यूएस एड पर अब बीजेपी ही फँस गई है। बीजेपी जिस यूएस एड के फंड को भारत में चुनाव को प्रभावित करने वाला, डीप स्टेट और जॉर्ज सोरोस से जोड़ते हुए कांग्रेस पर हमला करती रही थी, अब उससे संबंध मोदी सरकार के ही निकल आए हैं। वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में सामने आया है कि यूएस एड ने वित्त वर्ष 24 में भारत में 750 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 6500 करोड़ रुपये का फंड दिया। ये फंड भारत में सात परियोजनाओं के लिए भारत सरकार को ही दिया गया। इसमें से कोई भी फंड वोटर टर्नआउट के लिए नहीं था। तो क्या अब बीजेपी, पीएम मोदी और उनके लोगों का झूठ पकड़ा गया है?
कांग्रेस ने तो कम से कम यही आरोप लगाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने वित्त मंत्रालय के ताज़ा आँकड़ों का हवाला देते हुए कहा है, 'वित्त मंत्रालय की 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, यूएस एड फ़िलहाल भारत सरकार के सहयोग से सात परियोजनाएं चला रहा है। इनका कुल बजट क़रीब 750 मिलियन डॉलर है। इनमें से एक भी परियोजना का वोटर टर्नआउट से कोई लेना-देना नहीं है। ये सभी परियोजनाएँ केंद्र सरकार के साथ और उसके माध्यम से चलाई जा रही हैं।'
खुद केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने प्रधानमंत्री
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) February 24, 2025
और उनकी झूठ ब्रिगेड के झूठ को पूरी तरह बेनकाब कर दिया है। इस ब्रिगेड में उनके ठाठबाठ वाले विदेश मंत्री भी शामिल हैं।
वित्त मंत्रालय की 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, USAID वर्तमान में भारत सरकार के सहयोग से सात परियोजनाएं चला… pic.twitter.com/ZBNvmnraHT
मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2023-24 के लिए सात परियोजनाओं के तहत यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट यानी यूएस एड द्वारा कुल 97 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी क़रीब 825 करोड़ रुपये दिया गया है। वित्त मंत्रालय के अनुसार ये फंड कृषि और खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम; जल, स्वच्छता और आरोग्य; नवीकरणीय ऊर्जा; आपदा प्रबंधन और स्वास्थ्य से संबंधित परियोजनाओं के लिए दिया गया है।
यह पूरी तरह साफ़ है कि इन सात परियोजनाओं में से कोई भी वोटर टर्न आउट से जुड़ा नहीं है। बता दें कि इस महीने की शुरुआत में देश में तब एक राजनीतिक विवाद छिड़ गया था, जब एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई ने कथित तौर पर भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 180 करोड़ का फंड रद्द कर दिया था। इसके बाद देश में राजनीतिक तूफ़ान खड़ा हो गया।
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया कि यह फंडिंग भारत की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप के बराबर है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट कर लिखा, 'मतदान बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर? यह निश्चित रूप से भारत की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप है। इससे किसे लाभ होता? निश्चित रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को नहीं!'
इसके साथ ही मालवीय ने कांग्रेस और जॉर्ज सोरोस को जोड़ दिया। उन्होंने कहा, '2012 में एसवाई कुरैशी के नेतृत्व में चुनाव आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। यह संगठन जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा है। इसे मुख्य रूप से यूएस एड द्वारा फंड दिया जाता है।'
यूएस एड और सोरोस का नाम जोड़ते हुए आरोप लगाए जाने के बाद कांग्रेस ने भी बीजेपी पर लगातार हमला किया है।
इसने कहा है कि मोदी सरकार में भी यूएस एड का फंड आ रहा है और बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने यूएस एड के लिए काम किया था। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि ईरानी और बीजेपी सोरोस के 'सच्चे एजेंट' हैं।
कांग्रेस ने पिछले हफ़्ते कहा था कि ईरानी यूएस एड की 'सद्भावना राजदूत' के रूप में काम किया था। एक्स पर एक पोस्ट में कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे ने कहा, 'सरकार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, स्मृति ईरानी के बायो में लिखा है कि उन्होंने भारत में यूएस एड की सद्भावना राजदूत के रूप में काम किया है।' उन्होंने पूछा, 'क्या इसका मतलब यह है कि भाजपा के राजनेता जॉर्ज सोरोस के असली एजेंट हैं?'
