सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ईडब्ल्यूएस कोटे की वैधता को लेकर बहस शुरू कर दी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से जी मोहन गोपाल ने मंगलवार को अदालत में दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि 103वां संशोधन संविधान के साथ धोखाधड़ी है और जमीनी स्तर की हकीकत यह है कि यह देश को जाति के आधार पर बांट रही है। संविधान (103वें संशोधन) अधिनियम ने सरकारी नौकरियों और प्रवेश में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत कोटे की व्यवस्था दी है। यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है या नहीं, इसी सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।
ईडब्ल्यूएस के लिए 10% आरक्षण की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित के नेतृत्व में पांच-जजों की संविधान पीठ ने तीन प्रमुख मुद्दों की जाँच करने का फ़ैसला किया था। इसी को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई है।
आज की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से जी मोहन गोपाल ने कहा, 'यह लोगों के दिमाग में संविधान की पहचान को बदल देगा, जो कमजोरों के बजाय विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की रक्षा करता है।'
संशोधन को 'सामाजिक न्याय की संवैधानिक दृष्टि पर हमला' क़रार देते हुए गोपाल ने तर्क दिया कि आरक्षण केवल 'प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है ताकि यह अवसर की समानता को न ख़त्म कर दे जो कि पिछड़े वर्गों की चिंता है'।
Reservation should only be to ensure representation of unrepresented. Ground-level reality is 103rd amendment is dividing the country on caste lines. & will change identity of Const'n in minds of ppl as something which protects the privileged rather than the weak. @IndianExpress
— Ananthakrishnan G (@axidentaljourno) September 13, 2022
उन्होंने आगे कहा, 'आरक्षण केवल अप्रतिनिधित्व का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए होना चाहिए। जमीनी हकीकत है कि 103वां संशोधन देश को जाति के आधार पर बांट रहा है। और लोगों के दिमाग में संविधान की पहचान को बदल देगा, जो कमजोरों के बजाय विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की रक्षा करता है।'
भारत के मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित के नेतृत्व में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में जस्टिस एस रवींद्र भट, दिनेश माहेश्वरी, एस बी पारदीवाला और बेला त्रिवेदी शामिल हैं।
बता दें कि ईडब्ल्यूएस कोटा को चुनौती देने वाले इस मामले को अगस्त 2020 में पांच-न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा गया था। पिछले हफ्ते बेंच ने संशोधन की वैधता का पता लगाने के लिए तीन प्रमुख मुद्दों की जाँच करने का फ़ैसला किया। इनमें शामिल हैं-
- 'क्या 103वें संविधान संशोधन को आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण सहित विशेष प्रावधान करने की राज्य को अनुमति देने को संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन कहा जा सकता है'?
- क्या संशोधन निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के संबंध में विशेष प्रावधान करने के लिए राज्य को अनुमति देने को मूल संरचना को भंग करने वाला कहा जा सकता है?
- क्या एसईबीसी यानी सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग / ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग / एससी यानी अनुसूचित जाति / एसटी यानी अनुसूचित जनजाति को ईडब्ल्यूएस आरक्षण के दायरे से बाहर करके बुनियादी ढांचे का उल्लंघन किया गया है?
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