धार्मिक पहचान धारण करने वाले राजनीतिक दलों के नामों और प्रतीकों को
रद्द करने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे केवल एक
धर्म को लेकर ऐसी मांग नहीं करनी चाहिए बल्कि उसे धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए।
जस्टिस एम.आर शाह और जस्टिस
बी.वी नागरत्ना की पीठ उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम अहमद
रिजवी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाल ही में हिंदू धर्म अपनाने वाले
याचिकाकर्ता ने अदालत से राजनीतिक दलों को धर्म से जुड़े नामों और प्रतीकों का
उपयोग करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की।
याचिकाकर्ता ने अपनी
याचिका में केवल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) और ऑल इंडिया मजलिस-इतेहादुल
मुस्लिमीन (एआईएमएम) जैसे मुस्लिम नाम वाले राजनीतिक दलों को ही शामिल किया था। आईयूएमएल
की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे और
वकील हारिस बीरन ने मामले में केवल मुस्लिम पक्षकारों को पक्षकार बनाए जाने पर
कड़ी आपत्ति जताई।
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दवे ने कहा कि उन्होंने
पिछली सुनवाई में भी आपत्ति जताई थी और कोर्ट को मामले में आगे बढ़ने से पहले उनकी
आपत्ति की जांच करने की मांग की थी। पिछली सुनवाई में दवे ने पूछा था कि शिवसेना
और शिरोमणि अकाली दल जैसे अन्य दलों को मामले में पक्षकार क्यों नहीं बनाया गया और
कहा कि याचिकाकर्ता केवल कुछ को निशाना बनाने में चयनात्मक नहीं हो सकता है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि
याचिकाकर्ता को धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए, आपको हर किसी के प्रति निष्पक्ष होना
चाहिए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से
कहा कि इस मामले में अन्य राजनीतिक दलों को भी शामिल करे जिससे कि वे सुनवाई में
बहस और बचाव कर सकें।
धार्मिक पहचानों से मेल
खाते मौजूदा राजनीतिक दलों के नाम और चुनाव चिह्न रद्द करने की मांग करने वाली
याचिका का विरोध करते हुए चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि ऐसा कोई
स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो धार्मिक अर्थों वाले संगठनों को राजनीतिक दलों के रूप
में खुद को पंजीकृत करने से रोकता हो। एक जनहित याचिका के जवाब में हलफनामा दायर
करते हुए चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया था कि धार्मिक पहचान वाले राजनीतिक दलों को
आवंटित चुनाव चिह्न रद्द करना कानूनी रूप से संभव नहीं है।
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कोर्ट के संज्ञान में
लाया गया कि जनप्रतिनिधित्व संशोधन विधेयक 1994 में यह
प्रस्तावित किया गया था कि अधिनियम की धारा 29 ए की
उपधारा (7) के तहत एक परंतुक जोड़ा जाए जो धार्मिक नाम वाले किसी
भी संघ को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत नहीं किया जाएगा। लेकिन लोकसभा के भंग
होने के कारण विधेयक पारित नहीं हो पाया।
कोर्ट के संज्ञान में
लाया गया कि जनप्रतिनिधित्व संशोधन विधेयक 1994 में यह
प्रस्तावित किया गया था कि अधिनियम की धारा 29 ए की
उपधारा (7) के तहत एक परंतुक जोड़ा जाए जो धार्मिक नाम वाले किसी
भी संघ को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत नहीं किया जाएगा। लेकिन लोकसभा के भंग
होने के कारण विधेयक पारित नहीं हो पाया।
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