जिस हर्ड इम्युनिटी को कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने का एक तरीक़ा बताया जा रहा था उस पर केंद्र सरकार का कहना है कि भारत जैसे देश में यह विकल्प नहीं हो सकता है। यानी देश में हर्ड इम्युनिटी के भरोसे नहीं रहा जा सकता है और वैक्सीन से ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। हर्ड इम्युनिटी का मतलब है कि जब अधिकतर लोग कोरोना से संक्रमित हो जाएँगे तो उन लोगों के शरीर में इस वायरस से लड़ने वाली इम्युनिटी यानी एंटीबॉडी विकसित हो जाएगी और फिर लोगों में संक्रमण नहीं फैल पाएगा। कई शोध में ये दावे किए जाते रहे हैं।
लेकिन अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पर स्थिति साफ़ की है। प्रेस कॉन्फ़्रेंस में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने गुरुवार को कहा, 'हर्ड इम्युनिटी एक बीमारी से अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा देती है। यह एक आबादी को बीमारी से बचाता है। लेकिन यह तब विकसित होता है जब एक टीका विकसित किया जाता है या जब एक आबादी पहले से ही संक्रमित हो जाती है और इससे उबर चुकी होती है। भारत में हर्ड इम्युनिटी एक विकल्प नहीं है। यह केवल एक टीका विकसित होने के बाद हो सकता है।'
अप्रैल महीने में भारत में हर्ड इम्युनिटी की बात की गई थी। अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और दिल्ली की एक संस्था के शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया था कि भारत को कोरोना वायरस से मुक्त करने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा यह है कि इसकी आधी से ज़्यादा आबादी को कोरोना वायरस से संक्रमित होने दिया जाए।
शोधकर्ताओं ने कहा था कि कोरोना वायरस की कोई वैक्सीन यानी टीका अभी बना नहीं है, इसलिए सुझाव है कि यदि एक नियंत्रित तरीक़े से अगले सात महीनों में भारत के 60% लोगों को इस बीमारी से ग्रस्त होने दिया जाए तो नवंबर तक भारत में यह स्थिति आ जाएगी कि यह वायरस किसी नए व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकेगा क्योंकि इतने सारे लोगों के संक्रमित हो जाने के बाद वायरस को ऐसे असंक्रमित लोग नहीं मिलेंगे जिनपर वह हमला कर सके और अपनी संख्या बढ़ा सके।
हालाँकि हाल के दिनों में हर्ड इम्युनिटी पर तब सवाल उठने लगे हैं जब एक बार कोरोना संक्रमण ठीक होने के बाद भी दोबारा फिर से संक्रमण होने के मामले आने लगे। अब यदि संक्रमण से ठीक हुए व्यक्ति की इम्युनिटी यानी सुरक्षा कवच को यह वायरस भेद सकता है तो सवाल उठेंगे ही।
दरअसल हाल में पता चला है कि कोरोना से ठीक हुए मरीज़ों में धीरे-धीरे एँटी बॉडी कमज़ोर पड़ने लगती है। जून में प्रकाशित एक शोध में पता चला कि बिना लक्षण वाले कोरोना संक्रमित लोगों में से 40 फ़ीसदी लोगों में तीन महीने के अंदर एंटीबॉडी इतनी कमज़ोर हो गई कि उसे डिटेक्ट करना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में संभव है कि कोरोना संक्रमण फिर से हो जाए।
वैसे, इसका समाधान वैक्सीन से हो सकता है, लेकिन अब तक वैक्सीन के बारे में जो रिपोर्टें आई हैं उसमें यह साफ़ नहीं है कि ये वैक्सीन कितने समय तक लोगों को कोरोना से रक्षा करेंगी। ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन के पहले चरण में सफल होने के दावों में भी इम्युनिटी की अवधि को लेकर कुछ साफ़ नहीं कहा गया है। वैक्सीन बनाने में लगी कई कंपनियाँ इस पर ट्रायल कर रही हैं कि आख़िर कितने समय तक यह वैक्सीन वायरस से सुरक्षा प्रदान करेगी।
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