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फ़ोटो साभार: राज्यसभा टीवी/वीडियो ग्रैब

न्यायपालिका में रिक्तियों का मुद्दा क्यों लटका है? क़ानून मंत्री से जानिए

उच्च न्यायपालिका में खाली पदों के मुद्दे पर केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सरकार की राय से संसद को अवगत कराया। उन्होंने वह कारण बताया जिसकी वजह से उन पदों को भरने में दिक्कत आ रही है। उन्होंने गुरुवार को राज्यसभा को बताया कि उच्च न्यायपालिका में रिक्तियों और नियुक्तियों का मुद्दा तब तक लटका रहेगा, जब तक कि इसके लिए नई व्यवस्था नहीं बन जाती है। तो आख़िर यह नयी व्यवस्था क्या है, जिसके लिए सरकार जोर देती है?

राज्यसभा में उनके दिए बयान से इसके बारे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है। रिजिजू ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में सवालों का जवाब देते हुए कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति पर केंद्र के पास सीमित अधिकार हैं।

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रिजिजू बड़ी संख्या में लंबित मामलों पर राज्यसभा में एक सवाल का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की कुल संख्या पांच करोड़ को छूने वाली है। उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक है कि देश भर में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। मंत्री ने कहा कि मूल कारण न्यायाधीशों की रिक्तियां थीं।

इसके साथ ही क़ानून मंत्री ने संसद को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में 5 दिसंबर तक 34 न्यायाधीशों के स्वीकृत पद हैं, लेकिन 27 न्यायाधीश नियुक्त हैं। उच्च न्यायालयों में 1,108 की स्वीकृत पद हैं लेकिन 777 न्यायाधीश काम कर रहे हैं। और 331 पद यानी क़रीब 30 फ़ीसदी पद खाली हैं।

इस बीच उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों के एक कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली की आलोचना की। बता दें कि कॉलेजियम प्रणाली को लेकर सरकार मुखर है। सुप्रीम कोर्ट के जज चाहते हैं कि कॉलेजियम प्रणाली जारी रहे और उनकी नियुक्ति जज ही करें और उसमें सरकार का दखल नहीं हो। लेकिन सरकार चाहती है कि कॉलेजियम सिस्टम बदले।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, क़ानून मंत्री ने आज संसद में कहा, 'सरकार ने लंबित मामलों को कम करने के लिए कई क़दम उठाए, लेकिन न्यायाधीशों की रिक्तियों को भरने में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है। कॉलेजियम नामों का चयन करता है, और इसके अलावा सरकार को न्यायाधीशों की नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है।' 

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उन्होंने कहा कि 'सरकार ने अक्सर भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को नाम भेजने के लिए कहा जो गुणवत्ता और भारत की विविधता को दर्शाता हो और महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व देता हो।' उन्होंने कहा, 

हम लंबित मामलों को कम करने के लिए अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं। लेकिन जब तक हम नियुक्तियों के लिए एक नई प्रणाली नहीं बनाते तब तक न्यायाधीशों की रिक्तियों और नियुक्तियों पर सवाल उठते रहेंगे।


किरेन रिजिजू, केंद्रीय क़ानून मंत्री

रिजिजू ने सदन को यह भी बताया कि न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने के लिए जल्द से जल्द नाम भेजने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों को मौखिक और लिखित दोनों तरह से अनुरोध किया गया है।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को फिर से लाएगी, रिजिजू ने कहा कि 'कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, प्रमुख न्यायविदों, वकीलों और राजनीतिक दलों के नेताओं की राय है कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा अधिनियम को रद्द करने में सुप्रीम कोर्ट सही नहीं था।'

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बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली को अधिक व्यापक, पारदर्शी, जवाबदेह बनाने और प्रणाली में निष्पक्षता लाने के लिए सरकार ने संविधान (निन्यानवे संशोधन) अधिनियम, 2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को 13 अप्रैल, 2015 से प्रभावी किया था। हालाँकि, अधिनियमों को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी। अदालत ने 16 अक्टूबर, 2015 के एक फ़ैसले में दोनों अधिनियमों को असंवैधानिक करार दे दिया था।

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क़मर वहीद नक़वी
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