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क्या धनखड़ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला पाएगा विपक्ष?

पर्याप्त संख्या न होने के बावजूद विपक्षी दल राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं। सभापति और विपक्ष के बीच रिश्ते पहले दिन से ही असहज हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि अब तो हद ही हो चुकी है। ऐसा लगता है कि वो सिर्फ भाजपा के सभापति हैं। सदन को जिस तरह से चलाया जा रहा है, वो असहनीय है।

खबर है कि अडानी के मुद्दे पर समर्थन न देने वाली पार्टी तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भी संविधान के अनुच्छेद 67 (बी) के तहत नोटिस पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस साल विपक्षी दलों की यह दूसरी ऐसी कोशिश है। हालाँकि, ऐसे प्रस्ताव को कम से कम 14 दिनों के नोटिस के साथ पेश किया जाना चाहिए। जबकि संसद का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को समाप्त हो रहा है। यानी पर्याप्त समय भी विपक्ष के पास नहीं है। लेकिन सभापति के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट नजर आ रहा है।

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राज्सयभा के नियम 67(बी) के अनुसार, “सभापति को राज्य परिषद के सभी सांसदों के बहुमत से पारित और लोकसभा की सहमति के प्रस्ताव द्वारा उन्हें पद से हटाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कोई भी प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जा सकता जब तक कि ऐसा प्रस्ताव पेश करने का इरादा कम से कम चौदह दिन पहले नोटिस के जरिये न जाहिर किया गया हो।"

हालांकि इस नुक्ते पर विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि “14 दिन के नोटिस जैसी तकनीकी बातों को छोड़ दें, सांसदों की पर्याप्त संख्या की बात भी छोड़ दें, हमें बीजेपी को सिर्फ एक संदेश देना है कि वे संसद के समय को इस तरह बर्बाद नहीं कर सकते। हम संसदीय परंपरा और लोकतंत्र को बचाने के लिए लड़ रहे हैं।” जब पूछा गया कि विपक्ष कब नोटिस देगा, दूसरे वरिष्ठ नेता ने कहा, "बहुत जल्द।"

टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने कहा, "मोदी सरकार संसद की हत्या कर रही है। वे डरे हुए हैं क्योंकि उनके पास आम लोगों के मुद्दों का जवाब नहीं है। भाजपा और सरकार संवैधानिक दफ्तरों का दुरुपयोग कर रही है और उन्हें सरकार की मर्जी से काम करने के लिए मजबूर कर रही है। राज्यसभा में विपक्ष के पास संख्या नहीं है, लेकिन हम उनके खिलाफ लड़ेंगे जो इस देश की संसदीय प्रणाली को बर्बाद करना चाहते हैं। इस समय हमारा संसदीय लोकतंत्र और जनता के संवैधानिक अधिकार दांव पर हैं।”

इंडिया गठबंधन के पास राज्यसभा में 103 सदस्य हैं और उन्हें स्वतंत्र सांसद कपिल सिब्बल का भी समर्थन है। लेकिन यह संख्या पर्याप्त नहीं है। कम से कम 125 सांसदों के हस्ताक्षर ऐसी नोटिस पर होना चाहिए। लेकिन विपक्ष इसे विरोध की प्रतीकात्मक लड़ाई बना रहा है। इसलिए पिछले सत्र से ही महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस सौंपने पर विचार हो रहा है।
हाल ही में सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की सीट पर कैश पाये जाने की घटना के बाद विपक्ष ज्यादा उत्तेजित है। दरअसल, सभापति धनखड़ ने सिंघवी का नाम लेकर कहा था कि उनकी सीट पर कैश पाया गया। जबकि ऐसे मामलों में विपक्ष का कहना है कि सभापति को पहले मामले की जांच करानी चाहिए थी, सीसीटीवी फुटेज मौजूद हैं। लेकिन उन्होंने सीधे सांसद का नाम लेकर घटना की जानकारी दी। ऐसा उस सांसद का अपमान करने के इरादे से किया गया।
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कांग्रेस के नेतृत्व में दिये जाने वाले महाभियोग प्रस्ताव नोटिस की एक और भी वजह है। सभापति ने जॉर्ज सोरोस की फंडिंग का मामला सदन में उठाने दिया। जबकि इस मामले में कोई दम नहीं है। कांग्रेस इस बात से ज्यादा नाराज है कि सभापति ने इस मामले को उठाने की अनुमति क्यों दी। विपक्ष का दावा है कि उसने पर्याप्त संख्या में सांसदों के हस्ताक्षर जुटा लिए हैं। हालांकि सभापति के खिलाफ अविश्वास या महाभियोग प्रस्ताव लाने का कोई उदाहरण नहीं है। लेकिन 2020 में विपक्ष ने राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। लेकिन वो प्रस्ताव गिर गया था।
(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)
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क़मर वहीद नक़वी
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