न्यायाधीशों की नियुक्ति पर सरकार और न्यायपालिका के बीच तो तनातनी चलती ही रही है, हाल में अब संविधान के मूलभूत सिद्धांत को लेकर भी टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश जहाँ संविधान के मूल ढाँचा को बरकरार रखने के पक्ष में तर्क देते रहे हैं, वहीं, अब सरकार की ओर से यह तर्क रखा जाने लगा गया है कि जनता की नुमाइंदा संसद सर्वोच्च है और इसे ही आख़िरकार सब तय करने का अधिकार है। यानी इस तर्क के अनुसार संसद संविधान के हर क़ानून का संशोधन कर सकती है।