पश्चिम यूरोप में अधिक मौतें
जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक़, स्पेन में रविवार तक हर 10 लाख की आबादी पर 350 लोगों की मौत कोरोना से हुई है। इटली में यह संख्या 322, बेल्जियम में 314, फ्रांस में 302 और ब्रिटेन में 145 है।पूर्वी यूरोप के देश रोमानिया में प्रति 10 लाख पर 15 लोगों की मौत हुई है। यह संख्या चेक गणराज्य में 15, पोलैंड में 5 और स्लोवाकिया में 0.4 है।
पूर्व में पहले लॉकडाउन
मशहूर पत्रिका वॉल स्ट्रीट जर्नल का कहना है कि इसकी बड़ी वजह यह है कि पूर्वी यूरोप के देशों ने सोशल डिस्टैंसिंग को जल्दी लागू किया और अधिक सख़्ती से उसका पालन किया।सोशल डिस्टैंसिंग
जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जिन देशों की आबादी में बुज़ुर्गों की तादाद ज़्यादा है, अस्पताल पूरी तरह उपकरणों से लैस नहीं हैं, वहाँ तेज़ी से और सख़्ती से सोशल डिस्टैंसिंग अधिक ज़रूरी है।यह भी साफ़ है कि जिन देशों में दूसरे देशों से पहुँचने वाले लोग कम हैं, जो देश दूसरे देशों से कम जुड़े हुए हैं, वहाँ कोरोना संक्रमण धीमी रफ़्तार से फैला है।
पश्चिमी यूरोप में लॉकडाउन में देर
इन देशों ने लॉकडाउन लगाने में बहुत देर कर दी। वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, 24 मार्च को जब ब्रिटेन में लॉकडाउन लगाया गया, 8 हज़ार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके थे और 422 लोगों की मौत हो चुकी थी।पूर्वी यूरोप में लॉकडाउन फायदेमंद
स्लोवाकिया ने उसी दिन लॉकडाउन का एलान किया, उस समय तक वहाँ 21 लोगों को संक्रमण हुआ था। पोलैंड ने इसके एक दिन बाद लॉकडाउन कर दिया, उस समय तक वहाँ कोरोना संक्रमण के 17 मामले सामने आए थे।चेक गणराज्य के स्वास्थ्य मंत्री एडम वोएटेक ने कहा, 'हम जानते थे कि हमारे अस्पताल हालात से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं, हमें तो स्थिति पर जल्द रिएक्ट करना ही था।'
पश्चिम की लापरवाही!
पश्चिम की लापरवाही या स्थिति समझने की नाकामी को इस तरह समझा जा सकता है कि जिस दिन पोलैंड में लॉकडाउन लगाया गया, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने अपने नागरिकों से कहा कि वे भीड़ भरे स्टेडियम में मैच देख सकते हैं।क्या कहा था ट्रंप ने?
इस मामले में अमेरिका तो और आगे निकल गया। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा :“
'हम तैयार हैं और हम इस मामले में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। और यह दूर हो जाएगा। बस, आप शांत रहें, यह चला ही जाएगा।'
डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका
आर्थिक कारण
इसकी कुछ वजहें भी हैं। पश्चिमी देशों में सरकारें आर्थिक नुक़सान के डर से सोशल डिस्टैंसिंग लागू करने में हिचक रही थीं। उन्हें यह भी लग रहा था कि लोग लंबे समय तक इन दिशा निर्देशों को नहीं मानेंगे। लेकिन बाद में देखा गया है कि ब्रिटेन में 23 मार्च से ही लॉकडाउन है और इसे हटाने की फ़िलहाल कोई योजना नहीं है।जिन देशों ने लॉकडाउन पहले लागू किया था, वे अब उससे बाहर निकलने और सामान्य जीवन एक बार फिर शुरू करने की ओर बढ़ रहे हैं।
कहाँ है भारत?
पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत में सबकुछ बहुत ही देर से शुरू हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी के बावजूद सरकार ने पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट एकत्रित करने की कोई कोशिश नहीं की, उल्टे उसका निर्यात होता रहा।मार्च के तीसरे हफ़्ते तक कहीं कोई हड़बड़ी नहीं थी, हवाई सेवा चल रही थी, बड़ी भीड़ वाले आयोजन हो रहे थे, धार्मिक स्थल खुले हुए थे, संसद-विधानसभा में कार्यवाहियाँ सामान्य रूप से चल रही थीं।
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