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तिरुपति मंदिर में सिर्फ हिंदू: क्या हिंदूवादी हो गए चंद्रबाबू नायडू?

किसी ज़माने में देश के सबसे अधिक धर्मनिरपेक्ष माने जाने चंद्रबाबू नायडू क्या हिन्दूवादी हो गये हैं? भाजपा के सहयोगी होने का उन पर इतना असर तारी हो गया है? 
मामला जुड़ा है तिरुमला तिरुपति मंदिर से। यह मंदिर दुनिया के सबसे बड़े मंदिरों में एक है।यहाँ लगभग हर रोज़ पचास हज़ार से अधिक लोग दर्शन के लिए आते हैं। सैकड़ों लोग इस मंदिर की देखभाल करते हैं। इसमें समाज के हर हिस्से के लोग शामिल होते हैं। इन कर्मचारियों में हिन्दू धर्म के अतिरिक्त धर्मों के लोग भी शामिल हैं। 
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आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की एक नई घोषणा के अनुसार अब इस मंदिर में केवल हिन्दू ही काम करेंगे।सीएम नायडू ने स्पष्ट रूप से कहा, "केवल हिंदू धर्म को मानने वालों को ही तिरुमला मंदिर में रोजगार दिया जाएगा। यदि अन्य धर्मों के लोग पहले से वहाँ कार्यरत हैं, तो उन्हें बिना किसी विवाद के अन्य स्थानों पर स्थानांतरित किया जाएगा।"
उनके इस बयान के बाद तिरुमला मंदिर से जुड़े प्रशासनिक फैसलों को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। लोग चंद्रबाबू नायडू की धर्मनिरपेक्षता पर तो सवाल उठा ही रहे हैं, मंदिर की व्यवस्था पर भी बहस छिड़ गई है। इस घटना की शुरुआत तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के ऐसे फैसले से होती है। तिरुमला मंदिर की देखभाल करने वाली इस समिति ने हाल ही में 18 कर्मचारियों पर कार्रवाई की थी। इन कर्मचारियों पर आरोप था कि वे ईसाई धर्म का पालन कर रहे थे, जबकि उन्होंने हिंदू धर्म और परंपराओं का पालन करने की शपथ ली थी।
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ये कर्मचारी टीटीडी के विभिन्न संस्थानों में व्याख्याता, हॉस्टल कर्मचारी, कार्यालय सहायक, अभियंता, सहायक, नर्स और अन्य चिकित्सा कर्मी के पदों पर कार्यरत थे। 
टीटीडी प्रशासन ने एक अजीब रवैया अपनाते हुए लग धर्मों के इन कर्मचारियों को धार्मिक आयोजनों में भाग लेने से रोकने का आदेश भी जारी किया था। नवंबर 2024 में आयोजित टीटीडी ट्रस्ट बोर्ड की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मंदिर प्रशासन में कार्यरत गैर-हिंदू कर्मचारियों को राज्य सरकार को सौंप दिया जाएगा। 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक तिरुमला मंदिर के भिन्न प्रशासनिक में पदों पर 44 गैर-हिंदू कर्मचारी कार्यरत थे। अब इन कर्मचारियों को स्थानांतरित करने की बात की जा रही है। 
क्या बदल गए नायडू? चंद्रबाबू नायडू की घोषणाएं यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने एक और घोषणा की। इसके मुताबिक देशभर के सभी राज्यों की राजधानियों में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के मंदिरों का निर्माण किया जाएगा। गौरतलब है कि इस कदम को हिंदू संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है।
चंद्रबाबू नायडू की इन नई तरह की घोषणाओं में मुमताज़ होटल के बनने के फैसले को रद्द किया जाना भी शामिल रहा। गौरतलब है कि तिरुमला मंदिर के पास प्रस्तावित "मुमताज़ होटल" के निर्माण को लेकर काफी विवाद चल रहा था। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने इस होटल के निर्माण के लिए ज़मीन आवंटित की थी।

इस पर तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ने नवंबर 2024 मेंएक बैठक में प्रस्ताव पारित कर कहा कि मुमताज होटल का प्रस्ताव काफी आपत्तिजनक है।टीटीडी के अध्यक्ष बी.आर. नायडू ने कहा,"सरकार की जमीन को पहले पर्यटन विभाग को 'देवलोकमपरियोजना' के तहत विकसित करने के लिए दिया गया था। लेकिन पिछली सरकार ने इसे बदलकर मुमताज होटल को दे दिया। यह मंदिर के बहुत करीब है,इसलिए हिंदू समुदाय के लिए यह अत्यधिक आपत्तिजनक है।"
तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ने सरकार से अनुरोध किया था कि अलीपिरी क्षेत्र में होटल के लिए आवंटित भूमि को निरस्त किया जाए, क्योंकि यह मंदिर के बहुत करीब था।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री नायडू ने स्पष्ट किया कि सरकार ने अब इस होटल के निर्माण की अनुमति रद्द करने का फैसला लिया है। यह होटल 35.32 एकड़ जमीन पर बनने वाला था, लेकिन सरकार का कहना है कि तिरुमला की सात पवित्र पहाड़ियों के आसपास किसी भी तरह का व्यावसायीकरण नहीं होना चाहिए।
चंद्रबाबू नायडू ने कहा, "पहले इस क्षेत्र में मुमताज होटल के निर्माण की अनुमति दी गई थी। लेकिन अब सरकार ने फैसला किया है कि इस अनुमति को रद्द कर दिया जाए। सात पवित्र पहाड़ियों के पास किसी भी व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं होगी।"

नायडू सरकार फैसलों पर सवाल

चंद्रबाबू नायडू के इन फैसलों के बाद कई सवाल उठने लगे हैं। क्या मंदिरों में केवल हिंदू कर्मचारियों की नियुक्ति का यह निर्णय धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देगा? क्या यह फैसला सरकारी संस्थानों और धार्मिक स्थलों के प्रशासन के लिए कोई नई नीति स्थापित करेगा?

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इसके अलावा, तिरुमला मंदिर के पास मुमताज़ होटल निर्माण पर रोक लगाने के फैसले को भी राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। यहाँ एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या सरकार व्यवसायीकरण की आड़ में धार्मिक भावनाओं पर अधिक बल दे रही है? 
रिपोर्टः अणुशक्ति सिंह
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क़मर वहीद नक़वी
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