मुंबई में रविवार देर रात कई कॉलेजों के छात्र जेएनयू में हुई हिंसा के विरोध में 'गेटवे ऑफ़ इंडिया' पर जुटे। इन छात्रों ने तिरंगे लहराए, मोमबत्तियां जलाईं और इस बर्बरता के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई लड़ने का एलान किया। 'गेटवे ऑफ़ इंडिया' पर रात भर प्रदर्शनकारी डटे रहे।
Mumbai: Students continue to protest outside Gateway of India against yesterday's violence in Jawaharlal Nehru University (JNU). #Maharashtra https://t.co/6uNb1f9iZR pic.twitter.com/6p2sikQLgl
— ANI (@ANI) January 6, 2020
कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी के छात्र भी जेएनयू के छात्रों के समर्थन में उतरे और उन्होंने प्रदर्शन किया। एएमयू के छात्रों ने भी इस घटना के विरोध में प्रदर्शन किया है। कई विश्वविद्यालयों की टीचर्स एसोसिएशन ने जेएनयू में हुई हिंसा की कड़ी निंदा की है और कार्रवाई करने की मांग की है। हैदराबाद और बेंगलुरू में भी छात्रों ने जेएनयू के छात्रों के साथ हुई मारपीट के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है।
Breaking: Students at Kolkata's #Jadavpur university begin protest in solidarity with #JNU pic.twitter.com/hZYq9gfFVi
— Indrojit | ইন্দ্রজিৎ (@iindrojit) January 5, 2020
किसी पर कोई आरोप पहली बार लगे तो वह अपने बचाव में उसे नकार सकता है और लोग उस पर भरोसा भी कर सकते हैं। लेकिन जब बार-बार आरोप लगेंगे तो लाख बचाव करने के बाद भी लोग कहेंगे कि कहीं कुछ गड़बड़ी ज़रूर है, वरना आरोप क्यों लग रहे हैं। केंद्र की मोदी सरकार पर बार-बार यह आरोप लगता है कि 2014 में जब से वह केंद्र की सत्ता में आयी है, विश्वविद्यालयों में छात्र शक्ति के दमन पर तुली है। जेएनयू में पिछले पाँच साल से आए दिन हो रहा बवाल हो, जामिया के छात्रों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई हो, अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में छात्रों की आवाज़ दबाने की कोशिश हो, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों पर लाठीचार्ज हो, रोहित वेमुला के पक्ष में हुए आंदोलन को कुचलने की कोशिश हो या ऐसे कई और मामले। इन सभी मामलों में विपक्षी दलों ने मोदी सरकार से बार-बार कहा कि वह छात्रों के धैर्य की परीक्षा न ले। वैसे भी देश का इतिहास गवाह रहा है कि इंदिरा गाँधी जैसी ताक़तवर नेता की सत्ता को छात्रों के आंदोलन से ही शुरू हुए जेपी आंदोलन ने उखाड़ फेंका था।
जामिया के छात्र जब नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे तब भी पुलिस ने कैंपस के अंदर घुसकर छात्र-छात्राओं को बुरी तरह पीट दिया था। पुलिस को किसने इस बात के लिए रोका है कि वह प्रदर्शन में शामिल उपद्रवियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई न करे। लेकिन कैंपस में घुसकर छात्र-छात्राओं को पीट देना कहां का न्याय है।
हाल ही में जेएनयू के छात्र-छात्राएं हॉस्टल में फ़ीस बढ़ोतरी और अन्य माँगों को लेकर अपनी एकजुटता दिखा चुके हैं। पुलिस ने तब भी उन्हें पीटा लेकिन वे पिटते रहे और लड़ते रहे। छात्र-छात्राओं का सीधा संदेश यह है कि कोई भी सरकार छात्रों के सब्र की परीक्षा न ले और अगर ले तो वह मुखालफ़त झेलने के लिए भी तैयार रहे।
मोदी सरकार को यह समझना होगा कि जामिया से लेकर जेएनयू और एएमयू के छात्रों पर पुलिसिया बर्बरता हो या नक़ाबपोश गुंडों के उनके कैंपस में घुसने का मामला। आम छात्र जो किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ा है और उसका वामपंथ और दक्षिणपंथ की राजनीति से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है, वह भी इस बात को बर्दाश्त नहीं करेगा कि पुलिस या गुंडे उसके कैंपस में घुसें और गुंडई और दादागिरी करें। और जब यह आम छात्र इस लड़ाई को हाथ में ले लेंगे तो इसे संभालना बहुत मुश्किल हो सकता है।
विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र बालिग होते हैं, वे सब कुछ समझते हैं। उन्हें बरगलाना बेहद मुश्किल होता है और वे देश के वोटर भी हैं। वे इस बात को लेकर सोचेंगे ज़रूर कि आख़िर उनके कैंपस में गुंडागर्दी क्यों हो रही है, फिर वे आवाज़ उठाएंगे, आवाज़ दबाने के लिए सरकार दमन चक्र चलाएगी और यह तय है कि नतीजा सरकार के ख़िलाफ़ ही आएगा।
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