इस सवाल के जवाब से पहले यह जान लें कि केंद्र सरकार ने फाइजर और मॉडर्ना कंपनियों के बारे में क्या कहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को जो सचाई है उसे स्वीकार किया। मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा, 'चाहे फाइजर हो या मॉडर्न, हम केंद्रीय स्तर पर समन्वय करते रहे हैं… फाइजर और मॉडर्न दोनों की ज़्यादातर समय ऑर्डर बुक पहले से ही भरी हुई है। यह उनके सरप्लस यानी अधिशेष पर निर्भर करता है कि वे भारत को कितना दे सकते हैं। वे भारत सरकार से संपर्क करेंगे और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि उनकी खुराक की आपूर्ति राज्य स्तर पर की जा सके।'
सरकार की यह प्रतिक्रिया सोमवार शाम को तब आई थी जब सुबह ही अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि जब राज्य सरकार ने फाइजर और मॉडर्ना से संपर्क किया तो इन कंपनियों ने साफ़ तौर पर कह दिया कि वे केंद्र सरकार से सौदा करेंगी, राज्यों से नहीं।
दरअसल, जिस फाइजर की वैक्सीन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं वह देश में सबसे पहली कंपनी थी जिसने कोरोना वैक्सीन के आपात इस्तेमाल के लिए मंजूरी मांगी थी। फिर ऐसी नौबत क्यों आई?
इसने दिसंबर महीने की शुरुआत में ही ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीजीसीआई के सामने आवेदन दिया था। तब उसे ब्रिटेन और बहरीन में टीकाकरण के लिए मंजूरी मिल भी चुकी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी सबसे पहले फाइजर को ही मंजूरी दी थी। इसकी वैक्सीन संक्रमण को रोकने में 95% प्रभावी पाई गई है।
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हालाँकि, कई प्रयासों के बाद जब इसे मंजूरी नहीं मिली तो फाइजर ने वैक्सीन की आपात मंजूरी के लिए दिया गया अपना आवेदन आख़िरकार 5 फ़रवरी को वापस ले लिया। तब कंपनी ने कहा था कि दो महीने तक अधिकारियों से मंजूरी के लिए इंतज़ार करने के बाद इसने अपने आवेदन को वापस लेने का फ़ैसला लिया है। आख़िरी बार 3 फ़रवरी को विशेषज्ञों की समिति के साथ बैठक में भी बात नहीं बनी। अधिकारियों ने फ़ाइजर से और अधिक जानकारी मांगी जो कंपनी नहीं दे पाई।
फाइजर ने भारत में टीके का ट्रायल नहीं किया था। भारत में आवेदन करने से पहले ही फ़ाइज़र को इंग्लैंड में आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी मिल चुकी थी और इसका टीका भी लगाया जाने लगा था। इसी आधार पर फ़ाइज़र ने भारत में क्लिनिकल ट्रायल से छूट देने के साथ डीसीजीआई में आवेदन किया था। न्यू ड्रग्स एंड क्लिनिकल ट्रायल नियम, 2019 के मुताबिक़ कोई कंपनी इस तरह की छूट माँग सकती है। ऐसा तभी हो सकता है जब उस वैक्सीन को दूसरे किसी देश में मंजूरी दी गई हो और इसे वहाँ से खरीदा जा रहा हो।
विशेषज्ञ पैनल ने 1 जनवरी को बैठक में सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन कोविशील्ड को आपात मंजूरी दे दी थी। एक दिन बाद दो जनवरी को भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को भी मंजूरी दे दी गई। हालाँकि फ़ाइजर को तब भी मंजूरी नहीं दी गई और अतिरिक्त आँकड़े माँगे गए थे।
लेकिन देश में अप्रैल महीने में जब कोरोना की दूसरी लहर आई, स्थिति बेकाबू होने लगी और वैक्सीन नीति पर मोदी सरकार की तीखी आलोचना होने लगी तो सरकार ने कोरोना टीके की नीति में ढील दी। 13 अप्रैल को सरकार ने घोषणा की कि यह उन टीकों के लिए देश में चरण 2 और 3 के क्लिनिकल ट्रायल की शर्त को नहीं लगाएगी जिन्हें अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और जापानी नियामकों द्वारा मंजूरी दे दी गई है और डब्ल्यूएचओ द्वारा सूचीबद्ध किया गया है।
हालाँकि इन नियमों में ढील देने के क़रीब एक महीना होने को आया लेकिन अभी भी फाइजर और मॉडर्ना जैसी कंपनियों के साथ भारत का सौदा नहीं हो पाया है। हालाँकि रूस की स्पुतनिक वी टीके के लिए बात बनी है, लेकिन लगता नहीं है कि इससे स्थिति काबू में होगी। जिस तरह से देश में वैक्सीन की कमी है और टीकाकरण केंद्र बंद होते जा रहे हैं उससे सरकार में भी बेचैनी ज़रूर होगी।
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