ड्रैगन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव के बीच दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प की लगातार ख़बरें आ रही हैं। गलवान में हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों ने सैन्य, कूटनीतिक स्तर पर वार्ता जारी रखी है लेकिन लगता है कि ड्रैगन पैंगोंग त्सो झील के इलाक़े से पीछे हटने को तैयार नहीं है और लगातार उकसावे की कार्रवाई कर रहा है। इसे लेकर सीमा पर तनाव बरकरार है।
ताज़ा ख़बर यह आई है कि 10 सितंबर को जब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग ई की मॉस्को में मुलाक़ात हुई थी, तो उससे पहले पैंगोंग त्सो के उत्तरी इलाक़े में दोनों देशों के सैनिकों के बीच फ़ायरिंग हुई थी।
इस घटना से वाक़िफ सरकार के एक आला अधिकारी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि फ़ायरिंग की यह घटना उस वक्त़ हुई जब दोनों देशों के सैनिकों की ओर से पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी इलाक़े की चोटियों पर हावी होने की कोशिश की जा रही थी। अफ़सर ने बताया कि हवा में दोनों ओर से 100 से 200 गोलियां दागी गईं।
45 साल बाद चली गोली
इससे पहले भारत और चीन के बीच चुशूल के इलाक़े में भी मुखपारी की चोटियों पर फ़ायरिंग की घटना हुई थी। अफ़सरों का कहना है कि 45 साल में यह पहली बार हुआ है जब एलएसी पर गोलियां चली हैं। अफ़सर ने अख़बार से कहा कि सितंबर के पहले हफ़्ते में पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी इलाक़े में काफ़ी मूवमेंट रहा और फ़ायरिंग की कई घटनाएं हुईं।
चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जवानों ने 29-30 अगस्त की रात को पैंगोंग त्सो झील के इलाक़े में भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश की थी। इसके बाद पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी किनारे पर काला टॉप और हेलमेट टॉप आदि चोटियों पर भारतीय सैनिकों द्वारा कब्जा जमा लेने के बाद चीनी सेना तिलमिलाई हुई है।
अख़बार के मुताबिक़, पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी इलाक़े में भारत और चीन के जवान एक-दूसरे से सिर्फ़ 300 मीटर की दूरी पर हैं। इसी तरह उत्तरी इलाक़े में, जहां फ़ायरिंग की घटना हुई, दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी पर तैनात हैं।
चीनी विदेश मंत्री के साथ हुई बैठक में एस. जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सेना द्वारा की गई भारी सैन्य तैनाती के पीछे कोई कारण नहीं था और यह बेहद चिंताजनक है। उन्होंने यह भी कहा था कि एलएसी पर भारी संख्या में चीनी सैनिकों की जमावट 1993 और 1996 के विश्वास निर्माण समझौतों के विपरीत है और इससे संघर्ष की स्थिति पैदा हुई है।
भारत की ओर से यह बार-बार कहा गया है कि वह सीमा पर शांति का पक्षधर है लेकिन क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के साथ किसी भी क़ीमत पर कोई समझौता नहीं होगा।
इस विषय पर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा की रॉ के पूर्व अतिरिक्त सचिव जयदेव रानाडे के साथ चर्चा।
रक्षा मंत्री का स्पष्ट संदेश
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी चीनी रक्षा मंत्री के साथ हुई मुलाक़ात के बाद 15 सितंबर को संसद में कहा कि 6 जून को दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए थे कि एलएसी को माना जाएगा लेकिन 15 जून को चीन की ओर से हिंसक झड़प की स्थिति बनाई गई। राजनाथ सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा, ‘चीन को बता दिया गया है कि इस तरह की गतिविधियां एलएसी पर यथास्थिति को बदलने का प्रयास है और यह भारत को किसी भी स्थिति पर मंजूर नहीं है।’
राजनाथ सिंह ने कहा था कि चीन की वजह से कई बार एलएसी के आसपास झड़प की स्थिति पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि हालांकि इस बार की स्थिति पहले से बहुत अलग है लेकिन हम फिर भी मौजूदा हालात का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं।
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