समय के साथ समाज बदलता है और इसके साथ सामाजिक मान्यताएँ, मूल्य व विचार भी। लेकिन क्या ऐसा बदलाव पीछे ले जाने वाला होना चाहिए? समलैंगिकता से जुड़ी धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले और रद्द किए जा चुके व्यभिचार क़ानून को लेकर जो मीडिया रिपोर्टें आ रही हैं वे इसी ओर इशारा कर रही हैं।