भारत-चीन रिश्तों में खटास, सीमा पर तनाव, वास्तविक नियंत्रण रेखा के आर-पार दोनों तरफ से सैनिकों और सेना के साजो-सामान का जमावड़ा और ख़ूनी झड़प के बावजूद समस्या के निपटारे का कोई छोर नज़र नहीं आ रहा है।
कूटनीतिक, राजनीतिक और सीमा पर सैनिक कमांडरों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, पर बात आगे बढ़ ही नहीं रही है, मामला जस का तस रुका हुआ है।
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समझा जाता है कि बातचीत लंबी खिंचेगी, भारत को पूरे धैर्य के साथ महीनों इंतजार करना होगा। सरकार, राजनयिक और सेना के आला अफ़सर अब महीनों की बातचीत के लिए मन बना चुके हैं।
अड़ियल चीन
समझा जाता है कि इसकी मुख्य वजह चीन का अड़ियल रवैया है जो किसी कीमत पर एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। पीपल्स लिबरेशन आर्मी का कहना है कि उसके सैनिक जहाँ तक पहुँच चुके हैं, वह पूरा इलाक़ा उनका है, वे अपनी सरज़मीन पर हैं, फिर वहाँ से पीछे हटने की बात क्यों की जा रही है।चीन के साथ बातचीत में भारत का पूरा ज़ोर इस पर है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी कम से कम इस विवाद के शुरू होने के पहले की स्थिति तक लौट जाए।
यानी विवाद के शुरू होने के पहले चीनी सैनिक जिस जगह तक थे, पहले वहाँ तक लौट जाएं, सीमा विवाद पर बाद में बात होगी। मौजूदा बातचीत का सारा ज़ोर चीन को इसके लिए राजी करने पर है।
कई स्तर पर बातचीत
पहले 6 जून और उसके बाद 22 जून को कोर कमांडर स्तर पर बातचीत हुई। दिल्ली और बीजिंग में राजनयिक स्तर पर बातचीत हुई। राजनीतिक स्तर पर दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के बीच बातचीत हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने चिंता जताई, संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के महासचिव अंटोनियो गुटरस ने चिंता जताई, दोनों पक्षों से संयम बरतने को कहा। पर गाड़ी आगे बढ़ ही नहीं रही है, जिच बरक़रार है।इसका नतीजा यह है कि भारत बड़े पैमाने पर वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास जमावड़ा कर रहा है ताकि बातचीत के दौरान दबाव उस पर न हो, चीन पर हो।
भारत की तैयारियाँ
मामला सिर्फ नए विवादित जगहों तक सीमित नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने कहा है कि चीन के साथ लगने वाली 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा में कई जगहों पर भारतीय सैनिक पूरे साजो-सामान के साथ जमा हो चुके हैं या हो रहे हैं। इसके अलावा पर्याप्त मात्रा में रिज़र्व भी जमा किया जा रहा है।सीमा पर सेना की तैयारियों के बीच भारत के लिए राहत की बात सिर्फ यह है कि बीजिंग इस पर राजी है कि ‘बातचीत जारी रहनी चाहिए।’
प्रक्रिया में लगे भारतीय अफ़सर इसे ही सकारात्मक मान रहे हैं कि चीन ने दरवाजा तो बंद नहीं कर दिया है, वह बात करने को तैयार है।
क्या है विकल्प?
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जहाँ तक चीनी सैनिक जमे हैं, उन्हें वहाँ रहने देने का मतलब यह है कि भारत यह मान ले कि वह इलाक़ा चीन का है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत अपनी सरज़मीन पर समझौता कर ले। लेकिन भारत सरकार और बातचीत में लगे लोगों के पास यह कोई विकल्प ही नहीं है।रूस से 3 दिनों की यात्रा से लौटने के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सेना प्रमुख से सीधी बात की। थल सेना प्रमुख एम. एम. नरवणे ने उन्हें सीमा पर जमावड़े की ज़मीनी स्थिति बताई, तैयारियों का ब्योरा दिया। नरवणे ने इसके पहले लद्दाख का दौरा किया। उनके साथ उत्तरी कमान के प्रमुख लेफ़्टीनेंट जनरल वाई. के. जोशी भी थे। उन लोगों ने स्थानीय कमांडरों से भी बात की।
लेकिन बात फिर घूम कर वहीं पहुँचती है कि सैनिक तैयारियाँ तो अपनी जगह है, पर बातचीत का क्या नतीजा निकला? और सच यह है कि बातीचत का कोई नतीजा नहीं निकला है।
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