आतंकनिरोधी क़ानून, यूएपीए और राजद्रोह के प्रावधानों का इस्तेमाल कर जिस तरह विरोधियों को निशाने पर लिया जा रहा है और असहमति की आवाज़ों को कुचला जा रहा है, उस पर न्यायपालिका में चिंता बढ़ती जा रही है।