सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर की अंतरिम जमानत की अवधि को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है। इस मामले में 8 जुलाई को हुई सुनवाई के दौरान लंबी दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ज़ुबैर को 5 दिनों की अंतरिम जमानत दे दी थी। लेकिन दिल्ली और लखीमपुर खीरी के मामलों की वजह से ज़ुबैर को अभी जेल में ही रहना होगा। दिल्ली वाले मामले में उनकी जमानत याचिका पर 14 जुलाई को सुनवाई होगी।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने यह आदेश दिया। यह मामला ज़ुबैर के खिलाफ उत्तर प्रदेश के सीतापुर में दर्ज की गई एफआईआर का है।
7 सितंबर को होगी सुनवाई
उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट जमा करने के लिए अदालत से वक्त मांगा। उन्होंने कहा कि ज़ुबैर पहले से ही अंतरिम जमानत पर हैं और इसलिए रिपोर्ट फाइल करने के लिए वक्त दिया जा सकता है।
ज़ुबैर की ओर से पेश हुए एडवोकेट कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि यह जमानत सिर्फ 5 दिन के लिए थी और बुधवार को खत्म होने वाली है। इसके बाद अदालत ने अंतरिम जमानत की अवधि को बढ़ा दिया और उत्तर प्रदेश पुलिस को उसका जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्ते का वक्त दिया। अब इस मामले में 7 सितंबर को अंतिम सुनवाई होगी।
इस मामले में कोलिन गोंजाल्विस ने ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोलिन गोंजाल्विस ने याचिका में कहा था कि ज़ुबैर को मौत की धमकियां मिल रही हैं।
क्या है मामला?
सीतापुर के खैराबाद पुलिस थाने में ज़ुबैर के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने का मुकदमा दर्ज किया गया था। मुकदमे में आरोप लगाया गया था कि मोहम्मद ज़ुबैर ने 3 लोगों- महंत बजरंग मुनि, यति नरसिंहानंद सरस्वती और स्वामी आनंद स्वरूप को नफरत फैलाने वाला करार दिया था।
इस मामले में 27 मई को भगवान शरण नाम के शख्स की ओर से मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी। स्थानीय अदालत ने इस मामले में ज़ुबैर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।
नफरती हो गए रिहा
गोंजाल्विस ने कहा था कि उनके मुवक्किल की जान खतरे में है और कई लोग पुलिस को ज़ुबैर का उत्पीड़न करने की सलाह दे रहे हैं और इसीलिए वह अदालत में पहुंचे हैं।
उन्होंने कहा था कि उनके मुवक्किल ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक हैं और यह संस्थान देश में नफरत फैलाने वाले भाषणों पर नजर रखता है और इस संस्थान के लिए इस साल के नोबेल पुरस्कार की सिफारिश की गई है।
कोलिन गोंजाल्विस ने कहा था कि उनके मुवक्किल के खिलाफ लगी धारा 295 ए के तहत किसी धर्म का अपमान करना अपराध है। अगर उनके मुवक्किल ने धर्म का अपमान किया होता तो वह उनका बचाव नहीं करते। उन्होंने पूछा था कि यहां धर्म का अपमान कहां हुआ है। इसके अलावा उनके मुवक्किल के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 67 लगायी गयी है और इस धारा का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।
सॉलिसिटर जनरल की दलील
जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील रखते हुए कहा था कि यह एक ट्वीट का मामला नहीं है और क्या ज़ुबैर उस सिंडिकेट का हिस्सा हैं, जिसकी ओर से देश को अस्थिर करने के इरादे से लगातार इस तरह के ट्वीट किए जा रहे हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि ज़ुबैर एक आदतन अपराधी हैं और उनके खिलाफ 6 मामले दर्ज हैं।
‘ज़ुबैर ने ट्वीट क्यों किया’
सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा था कि मोहम्मद ज़ुबैर ने बजरंग मुनि के समर्थकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है और क्या ऐसा जानबूझकर किया गया है, यह जांच का विषय है।एएसजी ने कहा था कि किसी धार्मिक नेता को नफरत फैलाने वाला शख्स बताना दो समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ाने की कोशिश है और मोहम्मद ज़ुबैर को इस बारे में पुलिस को पत्र लिखना चाहिए था, उन्होंने ट्वीट क्यों किया।
कौन है यति नरसिंहानंद सरस्वती
यति नरसिंहानंद सरस्वती को मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने के लिए जाना जाता है। बीते साल हरिद्वार में हुई धर्म संसद में यति नरसिंहानंद सरस्वती ने एक बार फिर जहरीला भाषण दिया था। इसके बाद उसकी गिरफ्तारी भी हुई थी और वह जमानत पर है। लेकिन बावजूद इसके यति नरसिंहानंद सरस्वती ने जहर उगलने का काम जारी रखा है।कौन है बजरंग मुनि
इस साल अप्रैल में बजरंग मुनि का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह एक मस्जिद के बाहर मुसलिम महिलाओं को बलात्कार की धमकी देते हुए दिखाई दिया था। वीडियो में बजरंग मुनि ने कहा था कि अगर एक हिंदू को मारा गया तो 10 मुसलमान मारे जाएंगे और इसके लिए वे लोग खुद जिम्मेदार होंगे। बजरंग मुनि सीतापुर के खैराबाद में महर्षि श्री लक्ष्मण दास उदासीन आश्रम का प्रमुख है। इसी तरह काली सेना का संस्थापक स्वामी आनंद स्वरूप भी कई बार विवादित बयानबाजी कर चुका है।2018 के ट्वीट पर हुई गिरफ्तारी
ज़ुबैर को सबसे पहले साल 2018 में उनके द्वारा किए गए एक ट्वीट को लेकर दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इस ट्वीट के खिलाफ किसी गुमनाम ट्विटर यूजर ने दिल्ली पुलिस से शिकायत की थी। हालांकि बाद में यह अकाउंट ट्विटर प्लेटफ़ॉर्म से गायब हो गया था।
ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने दंगा भड़काने के इरादे से उकसाने और धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। ज़ुबैर ने 1983 में बनी एक फिल्म के एक शॉट को 2018 में ट्विटर पर पोस्ट किया था। इसमें एक फोटो थी जिसमें लगे एक बोर्ड पर हनीमून होटल लिखा था और इसे पेंट करने के बाद हनुमान होटल कर दिया गया था।
@balajikijaiin की आईडी वाले ट्विटर अकाउंट से यह शिकायत की गई थी लेकिन अब यह अकाउंट वजूद में नहीं है।
दिल्ली पुलिस ने ज़ुबैर के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने और सबूत नष्ट करने के आरोप लगाए थे। इसके अलावा उनके खिलाफ विदेशी चंदा प्राप्त करने के लिए फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट एफसीआरए की धारा 35 भी लगाई गई थी। दिल्ली पुलिस ने कहा था कि ज़ुबैर की कंपनी को पाकिस्तान, सीरिया और अन्य खाड़ी देशों से चंदा मिला है।
लखीमपुर खीरी का मामला
उधर, सोमवार को लखीमपुर खीरी की एक स्थानीय अदालत ने ज़ुबैर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। ज़ुबैर के खिलाफ बीते साल लखीमपुर खीरी के मोहम्मदी पुलिस स्टेशन में एक मुकदमा दर्ज कराया गया था।
क्या है मामला?
स्थानीय अदालत के आदेश पर ही लखीमपुर खीरी में ज़ुबैर के खिलाफ यह मुकदमा पिछले साल दर्ज हुआ था। इस मामले में स्थानीय पत्रकार आशीष कुमार कटियार नाम के शख्स ने ज़ुबैर के खिलाफ ट्विटर पर फर्जी खबर फैलाने का मुकदमा दर्ज कराया था। उसने अपनी शिकायत में कहा था कि ज़ुबैर के ट्वीट से सांप्रदायिक सौहार्द्र खराब हो सकता है।
इसके बाद ज़ुबैर के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 ए यानी दो समूहों के बीच नफरत फैलाने के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
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