हिजाब विवाद में कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद याचिकाकर्ताओं के वकील केवी धनंजय ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हाई कोर्ट ने हिजाब पर बैन को जारी रखते हुए इस मामले में दायर सभी पांच याचिकाओं को खारिज कर दिया है। दूसरी ओर, कर्नाटक सरकार ने फैसले का स्वागत किया है तो जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने फैसले को निराशाजनक बताया है।
इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस. दीक्षित और जस्टिस जेएम खाज़ी ने 11 दिन तक सुनवाई की थी।
फ़ैसले पर स्टूडेंट इसलामिक ऑर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद अहमद ने कहा है कि यह अदालत का काम नहीं है कि वह इस बात की व्याख्या करे कि किसी भी धर्म में क्या जरूरी है और क्या नहीं। उन्होंने कहा कि वह उन सभी मुसलिम लड़कियों के साथ खड़े हैं जो अदालत के इस आदेश से परेशान हैं। उन्होंने कहा कि वे इस मामले में कानूनी राय ले रहे हैं।
क्या कहा हाई कोर्ट ने?
हाई कोर्ट ने कहा है कि शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन जारी रहेगा और यह जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हिजाब के मामले में जिस तरह विवाद बढ़ा, उससे ऐसा लगा कि कुछ ‘छिपे हुए हाथ’ इस मामले में सामाजिक अशांति फैलाने का काम कर रहे थे। अदालत ने कहा कि हम इस बात से भी निराश हैं कि किस तरह एक अकादमिक सत्र के बीच में हिजाब के मुद्दे को पैदा किया गया और इसे इतना बड़ा बना दिया गया।
हिजाब विवाद जनवरी में शुरू हुआ था जब उडुपी के एक स्कूल की छात्राओं ने शिक्षकों के अनुरोध के बावजूद हिजाब हटाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद पांच छात्राएं कोर्ट ;चली गईं। छात्रों के एक वर्ग ने भगवा स्कार्फ पहन कर हिजाब का विरोध किया।
स्वागत व विरोध
हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद इसका स्वागत और विरोध दोनों हुआ है। केंद्रीय मंत्री और कर्नाटक से ही आने वाले प्रल्हाद जोशी ने कहा है कि वह अदालत के इस फैसले का स्वागत करते हैं। उन्होंने लोगों से अपील की है कि सभी लोगों को अदालत के फैसले को स्वीकार करना चाहिए और छात्रों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, इसलिए बाकी चीजों को किनारे रखकर एकजुट रहकर पढ़ाई करनी चाहिए।
जबकि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अदालत के फैसले को बेहद निराशाजनक बताया है। उन्होंने कहा है कि अदालत ने मूल अधिकार को भी बरकरार नहीं रखा और यह एक मजाक है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी इस फैसले को निराशाजनक बताया है। उन्होंने कहा है कि एक ओर हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते हैं लेकिन दूसरी ओर हम उन्हें उनका हक देने से भी इनकार कर रहे हैं।
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