प्रदूषण पर जारी एक रिपोर्ट में भारत की स्थिति बेहद ख़राब बताई गयी है। स्विट्ज़रलैंड की आईक्यू एयर ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया में शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में से 6 भारत के शहर हैं। इतना ही नहीं, यदि सबसे ज़्यादा प्रदूषित 20 शहरों की बात की जाए तो उसमें भारत के 14 शहर आते हैं।
दुनिया के प्रदूषित शीर्ष 50 शहरों में से 39 और शीर्ष 100 में से 61 शहर भारत के हैं। इस रिपोर्ट के हिसाब से भारत 2022 में दुनिया का आठवाँ सबसे प्रदूषित देश था। इससे पिछले वर्ष यानी 2021 में पाँचवें स्थान पर था। दुनिया के 131 देशों के 30 हजार ग्राउंड बेस्ड मॉनिटरिंग और सरकार से मिले आँकड़ों के अध्ययन के बाद यह रिपोर्ट जारी की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएम 2.5 का स्तर गिरकर 53.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गया है, जो अभी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से 10 गुना अधिक है।
स्विस फर्म आईक्यू एयर ने मंगलवार को 'वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट' नाम से इसको जारी किया है। यह पीएम 2.5 के स्तर पर आधारित है। 131 देशों का डेटा 30,000 से अधिक ग्राउंड-आधारित मॉनिटरों से लिया गया है। ये या तो सरकारी या गैर-सरकारी संचालित हैं। दुनिया भर के 7,300 से अधिक शहरों का आँकड़ा जुटाया गया है।
प्रदूषण के प्रमुख कारकों में पीएम 2.5 है। प्रदूषण के अन्य स्रोत औद्योगिक इकाइयाँ, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र और बायोमास हैं।
पाकिस्तान में लाहौर और चीन में होतान शीर्ष दो सबसे प्रदूषित शहर हैं। इन दो शहरों के बाद भारत के शहरों का नंबर आता है। राजस्थान का भिवाड़ी तीसरे और दिल्ली चौथे स्थान पर है। 92.6 माइक्रोग्राम पर दिल्ली का पीएम 2.5 स्तर सुरक्षित सीमा से लगभग 20 गुना अधिक है। वैसे दिल्ली, तकनीकी रूप से अब सबसे प्रदूषित राजधानी नहीं है।
दिल्ली अब तक दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी रही है लेकिन इस साल की रिपोर्ट ने 'ग्रेटर' दिल्ली और नई दिल्ली राजधानी के बीच अंतर किया है। दोनों शीर्ष 10 में हैं लेकिन नई दिल्ली दूसरे स्थान पर है और दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी अब चाड का एन'जामेना शहर है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि नजमेना की आबादी दस लाख से भी कम है जबकि नई दिल्ली की आबादी चालीस लाख से अधिक है।
लेकिन इसके साथ ही एक अच्छी ख़बर भी है। दिल्ली के पड़ोस के शहरों गुरुग्राम, नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद में प्रदूषण के स्तर में गिरावट देखी गई है। गुरुग्राम में 34 प्रतिशत से लेकर फरीदाबाद में 21 प्रतिशत तक। दिल्ली में मुश्किल से यह 8 फीसदी की गिरावट आई है।
प्रदूषण यानी ख़राब हवा का असर सेहत पर बहुत ज़्यादा होता है। इससे हर साल लाखों लोगों की मौत होती है।
इसको समझने के लिए ख़राब हवा यानी वायु प्रदूषण के असर की द लैंसेट की रिपोर्ट को देखना चाहिए। पिछले साल मई में 'द लैंसेट' प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित द लैंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ ने कहा था कि 2019 में सभी तरह के प्रदूषणों के कारण भारत में 23 लाख से अधिक लोगों की अकाल मृत्यु हुई। यह दुनिया में सबसे ज़्यादा है। दुनिया भर में ऐसी 90 लाख मौतों में से एक चौथाई से अधिक भारत में हुई हैं।
इसमें भी चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि 2019 में प्रदूषण से भारत में हुई कुल मौतों में से 16.7 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण यानी ख़राब हवा ज़िम्मेदार थी। देश में उस वर्ष सभी मौतों में से 17.8% मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं।
द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित उस रिपोर्ट के अनुसार किसी भी देश में वायु प्रदूषण से संबंधित मौतों की यह सबसे बड़ी संख्या है।
बता दें कि PM2.5 का एक्यूआई से सीधा संबंध है। एक्यूआई यानी हवा गुणवत्ता सूचकांक से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं। लेकिन स्वास्थ्य के लिए ये बेहद ख़तरनाक होते हैं। कई बार तो ये कण जानलेवा भी साबित होते हैं। 201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘ख़राब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत ख़राब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है।
मोटे तौर पर कहें तो दो तरह के प्रदूषण फैलाने वाले तत्व हैं। एक तो पराली जलाने, वाहनों के धुएँ व पटाखे जलाने के धुएँ से निकलने वाली ख़तरनाक गैसें और दूसरी निर्माण कार्यों व सड़कों से उड़ने वाली धूल। इतने बड़े पैमाने पर पटाखे जलाने का मामला साल में एक बार ही आता है, लेकिन वाहनों से धुएँ निकलने या फिर निर्माण कार्यों से धूल उड़ने का मामला पूरे साल बना रहता है। पराली जलाने का मामला भी साल में दो अवसरों पर आता है।
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