प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PM-GKAY) 30 सितंबर के बाद भी लागू रहेगी। सरकार के इस पर 80 हजार करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं। हालांकि गेहूं और चावल के भंडार में कमी आई है। सरकार ने इस योजना को तीन महीने के लिए बढ़ाने का फैसला किया है। कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिल गई है। कई राज्यों में अगले चंद महीनों में चुनाव होने वाले हैं। 2024 के आम चुनाव को लेकर सभी पार्टियों में चुनावी तैयारियां जारी हैं। ऐसे में मोदी सरकार इस योजना को बंद कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। हालांकि इसे तीन महीने के लिए बढ़ाया गया है लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के तहत इसे तीन-तीन महीने का विस्तार देकर 2024 के चुनाव तक खींचा जा सकता है। अगर ये तीन महीने के लिए भी रखी जाती है तो तब तक गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव हो चुके होंगे। गुजरात जीतना इस समय बीजेपी और मोदी सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में से एक है।
इस योजना के जरिए सरकार हर महीने गरीबों को पांच किलोग्राम राशन मुफ्त में देती है। यूपी जैसे बड़े राज्य में गरीबों को यह राशन प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी की फोटो लगी बोरियों में मिलता है। यह योजना कोविड के दौरान 2020 में लॉकडाउन के दौरान लाई गई थी।
जून 2022 से अभी तक मीडिया में यही खबर आ रही थी कि केंद्र सरकार इस योजना को 30 सितंबर से आगे नहीं बढ़ाएगी। 10 सितंबर को केंद्र सरकार के अधिकारियों ने बताया था कि यह योजना सरकार पर आर्थिक बोझ है। हालांकि तमाम बीजेपी और विपक्ष शासित राज्य इस योजना को गरीबों के हित में आगे बढ़ाने को कह रहे थे। अधिकारियों ने उस समय कहा था कि यह एक पोलिटिकल कॉल (राजनीतिक फैसला) है, जो उच्च स्तर पर लिया जाएगा। इसमें अफसरों की कोई भूमिका नहीं है।
कोविड के दौरान 2020 में जब यह योजना आई थी तो इसे उस साल सिर्फ अप्रैल, मई और जून 2020 यानी तीन महीने के लिए लाया गया था। बाद में, सरकार ने इस योजना को जुलाई से नवंबर 2020 तक बढ़ा दिया। केंद्र ने फिर अप्रैल 2021 में मई और जून 2021 (तीसरा चरण) के दो महीने की अवधि के लिए योजना को फिर से पेश किया और इसे जुलाई से नवंबर 2021 (चौथा चरण) तक और पांच महीने के लिए बढ़ा दिया। तब से, इस योजना को कई बार बढ़ाया गया। अंतिम विस्तार छह महीने के लिए हुआ था और यह 30 सितंबर को खत्म होने वाला था।
मिन्ट अखबार ने पिछले दिनों खबर छापी थी कि वित्त सचिव टी वी सोमनाथन ने कहा है कि अभी तक पीएमजीकेएवाई योजना को आगे बढ़ाने पर फैसला नहीं लिया गया है। वित्त सचिव के बयान से साफ है कि योजना को आगे बढ़ाने पर फिलहाल विचार नहीं हो रहा है। लेकिन गुजरात जैसे राज्य इसे कम से कम छह महीने और बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। गुजरात में जल्द विधानसभा चुनाव हैं।
पिछले दो साल में देश के 80 करोड़ गरीबों को इस योजना से दो वक्त की रोटी नसीब हुई। लगभग 2.6 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए। अगर केंद्र सरकार इसे छह महीने और आगे बढ़ाती है तो इस पर 80,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें वो खर्च शामिल नहीं है, जो सरकार ऐसी योजनाओं के प्रचार पर लगाती है। 2022 में जब यूपी विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो इस चुनाव से ठीक पहले योजना का प्रचार करने के लिए कई करोड़ विज्ञापनों पर खर्च किए गए। इनमें अंग्रेजी में दिए गए विज्ञापन भी शामिल थे, जिनके पढ़ने या देखने से उन गरीबों का कोई वास्ता नहीं, जिनके लिए ऐसी योजनाएं चलाई जाती हैं।
द फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि अगर हमारे पास अनाज का बफर स्टॉक नहीं हुआ तो योजना को आगे बढ़ाया जाना मुश्किल होगा। गेहूं की फसल इस बार कम हुई है और एफसीआई का स्टॉक 2008 से भी निचले स्तर पर पहुंच गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक एफसीआई और राज्य की एजेंसियों के पास 25 लाख टन गेहूं कम पहुंचा है। दूसरी तरफ धान की फसल छह फीसदी कम होने की उम्मीद है। ऐसे में सरकार ने गरीब अन्न योजना को बढ़ा कर सचमुच ही रिस्क लिया है।
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