विवाद की जड़
बता दें कि फ्रांस की राजधानी पेरिस के एक उपनगर में धर्म पढ़ा रहे एक शिक्षक ने कक्षा में अपने छात्रों को पैगंबर मुहम्मद का वह कार्टून दिखा दिया, जिसे कार्टून पत्रिका शार्ली एब्दो ने 2015 में प्रकाशित किया था और उसके बाद इसलामी उग्रपंथियों ने पत्रिका के दफ़्तर में घुस कर 11 लोगों को मार डाला था।मामला क्या है?
ताजा विवाद यह है कि तुर्की, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब समेत कई देशों ने फ्रांस के उत्पादों के बहिष्कार की अपील कर दी है। इसके अलावा तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब अर्दोवान ने मैक्रों पर निजी हमला करते हुए उन्हें 'मानसिक रोग के इलाज की' सलाह तक दे डाली है।एक प्रकार से इस मामले में दुनिया राजनीतिक रूप से दो ख़ेमों ईसाईयत बनाम इसलाम में बँटती नज़र आ रही है।
क्या कहना है भारत का?
ऐसे में भारत के विदेश मंत्रालय के बयान के अपने अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। भारत ने अपने बयान में कहा है, '“
हम फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैन्युएल मैक्रों पर निजी हमले की निंदा ज़ोरदार शब्दों में करते हैं, यह अंतरराष्ट्रीय विमर्श के मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन है। हम उस क्रूर हमले की भी निंदा करते हैं जिसमें एक फ्रांसीसी शिक्षक की नृशंस हत्या कर दी गई है, जिससे पूरी दुनिया हिल गई। हम उनके परिवार और फ्रांस की जनता के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं।'
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के बयान का एक अंश
क्या करे भारत?
सवाल यह है कि अगर यह मुद्दा और तूल पकड़ता है और मुसलिम देशों व यूरोपीय देशों के बीच इस मुद्दे पर विवाद बढ़ता है, तो भारत क्या करे।मुसलिम देशों के साथ भारत के मधुर संबंध रहे हैं, ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इसलामिक को-ऑपरेशन ने कश्मीर के मुद्दे पर भारत का समर्थन कई बार किया है, ईरान ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के पक्ष में मतदान तक किया है।
भावनात्मक मुद्दा
इन देशों के लिए पैगंबर का कार्टून दिखाना भावनात्मक मुद्दा है, यह धार्मिक पहचान का मामला भी है। यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है, जिस पर वे किसी तरह का समझौता नहीं कर सकते। सवाल है कि इंडोनेशिया के बाद सबसे बड़ी मुसलिम आबादी वाला देश भारत मुसलमानों की इस संवेदनशीलता की उपेक्षा करने का जोखिम उठाना चाहेगा क्या?अंतरराष्ट्रीय कूटनीति
दूसरा कारण कूटनीतिक है। तुर्की ने पाकिस्तान के साथ मिल कर फ्रांस के ख़िलाफ़ माहौल बनाया है, मुसलिम जगत की राजनीति के कारण सऊदी अरब को भी उससे जुड़ना पड़ा है। इसी वजह से ईरान भी इसमें जुड़ा, हालांकि वह सऊदी अरब के बिल्कुल उलट ध्रुव पर है। तुर्की इसलामी जगत का नेतृत्व सऊदी अरब से छीनने की कोशिश में जिस तरह पाकिस्तान के अलावा इंडोनेशिया और मलेशिया को भी लेकर चल रहा है, उसी वजह से उसने कश्मीर नीति पर बेहद कड़ा रुख अपनाया है।कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने के अलावा सीएए और एनआरसी के मुद्दों पर उसने भारत का बहुत ही कड़ा विरोध किया था। भारत ने इसका जवाब इस तरह दिया था कि ऐतिहासिक रूप से तुर्की के विरोधी रहे अर्मीनिया से रिश्ते बेहतर करना शुरू कर दिया था।
अपनी राय बतायें