This is brilliant. We finally have the answer to BJP’s favourite question - Rasode Mein Kaun Tha?
— Pawan Khera 🇮🇳 (@Pawankhera) February 18, 2025
The actual agent of George Soros turns out to be @smritiirani. https://t.co/So8V9fSl0h
बहरहाल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी बार-बार दावा किया है कि जो बाइडेन के नेतृत्व वाले पिछले प्रशासन के तहत यूएस एड ने वोटर टर्नआउट के लिए भारत को 21 मिलियन डॉलर का फंड आवंटित किया था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी शनिवार को कहा कि ट्रंप प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी चिंताजनक है और सरकार इस पर विचार कर रही है।
कांग्रेस ने रविवार को बीजेपी पर अमेरिका से फर्जी खबरें फैलाकर राष्ट्र विरोधी कार्य करने का आरोप लगाया था। इसने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर को भी जवाब देना होगा कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क बार-बार भारत का अपमान कर रहे हैं तो सरकार चुप क्यों है।
क्या सच में वोटर टर्नआउट के लिए फंड मिला?
ट्रंप के लगातार दावों के बीच वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि भारत में मतदान के लिए या किसी अन्य उद्देश्य के लिए 21 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 180 करोड़ रुपये खर्च किए जाने थे। क्षेत्रीय सहायता कार्यक्रमों की जानकारी रखने वाले तीन लोगों के हवाले से यह दावा किया गया है। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, 'डीओजीई यानी अमेरिकी दक्षता विभाग ने इस ख़बर पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। व्हाइट हाउस और विदेश विभाग ने जवाब नहीं दिया।'
जिस कंसोर्टियम फॉर इलेक्शन्स एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग यानी सीईपीपीएस के माध्यम से ऐसे फंड ख़र्च किए जाते हैं, उसके अधिकारियों ने अमेरिकी अख़बार को बताया कि 'डीओजीई के विवरण से मेल खाने वाले ग्रांट का कोई रिकॉर्ड नहीं है। हमारे पास 21 मिलियन डॉलर का अनुबंध था, लेकिन वो भारत के लिए नहीं, बल्कि पड़ोसी देश बांग्लादेश के लिए था।'
सीईपीपीएस के अमेरिकी अधिकारी ने कहा, 'ऐसा लगता है कि वे अन्य कार्यक्रमों से संख्याओं को घालमेल कर रहे हैं।' सहायता कार्यक्रमों की जानकारी रखने वाले एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा, 'हम भारत में चुनावों के बारे में कुछ नहीं जानते क्योंकि हम कभी इसमें शामिल नहीं थे। सीईपीपीएस में हम सभी डीओजीई के इस दावे को देखकर हैरान थे।'
वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है- यह ग़लत दावा बीजेपी के उस लंबे समय से चले आ रहे नैरेटिव के साथ मेल खाता है कि अमेरिका सहित विदेशी ताक़तें मोदी सरकार को कमजोर करने और घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए काम कर रही हैं। एक्स और अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर, प्रधानमंत्री के कुछ दक्षिणपंथी समर्थकों ने सोशल इन्वेस्टर जॉर्ज सोरोस और 'डीप स्टेट' की साज़िश के सिद्धांत फैलाए हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस ने भी एक पड़ताल कर रिपोर्ट दी कि भारत के लिए 21 मिलियन डॉलर का कोई फंड नहीं आया। रिपोर्ट में कहा गया कि रिकॉर्डों से पता चलता है कि 21 मिलियन डॉलर की यह राशि 2022 में भारत के लिए नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लिए स्वीकृत की गई थी। इसमें से 13.4 मिलियन डॉलर पहले ही बाँटे जा चुके हैं।
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