न्यायाधीशों की नियुक्ति पर सरकार और न्यायपालिका के बीच तो तनातनी चलती ही रही है, हाल में अब संविधान के मूलभूत सिद्धांत को लेकर भी टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश जहाँ संविधान के मूल ढाँचा को बरकरार रखने के पक्ष में तर्क देते रहे हैं, वहीं, अब सरकार की ओर से यह तर्क रखा जाने लगा गया है कि जनता की नुमाइंदा संसद सर्वोच्च है और इसे ही आख़िरकार सब तय करने का अधिकार है। यानी इस तर्क के अनुसार संसद संविधान के हर क़ानून का संशोधन कर सकती है।
सरकार बनाम न्यायपालिका: संसद की सर्वोच्चता चाहते हैं क़ानून मंत्री?
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- 22 Jan, 2023
संविधान के मूल ढाँचा का सुप्रीम कोर्ट का सिद्धांत मोदी सरकार को खटकता क्यों है? आख़िर एक के बाद एक बयान संसद की सुप्रीमेसी पर क्यों आ रहे हैं? जानिए, अब क़ानून मंत्री किरेण रिजिजू ने क्या कहा।

कुछ ऐसे ही विचार रखने वाले एक सेवानिवृत्त जज के इंटरव्यू को साझा करते हुए क़ानून मंत्री ने फिर से इस बहस को तेज़ कर दिया है। उन्होंने ट्वीट किया है, 'एक जज की नेक आवाज: भारतीय लोकतंत्र की असली खूबसूरती इसकी सफलता है। जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से स्वयं शासन करती है। चुने हुए प्रतिनिधि लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कानून बनाते हैं। हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है लेकिन हमारा संविधान सर्वोच्च है।'