देश भर में एक के बाद एक मस्जिदों पर मुकदमे दायर किए जाने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने एक रास्ता बताया है। उन्होंने गुरुवार को कहा कि हालाँकि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला धर्मनिरपेक्षता के लिए न्याय का मजाक था, लेकिन 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की पुष्टि करने वाले फैसले के पांच पन्ने एक उम्मीद की किरण थे। उन्होंने कहा कि फ़ैसले के उन पाँच पन्नों को देश भर की निचली अदालतों और हाईकोर्टों में पढ़ाया जाना चाहिए।
मस्जिदों पर मुकदमे रोकने को अयोध्या फैसला हर कोर्ट में पढ़ा जाए: जस्टिस नरीमन
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- 5 Dec, 2024
काशी और मथुरा में मस्जिदों के नीचे मंदिर होने के दावे के बाद संभल, अजमेर में भी इसी तरह के मामले आए हैं। देश भर में अब आ रहे ऐसे मामलों को रोकने का क्या तरीक़ा है? जानिए, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने क्या उपाय सुझाया।

जस्टिस नरीमन ने आगे कहा कि अयोध्या विवाद पर संविधान पीठ के फैसले के वे पांच पन्ने देश भर में चल रहे मुकदमे का जवाब हैं, जिसमें पहले कथित तौर पर मंदिरों के ऊपर बनाई गई मस्जिदों का सर्वेक्षण करने की मांग की गई है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस नरीमन ने कहा, 'और यही संविधान पीठ इस पर पांच पन्ने खर्च करती है और कहती है कि धर्मनिरपेक्षता में यह सही है, जो मूल ढांचे का हिस्सा है कि आप पीछे नहीं देख सकते, आपको आगे देखना होगा।'