ऑक्सीजन की कमी होने और ऑक्सीजन न मिलने से कोरोना रोगियों के तड़प तड़प कर मरने की खबरों के बीच यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई देश में ऑक्सीजन उत्पादन खपत से कम है? या ऑक्सीजन की आपूर्ति के साधन नहीं हैं? ऑक्सीजन का कम उत्पादन समस्या है या उसे ढोने के लिए पर्याप्त तादाद में टैंकर व सिलिंडर नहीं है?
इन सवालों के जवाब पाने के लिए इस उद्योग के कुछ आकड़ों पर नज़र डालना ज़रूरी है।
उत्पादन बढ़ा, स्टॉक बड़ा
अंग्रेज़ी पत्रिका 'बिज़नेस टुडे' के अनुसार ऑक्सीजन का रोज़ाना उत्पादन 7,287 मीट्रिक टन है, जबकि रोज़ाना खपत 3,842 मीट्रिक टन है। ये आँकड़े 12 अप्रैल 2021 के हैं। इस तरह ऑक्सीजन उत्पादन का 54 प्रतिशत ही खपत है।
इसके अलावा ऑक्सीजन का कुल स्टॉक 50,000 मीट्रिक टन का है। इसमें मेडिकल ऑक्सजीन के अलावा औद्योगिक उत्पादन भी शामिल है। जाहिर है, इस पत्रिका पर भरोसा किया जाए तो ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है।
औद्योगिक ऑक्सीजन को प्यूरीफ़ाई यानी साफ कर मेडिकल ऑक्सीजन में बदला जा सकता है।
यदि एक दूसरी पत्रिका 'बिज़नेस स्टैंडर्ड' पर भरोसा किया जाए तो साल 2020 में कोरोना संकट शुरू होने के पहले ऑक्सजीन की रोज़ाना खपत 700 टन थी, जो कोरोना की वजह से बड़ कर 2,800 टन हो गई। कोरोना की दूसरी लहर यानी मौजूदा संकट के समय पूरे देश में ऑक्सीजन की रोज़ाना खपत 5,000 टन तक पहुँच गई है।
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ऑक्सीजन देने को तैयार कई कंपनियाँ
- ऑक्सीजन की कमी न हो, इसलिए निजी और सरकारी क्षेत्र की स्टील कंपनियाँ सामने आई हैं। रिलायंस, टाटा स्टील, स्टील अथॉरिटी, निप्पन स्टील, आर्सेलर मित्तल जैसी कंपनियों ने ऑक्सीजन देने की पेशकश की है। इन कंपनियों ने 28 संयंत्रों से रोज़ाना 1,500 टन मेडिकल ऑक्सीजन देने की पेशकश की है।
- पानीपत स्थित रिफाइनरी ने कहा है कि उसने अपने मोनो इथिलीन ग्लाइकॉल संयंत्र से ऑक्सीजन बनाने को कहा है।
- इफ़को ने कहा है कि वह कल्लोल स्थित संयत्र से रोज़ाना 33 हजार लीटर ऑक्सीजन का उत्पादन करेगी। वह आँवला, फूलपुर और पारादीप में ऑक्सीजन संयंत्र लगाएगा।
- इसके अलावा ऑक्सीजन का जो स्टॉक है, उसमें से भी 30 हज़ार टन ऑक्सीजन लेने की बात सोची जा रही है।
कैसे होती है ऑक्सीजन की आपूर्ति?
ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार हर राज्य और केंद्र शासित क्षेत्र के लिए एक कोटा तय करती है और उसे उस कोटा के हिसाब से ही ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है। केंद्र सरकार की ओर से गठित एक कमेटी इस पूरे मामले पर नज़र रखती है।
इस कमेटी में ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैस मैन्युफैक्चर्रर्स एसोशिएसन, पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन, सड़क परिवहन मंत्रालय और रेल मंत्रालय के प्रतिनिधि होते हैं।
हालांकि ऑक्सीजन आवश्यक वस्तु में शुमार नहीं है, लेकिन इसकी कीमत नेशनल फार्मा प्राइसिेंग अथॉरिटी तय करती है। चूंकि सामान्य समय में ऑक्सीजन की किल्लत नहीं होती है, इसका उत्पादन खपत से ज़्याता है, लिहाजा, इसकी कीमत बाज़ार पर निर्भर होने से भी नहीं बढ़ती है।
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वीएसटी इनेबल्ड टैंकर
ऑक्सीजन ढोने के लिए खास तौर पर बनाए गए वीएसटी इनेबल्ड टैंकरों की ज़रूरत होती है। इसी तरह रखने के लिए जंबो सिलिंडर होते हैं, जिनमें अधिक मात्रा में ऑक्सीजन रखा जा सकता है। लेकिन स्थानीय स्तर पर ऑक्सीजन ले जाने के लिए छोटे सिलिंडर होते हैं।
ऑक्सीजन का उत्पादन और इसकी ढुलाई लिक्विड यानी द्रव रूप में होती है। लेकिन अस्पताल पहुँचने के बाद जब इस वहां के स्टोरेज फैसिलिटी में डालते हैं तो वह गैस रूप में होता है। वह गैस ही अस्पताल के अंदरूनी पाइपलाइन सिस्टम से हर बिस्तर तक पहुँचता है।
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क्रायोजेनिक टैंकर
ऑक्सीजन ढोने के लिए जो वीएसटी इनेबल्ड और क्रायोजेनिक यानी बहुत ही कम तामपान रखने वाले टैंकर बनाए जाते हैं, वे कोई बहुत ही उच्च किस्म की तकनीक नहीं है, देश में इस तरह के टैंकर आसाना से बनाए जाते हैं।
लेकिन अब जबकि मेडिकल ऑक्सीजन की माँग यकायक बढ़ गई है तो इन टैकरों की कमी हो गई है क्योंकि वह पहले के स्तर पर ही है। पिछले एक साल में इन टैंकरों के निर्माण और ऑक्सीजन ढोने के किसी दूसरे विकल्प पर किसी नहीं सोचा, न ही सरकार ने और न ही उद्योग ने। अब ज़रूरत पड़ने पर वे टैंकर यकायक तो बन नहीं जाएंगे। किल्लत की असली वजह यह है।
इसे देखते हुए प्रतिरक्षा मंत्रालय ने अपने सात खाली पड़े टैंकर ऑक्सीजन ढोने के लिए दे दिए। रेलवे ने ये टैंकर नवी मुंबई से विशाखापत्तनम भेजे, ताकि वहां से ऑक्सीजन महाराष्ट्र लाया ज सके।
भारतीय रेल ने ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए खास ट्रेन ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाने का निर्णय किया है। एक ट्रेन में 10 ऑक्सीजन टैंकर रखे जा सकेंगे, जिनमें तरल मेडिकल ऑक्सीजन होंगे।
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