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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की ओर से एक्टिविस्ट आनंद तेलतुंबडे की जमानत के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका भीमा कोरेगांव मामले में दायर की गई थी।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि वह इस मामले में मुंबई हाई कोर्ट के द्वारा आनंद तेलतुंबडे को दी गई जमानत के मामले में किसी तरह का दखल नहीं देगी। हाईकोर्ट ने 18 नवंबर को आनंद तेलतुंबडे को जमानत दी थी।
आनंद तेलतुंबडे को जमानत देते वक्त हाई कोर्ट के जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस मिलिंद जाधव की डिवीजन बेंच ने कहा था कि आनंद के खिलाफ आतंकी गतिविधि में शामिल होने के कोई सबूत नहीं हैं। आनंद तेलतुंबडे के खिलाफ दायर की गई चार्जशीट में आरोप लगाया था कि उन्होंने प्रतिबंधित संगठन सीपीआई माओवादी की विचारधारा को आगे बढ़ाने और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रची थी।
सुनवाई के दौरान आनंद तेलतुंबडे की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल से किसी भी तरह के दस्तावेज बरामद नहीं हुए हैं। सिब्बल ने कहा कि उनके मुवक्किल येलगार परिषद के कार्यक्रम में भी नहीं थे। 73 वर्षीय आनंद तेलतुंबडे आईआईटी के प्रोफेसर रहे हैं। उन्हें 14 अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया गया था।
महाराष्ट्र में पुणे के क़रीब भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी, 2018 को दलित समुदाय के हज़ारों लोग इकट्ठा हुए थे। वे दो सौ साल पहले इसी जगह पर पेशवाओं के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ी फ़ौज के महार दस्ते की जीत का सालाना जश्न मनाने एकत्र हुए थे। एक शाम पहले शनिवार पाड़ा में ‘येलगार परिषद’ नाम से एक सभा का आयोजन किया गया था। उस सभा में कई लोगों ने भाषण दिए थे और गीत भी गाए थे।
इसके बाद भीमा कोरेगांव के आयोजन में भाग लेने वाले लोगों पर हमला किया गया था। एक व्यक्ति की जान चली गई और अनेक लोग घायल हुए थे। इस हिंसा के लिए भीड़ को उकसाने के आरोपी दो स्थानीय और प्रभावशाली हिंदुत्ववादी नेता थे, संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे। उनके नाम से पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई गई। लेकिन उन पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
6 जनवरी, 2018 को पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विल्सन, सुधीर धवले, शोमा सेन और महेश राउत को देश के अलग-अलग हिस्से से गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर 1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव में भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया और यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाया गया।
रोना विल्सन पर यह आरोप भी लगाया गया था कि उन्होंने प्रतिबंधित माओवादी गुटों के साथ मिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रची थी। यह कहा गया था कि उन्होंने माओवादियों को चिट्ठी लिख कर कहा था कि सत्ता को उखाड़ फेंकने और प्रधानमंत्री की हत्या करने के लिए बंदूकों व गोलियों की ज़रूरत है।
रोना विल्सन के कंप्यूटर से ‘बरामद’ एक ऐसे पत्र को पेश किया गया था जिसपर लिखनेवाले के दस्तखत तक नहीं थे। इसी पत्र के सहारे आनंद तेलतुंबडे को गिरफ़्तार किया गया था।
2021 की शुरुआत में अमेरिकी डिजिटल फोरेंसिक कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि रोना विल्सन के लैपटॉप पर साइबर हमला कर ये पत्र डाले गए थे।
आनंद तेलतुंबडे पर पुलिस का इल्ज़ाम यह है कि वे माओवादियों के बड़े बौद्धिक हैं, येलगार परिषद के पीछे उनका दिमाग था, वे माओवादी दल के बड़े नेता और अपने भाई मिलिंद तेलतुंबडे के साथ मिलकर साज़िश रच रहे थे। आरोप है कि माओवादी दल उन्हें पैसे देकर विदेशों में सेमिनार आदि में भेजता था, जहां से ख़तरनाक पाठ्य सामग्री लाकर वह माओवादियों को दिया करते थे।
पुलिस ने आनंद पर ये आरोप लगाते हुए कहा था कि वे आतंकवादी गतिविधि में लिप्त थे। उनके ख़िलाफ़ सबसे सख़्त आतंकवाद विरोधी क़ानून यूएपीए की सबसे कड़ी धाराओं का इस्तेमाल किया गया था।
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