loader

मोदी सरकार ने इस बार प्रदर्शनकारी किसानों से दूरी क्यों बना रखी है? 

अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करते किसानों को क्या मोदी सरकार तवज्जो नहीं देना चाहती है? जगजीत सिंह डल्लेवाल का आमरण अनशन रविवार को 41वें दिन प्रवेश कर गया है। किसी मंत्री ने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ वार्ता करने की जहमत नहीं उठाई है। जबकि 2020 के किसान आंदोलन में तो किसानों के प्रदर्शन के दौरान क़रीब चार महीने में ही तीन मंत्रियों की टीम 11 बार किसानों के साथ वार्ता कर चुकी थी। तो सवाल है कि इस बार ऐसा क्या हो गया कि सरकार उनसे बात तक नहीं कर रही? 

इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले इस किसान आंदोलन और इसके ताज़ा घटनाक्रमों के बारे में जान लीजिए। जुलाई 2022 में बीकेयू सिद्धूपुर के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल ने एसकेएम से अलग होकर एसकेएम (गैर-राजनीतिक) का गठन किया था। डल्लेवाल पिछले साल 26 नवंबर से खनौरी में आमरण अनशन पर हैं और मांग कर रहे हैं कि केंद्र किसानों की मांगों को स्वीकार करे। विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने डल्लेवाल की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है।

ताज़ा ख़बरें

मौजूदा किसान आंदोलन दोबारा पिछले साल 2024 के फरवरी माह में दो किसान संगठनों- संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा द्वारा लंबित मांगों को लेकर शुरू किया गया था। राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा से अलग होकर अपने संगठन के समर्थकों के साथ पंजाब से जगजीत सिंह डल्लेवाल और स्वर्ण सिंह पंधेर ने दिल्ली कूच किया था जिनको हरियाणा के अलग-अलग बॉर्डर पर हरियाणा के सुरक्षा बलों द्वारा रोक दिया गया। 

पिछले साल फरवरी की शुरुआत में जब किसानों ने फिर से दिल्ली कूच का आह्वान किया था तो तीन केंद्रीय मंत्री- पीयूष गोयल, तत्कालीन कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय- आंदोलनकारी किसान यूनियनों के साथ दो दौर की बातचीत करने के लिए चंडीगढ़ गए थे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका। तब से गतिरोध के बावजूद केंद्र सरकार प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत करने से कतरा रही है।

केंद्र सरकार का यह रवैया केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस बयान में भी दिखता है जिसमें इस हफ़्ते ही उन्होंने कहा था, 'अभी तो सुप्रीम कोर्ट देख रहा है, सुप्रीम कोर्ट के जो निर्देश होंगे उनका पालन किया जाएगा।'

देश से और ख़बरें

अपनी ओर से शिवराज चौहान ने किसानों को हर मंगलवार को बैठक के लिए खुला निमंत्रण दिया है और किसानों के कुछ समूहों से मुलाकात की है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कृषि क्षेत्र की मौजूदा स्थिति पर चर्चा करने के लिए पंजाब के मंत्री गुरमीत सिंह खुदियन सहित राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ भी बैठक की है। लेकिन उन्होंने अभी तक आंदोलनकारी किसानों के साथ कोई बैठक नहीं की है।

तो सवाल है कि क्या इसी तरह का रवैया 2020 के कृषि आंदोलन के दौरान था? और यदि ऐसा नहीं था तो फिर इसकी वजह क्या है?

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान जब किसान तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे और उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक धरना दिया था, तब तीन केंद्रीय मंत्रियों की एक टीम किसानों के साथ लगातार बातचीत कर रही थी। टीम में तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश शामिल थे। टीम ने 14 अक्टूबर, 2020 से 22 जनवरी, 2021 तक यानी क़रीब चार महीने में अपने यूनियनों के साथ 11 दौर की वार्ता की थी। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद किसान नेताओं के साथ देर रात बैठक करने के लिए दिल्ली के पूसा कॉम्प्लेक्स पहुंचे थे।

माना जा रहा है कि सरकार ने 2020 के कृषि आंदोलन से सीख ली है और वह इस बार कोई ग़़लती नहीं करनी चाहती है। अंग्रेज़ी अख़बार ने रिपोर्ट दी है कि सरकार का मानना ​​है कि तत्कालीन कृषि सचिव संजय अग्रवाल द्वारा 14 अक्टूबर, 2020 को कृषि भवन में 29 प्रदर्शनकारी किसान यूनियनों के साथ पहले दौर की बैठक करने के लिए उन्हें दिल्ली आमंत्रित करने के कदम से विवाद सुलझने के बजाय और भड़क गया। बैठक तब हंगामे में बदल गई थी, जब किसान नेता कृषि मंत्री तोमर की मौजूदगी की मांग करते हुए बैठक से बाहर आ गए थे। उन्होंने कृषि भवन के बाहर तीनों विधेयकों की प्रतियां भी फाड़ दीं और नारेबाजी की। यह एक लंबी लड़ाई की शुरुआत थी।

ख़ास ख़बरें

आखिरकार 19 नवंबर 2021 को गुरु नानक देव जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की घोषणा की थी।

किसान आंदोलन 2020 में तीन कृषि कानून को खत्म करने के साथ साथ जो मुख्य मांगें थीं उसमें एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्ज से मुक्ति, बिजली आपूर्ति कानूनों में सुधार व दरों में कटौती, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना, किसानों पर किये गए केस वापसी आदि शामिल थीं। उनको सरकार द्वारा लिखित आश्वासन दिए जाने के बावजूद पूरा नहीं किया जाना मौजूदा किसान आंदोलन का आधार बना हुआ है।

हरियाणा पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद से एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और केएमएम 13 फरवरी, 2024 से शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं।

इस कारण सरकार नहीं दे रही तवज्जो?

इस बार कृषि आंदोलन से निपटने में केंद्र के बदले हुए रुख को इन वजहों से समझा जा सकता है। पहला, मौजूदा आंदोलन अभी तक पंजाब-हरियाणा सीमा तक ही सीमित है, जिसका विस्तार 2020-21 के कृषि आंदोलन जितना नहीं है। दूसरा, पंजाब और अन्य राज्यों के कई कृषि संघों का एक छत्र संगठन एसकेएम सहित कई प्रमुख किसान निकाय इसकी मांगों का समर्थन करने के बावजूद मौजूदा आंदोलन में शामिल नहीं हुए हैं। तीसरा, 2020-21 का आंदोलन केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ था, मौजूदा विरोध में कई मांगें हैं जिनमें कुछ पहले भी उठाई गई थीं।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें