आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई. एस जगनमोहन रेड्डी ने अगले साल अप्रैल महीने में बनने वाले मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना पर गंभीर आरोप लगाए हैं। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे को लिखी चिट्ठी में मोटे तौर पर आरोप लगाया गया है कि विरोधी दल के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू और जस्टिस रमन्ना के बीच संबंध है। उनका यह भी आरोप है कि नायडू ने जस्टिस रमन्ना के परिवार को फायदा पहुँचाया ताकि वह बदले में हाईकोर्ट से उनकी सरकार के कामकाज में अड़ंगा लगाएँ। मुख्य न्यायाधीश बोबडे को लिखी चिट्ठी में रेड्डी ने यह भी कहा है कि जस्टिस रमन्ना के परिवार ने उस अमरावती में ज़मीन खरीदी जिसे चंद्रबाबू नायडू ने राज्य की राजधानी के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी।
शिकायत वाली इस चिट्ठी के बारे में रोचक बात यह है कि जगनमोहन रेड्डी के मुख्य सलाहकार अजेय कोल्लम ने शनिवार को हैदराबाद में यह चिट्ठी सार्वजनिक कर दी है। अब सवाल ये उठता है कि जगन के आरोपों में कितना दम है?
अमरावती में ज़मीन से जुड़ी जो शिकायतें रेड्डी ने की हैं वे ठोस नहीं जान पड़ती हैं। 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने एक रिपोर्ट में कहा है कि दस्तावेज़ों की पड़ताल करने से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट के जज की बेटियों ने अमरावती में ज़मीन एक स्थानीय प्रॉपर्टी डीलर से उसी तरह से खरीदी थीं जैसे हज़ारों अन्य लोगों ने खरीदी थीं। यह वह समय था जब आँध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना राज्य बनाने की बात चल रही थी और हैदराबाद के तेलंगाना में जाने की संभावनाओं के बीच राजधानी के रूप में अमरावती को विकसित करने की चर्चाएँ आम थीं।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, अमरावती को नयी राजधानी विकसित करने की चर्चाएँ चंद्रबाबू नायडू सरकार के गठन से पहले से ही चलने लगी थीं। फ़रवरी 2014 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री पनाबका लक्ष्मी ने आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के रूप में इसके विभाजन के बाद गुंटूर-विजयवाड़ा क्षेत्र में नयी राजधानी के रूप में अमरावती की घोषणा की थी। ऐसे में जस्टिस रमन्ना और उनकी बेटियों को टीडीपी सरकार से किसी विशेष जानकारी की ज़रूरत नहीं थी कि वहाँ भूमि में निवेश की बेहतर संभावना है। उन्होंने जून 2015 में ज़मीन खरीदी थी।
दूसरा सवाल है कि फास्ट ट्रैक ट्रायल का मामला, जिससे जगन भयभीत लग रहे हैं, वो जस्टिस रमन्ना के पास कैसे पहुँचा?
प्रभावशाली और साधन संपन्न राजनेताओं के ख़िलाफ़ लंबित चल रहे मामलों की सुनवाई में तेज़ी लाने का फ़ैसला, 4 दिसंबर, 2018 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने किया था। उनकी सेवानिवृत्ति के बाद, यह मुख्य न्यायाधीश बोबडे को सौंपा गया। हालाँकि, इस मामले से जुड़े पक्षकारों के लिए जब उनकी बेटियाँ पेश हुईं तो उन्होंने 2 मार्च को जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच को यह मामला सौंप दिया। ज़ाहिर है ये महज़ एक इत्तफ़ाक़ है।
जस्टिस रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने 10 सितंबर को केंद्र से पूछा कि वह दोषी नौकरशाहों की सरकारी नौकरी पर रोक लगाने की तरह ही दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध क्यों न लगा दे। बेंच ने मामले पर आगे की सुनवाई के लिए 16 सितंबर की तारीख़ तय की। 16 सितंबर को इसने सभी हाई कोर्ट से कहा कि वे ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए योजना बनाएँ। 6 अक्टूबर को बेंच ने सभी हाई कोर्ट से फास्ट ट्रैक ट्रायल पर ठोस आदेश की व्यवस्था और इससे जुड़ी अतिरिक्त जानकारी माँगी।
अब आते हैं तीसरे आरोप पर। आठ पेज की चिट्ठी में जगनमोहन रेड्डी ने लिखा है कि जस्टिस रमन्ना आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट की बैठकों और रोस्टर को प्रभावित कर रहे हैं। वे अमरावती भूमि घोटाले से जुड़े मामले को रोस्टर में कुछ चुनिंदा जजों को ही रखवा रहे हैं और इस तरह न्याय प्रशासन को प्रभावित कर रहे हैं। रेड्डी का यह आरोप कितना सही है, यह कहना मुश्किल है। लेकिन यह तो तय है कि सुप्रीम कोर्ट के जज का किसी हाई कोर्ट पर इतनी पकड़ मज़बूत होना बहुत मुश्किल है क्योंकि सभी जजों की नियुक्ति अलग-अलग समय पर होती है। नियुक्ति में भी कॉलेजियम का फ़ैसला अहम होता है।
बहरहाल, जगनमोहन रेड्डी की यह शिकायत मुख्य न्यायाधीश के पास है और अब वह इस पर क्या फ़ैसला लेते हैं, उससे तय होगा कि उनकी शिकायतों में कितना दम है।
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