिन खास तौर पर ग़ौर करने वाली बात यह है कि हाल के दशक में मुसलिम की प्रजनन दर काफ़ी ज़्यादा कम हुई है। 

1992 में जहाँ मुसलिम प्रजनन दर 4.4 थी वह 2015 की जनगणना के अनुसार 2.6 रह गई है। जबकि हिंदुओं की प्रजनन दर इस दौरान 3.3 से घटकर 2.1 रह गई है। आज़ादी के बाद भारत की प्रजनन दर काफ़ी ज़्यादा 5.9 थी।

आबादी की वृद्धि दर में ऐसी ही गिरावट सभी धर्मों में देखी गई है। आज़ादी के बाद मुसलिम आबादी 1951 से 1961 के बीच 32.7 फ़ीसदी की दर से बढ़ी जो भारत की औसत वृद्धि से 11 पर्सेंटेज प्वाइंट ज़्यादा थी। 2001 से 2011 के बीच मुसलिम वृद्धि दर 24.7 फ़ीसदी हो गई जो पूरे भारत की औसद वृद्धि 17.7 फ़ीसदी से सिर्फ़ 7 पर्सेंटेज प्वाइंट ज़्यादा है।

पारसी को छोड़ सभी धर्म के लोगों की आबादी बढ़ी है। पारसी आबादी जहाँ 1951 में 1 लाख 10 हज़ार थी, वह 2011 में घटकर 60 हज़ार हो गई है।

देश से और ख़बरें

इसके बावजूद यदि सवाल उठे कि क्या आबादी बढ़ने या प्रजनन दर ज़्यादा होने का धर्म से लेनादेना है तो प्यू रिसर्च में इसका भी जवाब मिलता है।

अध्ययन में चेताया गया है कि धर्म किसी भी तरह से प्रजनन दर को प्रभावित करने वाला एकमात्र या यहाँ तक ​​कि प्राथमिक कारण नहीं है। अध्ययन में कहा गया है कि मध्य भारत में अधिक बच्चे पैदा होते हैं, जिनमें से बिहार में प्रजनन दर 3.4 और उत्तर प्रदेश में 2.7 है। जबकि तमिलनाडु और केरल में प्रजनन दर क्रमशः 1.7 और 1.6 है। बिहार और उत्तर प्रदेश की ग़रीब राज्यों में गिनती होती है और यहाँ शिक्षा की स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं है। इसके उलट केरल और तमिलनाडु में इन दोनों मामलों में काफ़ी बेहतर स्थिति है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार, 2005-06 में बिहार में जहाँ मुसलिमों का टीएफआर 4.8 था वहीं 2019-20 में यह घटकर 3.6 रह गया है। यानी 1.2 की कमी आई है। इस दौरान हिंदुओं की टीएफ़आर 3.9 से घटकर 2.9 रह गई है। यानी 1.0 की कमी आई है। 

हिमाचल प्रदेश में तो 2019-20 में हिंदुओं और मुसलिमों का टीएफ़आर 1.7-1.7 बराबर ही है, जबकि इससे पहले 2015-16 में हिंदुओं का टीएफ़आर 2 और मुसलिमों का 2.5 था।
सम्बंधित खबरें
ऐसी रिपोर्टों के बावजूद जनसंख्या के दबाव के लिए दक्षिणपंथी सिर्फ़ मुसलमान आबादी को समस्या मानते हैं। वक़्त और ज़रूरत के हिसाब से ऐसे लोग मुसलमानों की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हैं। कभी इसकी वजह मुसलमान औरतों का दस बच्चे पैदा करना बताया जाता है तो कभी बांग्लादेशी घुसपैठ और धर्मांतरण को। क्या इसकी झलक यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार और असम की हिमंत बिस्व सरमा की सरकार के जनसंख्या नियंत्रण क़ानून के लिए पेश किए जा रहे तर्कों में भी नहीं मिलती है? क्या ऐसा क़ानून लाने से पहले सरकारें और लोग प्यू रिसर्च के इस शोध को देखना चाहेंगे? क्या केंद्र सरकार के ही उस जवाब को ऐसे लोग देखेंगे जिसमें इसने एक आरटीआई के जवाब में कहा है कि हिंदू ख़तरे में नहीं हैं?
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें