क्या फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म पढ़ना ग़ुनाह है? क्या किसी की भावनाएँ आहत होंगी तो कबीर की रचनाएँ और रामायण के दोहे पढ़ने पर भी पाबंदी लगा दी जाएगी? क्या महाभारत को पढ़ने के लिए भी समय और जगह ठीक होनी चाहिए? यदि ऐसा है तो फिर ऐसे समाज-देश को दकियानूसी सोच में जकड़ा हुआ नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? जिन फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्मों को पढ़कर पीढ़ी दर पीढ़ी पली-बढ़ी है, जो कालजयी रचनाएँ हैं, क्या उन्हें समय और जगह की पाबंदी में कैद किया जाना चाहिए?
क्या फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म पढ़ना भी गुनाह है?
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- 16 Mar, 2020
नागरिकता क़ानून के विरोध के दौरान जिस फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म को लेकर आईआईटी कानपुर में एक कमेटी तक बना दी गई थी उसकी रिपोर्ट अब आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि फ़ैज़ की नज़्म पढ़ने का वह समय और जगह ठीक नहीं थी।

दरअसल, नागरिकता क़ानून के विरोध के दौरान जिस फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म को लेकर हंगामा मचा था और आईआईटी कानपुर में एक कमेटी तक बना दी गई थी उसकी रिपोर्ट अब आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि फ़ैज़ की नज़्म पढ़ने का वह समय और जगह ठीक नहीं थी। कमेटी ने इस पर साफ़ नहीं कहा कि फ़ैज़ की नज़्म धार्मिक भावनाएँ आहत करने वाली हैं या नहीं, जबकि शिकायत ही इसी आधार पर की गई थी। तो क्या आईआईटी कानपुर ने रिपोर्ट देने में बैलेंस बनाने की कोशिश की है जिससे उसकी कमेटी गठित करने के अपने निर्णय को भी सही साबित किया जा सके और बुद्धिजीवी वर्ग की उन आलोचनाओं से भी बचा जा सके जो जाँच बिठाने के उसके फ़ैसले की की गई थी। तब फ़ैज़ की नज़्म पर जाँच बिठाने के आईआईटी कानपुर के निर्णय को लोगों ने अतार्किक और शर्मनाक बताया था।