देश में राष्ट्रीय सुरक्षा के क्या हालात हैं? और इस पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए अजीत डोभाल की क्या राय है?
पेगासस स्पाइवेयर से कथित जासूसी को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं। देश के ही दो राज्य- असम और मिज़ोरम में तलवारें खींच गईं। दोनों राज्यों की पुलिस ने एक-दूसरे ख़िलाफ़ कार्रवाई की। विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार आरोप लगा रहे हैं, 'मोदी जी व उनके चापलूसों ने हज़ारों किलोमीटर भारतीय भूमि चीन को सौंप दी। हम इसे कब वापस हासिल कर रहे हैं?' पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के मामले कम होते नहीं दिख रहे हैं। देश में यूएपीए और राजद्रोह के मामले बढ़ गए हैं। इन मुद्दों पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का क्या सोचते हैं? सवाल यह भी उठ रहे हैं कि 17 मीडिया संस्थानों के 'पेगासस प्रोजेक्ट' के अनुसार जब पेगासस स्पाइवेयर के लिए कथित सौदा हो रहा था उसी वक़्त एनएसए इजरायल क्यों गए थे? प्रधानमंत्री की यात्रा क्यों हुई थी और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय का बजट क्यों बढ़ गया?
इन मुद्दों पर अभी तक सार्वजनिक तौर पर तो उनके जवाब नहीं आए हैं। दरअसल, ऐसे मुद्दों के उठने के बीच वह दिखे ही नहीं, जानकारी देने की तो बात ही दूर है। वैसे, अजीत डोभाल दो-तीन बार दिखे हैं और बेहद चर्चा में भी रहे थे। एक तो तब जब वह पिछले साल विजयादशमी के मौक़े पर संतों के एक कार्यक्रम में ऋषिकेश में थे। तब डोभाल ने संतों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि नया भारत नए तरीक़े से सोचता है और हम भारत में ही नहीं बल्कि विदेशी धरती पर भी लड़ेंगे, हमें जहाँ भी ख़तरा दिखेगा, हम वहाँ प्रहार करेंगे।
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बहरहाल, पेगासस स्पाइवेयर से कथित जासूसी का मामला हाल के सबसे बड़े मामलों में से एक है। इस मुद्दे ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया है। दुनिया भर में पेगासस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। 'द गार्डियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'द वायर' सहित दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है। एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। 'द वायर' के अनुसार इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। इस मुद्दे की जाँच को लेकर संसद में हंगामा हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएँ लगाई गई हैं।
बड़ा सवाल यह उठाया जा रहा है कि इस कथित जासूसी से विपक्ष के नेता, मंत्री, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता की जानकारी दूसरे देश की कंपनी को हासिल होना क्या राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं है?
राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहा है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का इस मुद्दे पर बयान नहीं आया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की चुप्पी पर 'नेशनल हेराल्ड' ने एक कवर स्टोरी की है। इसमें उसने लिखा है कि कैसे एनएसए ने कई बार इजरायल का दौरा किया। इसने लिखा है कि मार्च 2017 में अजीत डोभाल ने इजरायल के एनएसए और तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाक़ात की थी। रिपोर्ट में संदेह जताया गया है कि यही वह वक़्त था जब पेगासस के लिए सौदा किया गया होगा। अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे और संदेह गहराता है कि अंदरुनी सूत्रों के अनुसार मई 2017 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा के प्रमुख डॉ. गुलशन राय इजरायल गए थे। यह भी लिखा गया है कि इजरायल के प्रधानमंत्री ने अपने देश में जून 2017 में एक कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान साइबर सुरक्षा का मुद्दा बातचीत का प्रमुख हिस्सा था।
नेशनल हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार जब प्रधानमंत्री मोदी इजरायल की यात्रा पर जाने वाले थे तभी भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय का बजट 2017-18 के लिए 10 गुना ज़्यादा बढ़ा दिया गया था। रिपोर्ट के अनुसार साइबर सुरक्षा, अनुसंधान और विकास पर 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। तब राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय का कुल बजट 333.58 करोड़ रुपये था। इससे एक साल पहले इसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय का कुल बजट सिर्फ़ 33.17 करोड़ रुपये था। 2013-14 का बजट 26.06 करोड़ रुपये का था। 2014-15 का बजट 44.46 करोड़ और 2015-16 का बजट 38.12 करोड़ था।
2017 के बाद भी बजट ज़्यादा ही रहा। 2018-19 में 303.83 करोड़, 2019-20 में 152.63 करोड़, 2020-21 में 170.73 करोड़ और 2021-22 में 228 करोड़ रुपये का बजट का प्रावधान किया गया।
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राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के कर्मचारियों की संख्या में भी अचानक वृद्धि हुई। रिपोर्ट के अनुसार पहले 202 कर्मचारी कार्यरत थे और इसके लिए कर्मचारियों की मंजूर संख्या 299 तक थी। लेकिन 2021 में मंजूर कर्मचारियों की यह संख्या बढ़ाकर 512 कर दी गई। हालाँकि कर्मचारियों की वास्तविक संख्या 262 ही है जो मंजूर संख्या से काफ़ी कम है। तो फिर मंजूर कर्मचारियों की संख्या क्यों बढ़ाई गई? 'नेशनल हेराल्ड' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इसका एक संभावित जवाब यह हो सकता है कि नियमों के तहत सरकार अस्थायी और अनुबंध के आधार पर स्वीकृत पदों के अनुरूप ही सलाहकारों को नियुक्त कर सकती है। इसलिए, जबकि कर्मचारियों की वास्तविक संख्या ज़्यादा नहीं हो सकती है, एनएससीएस अपनी बढ़ी हुई बजट उपलब्धता और कर्मचारियों की मंजूर संख्या के दम पर कंसल्टेंट को अपनी इच्छा से रख सकता है और निकाल सकता है।
अख़बार ने इन्हीं सब तथ्यों के आधार पर कहा है कि इस पैर्टन से सवाल उठते हैं कि कहीं इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव परिणाम से छेड़छाड़ करने के लिए तो नहीं किया गया था। रिपोर्ट में पेगासस प्रोजेक्ट के हवाले से कहा गया है कि क्योंकि चुनाव से पहले कंसल्टेंट नियुक्त किए गए थे और चुनाव के बाद उन्हें हटा दिया गया था।
इस पूरे पेगासस स्पाइवेयर से कथित जासूसी के मामले में सरकार ने न तो स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है कि स्पाइवेयर उसकी एजेंसियों द्वारा खरीदा और इस्तेमाल किया गया। बता दें कि सरकार ने एक बयान में कहा है कि उसकी एजेंसियों द्वारा कोई अनधिकृत रूप से इन्टरसेप्ट नहीं किया गया है और विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है। इसके बावजूद विपक्षी दल संयुक्त संसदीय जाँच कमेटी की मांग कर रहे हैं। यह कमेटी एनएसए को भी तलब कर सकती है। लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। अब इस मामले में याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई हैं और इस पर सुनवाई इसी गुरुवार को होगी। सुप्रीम कोर्ट भी मामले में जाँच का आदेश दे सकती है।
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