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क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना टीका खरीद कर राज्यों को मुफ़्त देने का एलान पूरे देश में बढतेे ज़बरदस्त असंतोष और गुस्से को रोकने के लिए किया? क्या उन्होंने कोरोना नीति पर सुप्रीम कोर्ट से कई बार फटकार खाने के कारण उसमें बदलाव करने का फ़ैसला किया? क्या वे इसके जरिए कोरोना टीका के लिए मची अफरातफरी और पूरी व्यवस्ता के ध्वस्त होने का ठीकरा राज्यों पर फोड़ने के लिए किया?
ये कई सवाल राष्ट्र के नाम नरेंद्र मोदी के संबोधन से उठने लगे हैं।
बता दें कि सोमवार की शाम प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने एलान किया कि केंद्र 18 से ऊपर के सभी लोगों के लिए कोरोना टीका खरीद कर राज्यों को मुफ़्त देगा। इसके अलावा उन्होंने ग़रीबों के दिए जा रहे मुफ़्त राशन की व्यवस्था नवंबर तक बढ़ा दी।
प्रधानमंत्री ने किसी का नाम लिए बग़ैर कहा कि पहले तो टीका के लिए दशकों इंतजार करना पड़ता था, लेकिन उनकी सरकार ने बहुत की कम समय में कोरोना टीका का इंतजाम कर लिया। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, पर यह साफ़ है कि वे जब पहले की सरकार की बात कह रहे थे तो उनका मतलब कांग्रेस की सरकारें थीं। ज़ाहिर, मोदी इसके जरिए कांग्रेस पर निशाना साध रहे थे।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि मोदी के निशाने पर ग़ैर-बीजेपी शासित राज्य थे। उन्होंने कोरोना नीति की नाकामी के लिए इन राज्य सरकारों को यह कह कर ज़िम्मेदार ठहरा दिया कि राज्यों ने कहा था कि कोरोना टीकाकरण का विकेंद्रीकरण कर दिया जाए, यह तो राज्य का मामला है लिहाजा राज्य ही इस पर फ़ैसला करे, वगैरह वगैरह। लेकिन बाद में राज्य इसे नहीं कर पाए और तब ये राज्य ही कहने लगे कि पहले की व्यवस्थ ही ठीक थी, यानी केंद्र जो टीका खरीद रहा था, वही ठीक था।
प्रधानमंत्री ने कोरोना नीति पर केंद्र सरकार के तमाम फ़ैसलों से हाथ धो लेने की कोशिश की और यह साबित करने की कोशिश की कि राज्य सरकारों के कारण कोरोना टीका देने में दिक्क़तें आईं और राज्य सरकारें यह काम नहीं कर सकीं।
लेकिन प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि अलग-अलग खरीदारों के लिए कोरोना टीकों की अलग-अलग कीमतें क्यों रखी गई थीं। बता दें कि कोवीशील्ड के टीके की कीमत केंद्र के लिए 150 रुपए, राज्यों के लिए 450 रुपए और निजी क्षेत्र के अस्पतालों के लिए 600 रुपए रखी गई थी।
कोवीशील्ड टीका बनाने वाले सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया के अदार पूनावाला ने यह सार्वजनिक रूप से कहा था कि कंपनी को 150 रुपए में भी मुनाफ़ा हो रहा है, पर यह 'सुपर मुनाफ़ा' नही है।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई में बने तीन सदस्यों के खंडपीठ ने सरकार के इस फ़ैसले को 'मनमर्जी' और 'अतार्किक' क़रार दिया था और आदेश दिया था कि इस पर पुनर्विचार करे और दो हफ़्ते के अंदर इस पर जवाब दे।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि मोदी ने कोरोना टीका नीति पर राज्य सरकारों की ओर से हो लगातार हो रही आलोचनाओं को कुंद करने और इन राज्यों को ही ज़िम्मेदार ठहराने की भी कोशिश की है।
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, ओड़ीशा के नवीन पटनायक और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने केंद्र सरकार को अलग-अलग चिट्ठी लिखी थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह और दिल्ली के मख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री की खुले आम आलोचना की ही थी।
इसके बाद आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने 1 जून और ओडिशा, त्रिपुरा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने 2 जून को इस बारे में पत्र लिखा। इनमें से कई मुख्यमंत्रियों ने स्पष्ट मांग की कि टीका खरीद का काम केंद्र सरकार पहले की तरह अपने हाथों में ले ले।
और तो और, बीजेपी शासित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कहा था कि सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एक साथ प्रधानमंत्री से कहें तो वे कोरोना टीका नीत पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
समझा जाता है कि प्रधानमंत्री की छवि को बचाने के लिए ही केंद्र सरकार ने दावा किया है कि वह बड़े पैमाने पर कोरोना वैक्सीन की खरीद कर रही है।
सरकार का कहना है कि कोवीशील्ड की 50 करोड़ खुराक़ें, कोवैक्सीन की 38.6 करोड़ खुराक़ें, बायो ई सब यूनिट वैक्सीन की 30 करोड़ खुराक़ें, ज़ायडस कैडिला डीएनए वैक्सीन की पाँच करोड़ और स्पुतनिक वी की 5 करोड़ खुराकें खरीदी जाएंगी।
सरकार के दावे पर भरोसा किया जाए तो इसके पास दिेसंबर तक कुल मिला कर 133.6 करोड़ खुराक़ कोरोना टीका होगा।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि नरेंद्र मोदी अपनी खराब होती छवि से भी परेशान हैं और वे ब्रांड मोदी को हर हाल में बचाना चाहते हैं। कुछ दिन पहले अमेरिकी संस्था 'मॉर्निंग कंसल्ट' ने कहा था कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में सितंबर 2019 से अब तक 22 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है।
'मॉर्निंग कंसल्ट' का कहना है कि नरेंद्र मोदी की रेटिंग इस हफ़्ते 63 फ़ीसदी रही, जो अप्रैल की तुलना में 22 पॉइंट कम है। सर्वे के मुताबिक़, महानगरों में कोरोना के बढ़ते प्रकोप के साथ ही मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आई है।
इस सर्वे में भी महामारी से निपटने में सरकार के प्रति लोगों का भरोसा कम हुआ है। सर्वे में शामिल केवल 59 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि सरकार ने संकट से निपटने में अच्छा काम किया है।
कोरोना की पिछली लहर में ऐसे लोगों की तादाद 89 फ़ीसदी थी।
अपनी छवि को लेकर बेहद चौकन्ने रहने वाले प्रधानमंत्री ने ग़ैर-बीजेपी शासित राज्यों पर निशाना भी साध लिया और सुप्रीम कोर्ट फिर कुछ कहे, उसके पहले ही उन्होंने 'मास्टर स्ट्रोक' चल दिया।
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