सरकारी बैंकों ने बीते चार साल में जितनी रक़म के डूबे हुए कर्ज़ों की उगाही की, उसका सात गुणा ज़्यादा पैसा उसे बट्टे खाते में डाल देना पड़ा। सरकार ने ख़राब कर्ज़ के बोझ तले डूबती बैंकिंग व्यवस्था को उबारने के लिए कई उपाय किए हैं। पर उसके लिए उसे कठोर फ़ैसले लेने होेंगे। बदतर हो रही आर्थिक स्थिति के दौर में यह बेहद मुश्किल होगा। 

भारतीय रिज़र्व बैंक के मुताबिक़, साल 2014-2018 के दौरान सरकारी बैंकों ने 3,16,500 करोड़ रुपए बट्टे खाते में डाल दिया। पर इस दौरान उसे महज़ 44,900 करोड़ रुपए के डूबे हुए कर्ज़ वापस मिले। 

क्यों डालते हैं पैसे बट्टे ख़ाते में?

कर्ज़ की उगाही न होने की स्थिति में भी वह पैसा बैंक के ख़ाते में रहता है, प्रबंधन को यह बताना होता है कि उसने जो पैसे दे रखे हैं, उसका क्या हुआ। इसके अलावा बैंक को उस पर कर भी चुकाना होता है। 

बैंक इससे बचने के लिए उस कर्ज़ को ‘राइट ऑफ़’ कर देते हैं यानी बट्टे ख़ाते में डाल देते हैं। इसका मतलब यह है कि वह पैसा उसके अकाउंट से बाहर कर दिया जाता है। इससे यह होता है कि बैंक की बैलंस शीट दुरुस्त हो जाती है, उसे ज़्यादा फ़ायदा होता है, कर नहीं चुकाना पड़ता है।

पीआईबी ने अगस्त में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर तफ़सील से बताया कि सरकारी बैंकों ने कितने पैसे के कर्ज़ को बट्टे खाते में डाल दिया।