कोरोना महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन ने खरीद-फ़रोख़्त और बाजार में बुनियादी बदलाव लाए हैं। यह ऐसा बदलाव जिसे क्रांतिकारी कहा जा सकता है, जिसने उपभोक्ताओं की पसंद-नापसंद, प्राथमिकता, खरीदारी के पैटर्न, उसके स्वभाव-सभी चीजों को बदल दिया है। यह बदलाव सबसे साफ़ तौर पर ऑनलाइन शॉपिंग के क्षेत्र में देखा जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनाइटेड नेशन्स कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (अंकटाड) ने 2020 में लगाए गए पहले दौर के लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन शॉपिंग में होने वाले परिवर्तनों के अध्ययन के लिए शोध किया।
इस सर्वे में विकसित देश और विकासशील देश, दोनों के उपभोक्ताओं को शामिल किया गया था। इसके अनुसार, विकसित देशों में तो पहले भी ऑनलाइन शॉपिेंग थी जो लॉकडाउन में बढ़ गई, लेकिन विकासशील देशों में पहले यह कम थी और उनमें अधिक विकास हुआ।
अंकटाड का शोध
लॉकडाउन की वजह से यह साफ हो गया कि डिजिटल टेक्नोलॉजी लोगों को घर बैठे आराम से पसंद की चीजें खरीदने का मौका देता है। इसके साथ ही भुगतान के तरीके में भी पता चला कि डिजिटल पेमेंट आसान ही नहीं तेज और सुरक्षित भी है। जिन देशों में फिलहाल ऑनलाइन बहुत लोकप्रिय नहीं है, वहाँ उसके बहुत तेज़ी से आगे बढ़ने की संभावना है।
क्या है अंकटाड की रिपोर्ट में?
अंकटाड की इस रिपोर्ट के मुताबिक़, इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी चीजें, दवा व स्वास्थ्य से जुड़े उपकरण व दूसरे उत्पाद, किताबें व ऑनलाइन पढ़ाई के कोर्स, बहुत अधिक बिके।
एक ओर जहाँ ऑनलाइन शॉपिंग बढ़ी, वहीं दूसरी ओर इस पर खर्च किए जाने वाले पैसे में कमी आई है। यानी ऑनलाइन शॉपिंग बढ़ने के बावजूद पैसे नहीं बढ़े।
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यह भी देखा गया कि माइक्रोसॉफ़्ट टीम्स, ज़ूम, वीचैट, डिंग टॉक, फ़ेसबक और वॉट्सऐप के जरिए अधिक कारोबार हुआ और वे पहले से बहुत अधिक लोकप्रिय हो गए।
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'रीसर्च एंड मार्केट्स'
'रीसर्च एंड मार्केट्स' नामक संस्था बाज़ार पर शोध करती है, उसने 'इम्पैक्ट ऑफ कोविड-19 ऑन द ई-कॉमर्स मार्केट' नामक शोध प्रकाशित किया।
इस शोध में कहा गया है कि जिन देशों में सूचना प्रौद्योगिकी, इंटरनेट और डिजिटिल पेमेंट जैसी सुविधाएं पहले से थीं, वहां लोगों को कोविड-19 के दौरान सामान खरीदने में अधिक सुविधाएं हुईं। इंटरनेट वगैरह के कारण पहले भी वहाँ ई-कॉमर्स था, लेकिन कोविड-19 के दौरान सोशल डिस्टिंग और लॉकडाउन के कारण यह तेज़ी से बढ़ा।
जिन क्षेत्रों में वहां पहले से सुविधाएं नहीं थीं, वहां ये सुविधाएं विकसित होती गईं और ऑनलाइन कारोबार बढ़ता गया।
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मैकिंजे का अध्ययन
दुनिया की सबसे बड़े मैनेजमेंट कंसलटेन्सी कंपनी मैकिंजे एंड कंपनी ने अपने विशाल नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए 45 देशों में उपभोक्ताओं के व्यवहार पर कोरोना के प्रभाव का अध्ययन किया। इसमें भारत भी है।
इस अध्ययन में कहा गया है कि भारत, चीन और इंडोनेशिया में ऑनलाइन बाज़ार में बहुत ही अधिक संभावनाएं हैं, लेकिन अमेरिका और जापान जैसे विकसित बाज़ार में संभावनाएं कम होने की आशंका है।
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इसमें सबसे ज़्यादा तेज़ी भारत में देखी गई है। भारत में जितने लोगों का सर्वे किया गया, उनमें से 96 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने खरीदारी में नए किस्म के प्रयोग के बारे में सोचा है। इनमें से 78 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे आगे भी ऐसा करते रहेंगे।
मैकिंजे एंड कंपनी के अध्ययन के मुताबिक भारत में जिन उत्पादों की ऑनलाइन खरीद बढ़ीं, उनमें प्रमुख हैं, किराना की चीजें, नाश्ता पानी, खाने की चीजें, शराब, कपड़े। इसके अलावा दवाएं, विटामिन वगैरह की बिक्री भी बढ़ी। लेकिन जूते और मेक अप की चीजों की बिक्री कम हुई।
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भारत में ऑनलाइन क्षेत्र में टाटा समूह और रिलायंस समूह में बड़-बड़े निवेश हुए हैं।
टाटा क्लिक, स्टार क्विक, टाटा स्काई और क्रोमा चार तो ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म ही हैं, जहां टाटा का सामान मिलता है। सुपर ऐप बिजनेस में यह सारे कारोबार एक साथ हो जाएंगे।
इसके अलावा टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, टाटा ग्लोबल बेवरेजेस, टाइटन, क्रोमा, वेस्टसाइड और लैंडमार्क वो कंपनियां हैं, जो अलग- अलग तरह के सामान सीधे उपभोक्ताओं को बेचती भी हैं और तमाम दूसरे रिटेलरों को सप्लाई भी करती हैं।
वॉलमार्ट लंबे समय से भारत के बाज़ार में पैर जमाने की कोशिश में है। टाटा ग्रुप के साथ सौदा करते ही उसे इस काम के लिए एक भरोसेमंद और वजनदार पार्टनर मिल जाएगा। देखने की बात यह है कि अब रिटेल के बिजनेस में टाटा और अंबानी घराने की जंग आम खरीदार पर ऑफर्स की बरसात करेगी या छोटे कारोबारियों के लिए मुसीबत बनने के बाद खरीदार का भी तेल निकालने का इंतजाम।
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