सुप्रीम कोर्ट के द्वारा हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक एक्ट, 2014 को वैध ठहराए जाने के बाद से ही हरियाणा और पंजाब में माहौल बेहद गर्म है। कई राज्यों के गुरुद्वारों का प्रबंधन देखने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी ने इस कानून की वैधता को चुनौती दी थी। यह कानून साल 2014 में हरियाणा की तत्कालीन भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने बनाया था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी ने इसका स्वागत किया है जबकि एसजीपीसी ने इसे सिख धर्म पर हमला बताया है।
हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष बलजीत सिंह दादूवाल का कहना है कि कोर्ट के फैसले के बाद हरियाणा के सभी 52 गुरुद्वारों की देखरेख और प्रबंधन का काम अब हरियाणा की कमेटी को मिल सकेगा। बताना होगा कि हरियाणा के सिख नेताओं के द्वारा उनके राज्य के गुरूद्वारों की अलग प्रबंधक कमेटी बनाए जाने की मांग वर्षों से लंबित है। अदालत के फैसले के बाद राज्य की मनोहर लाल खट्टर सरकार इस मामले में आगे बढ़ रही है।
क्या है विवाद?
हरियाणा के सिख नेता चाहते हैं कि उनके राज्य के गुरुद्वारों के प्रबंधन और देखरेख के लिए अलग कमेटी हो जबकि एसजीपीसी कहती है कि ऐसा नहीं होना चाहिए।
हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष बलजीत सिंह दादूवाल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हरियाणा में कुल 52 गुरुद्वारे हैं और इनसे एसजीपीसी को 150 करोड़ रुपए मिलते हैं। उन्होंने कहा कि 52 में से 48 गुरुद्वारों का प्रबंधन एसजीपीसी के हाथ में है जबकि सिर्फ चार गुरुद्वारों का प्रबंधन हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के पास है। कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने राज्य के सभी गुरुद्वारों को हरियाणा की गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी को सौंपने की मांग हरियाणा सरकार से की है।
बता दें कि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के गुरुद्वारों की देखरेख और प्रशासन का काम एसजीपीसी के पास है और यह सभी गुरुद्वारे सिख गुरुद्वारा एक्ट, 1925 के मुताबिक चलते हैं। साल 2014 में जब तक हुड्डा सरकार ने नया एक्ट नहीं बनाया था तब तक हरियाणा के सभी गुरुद्वारों पर सिख गुरुद्वारा एक्ट, 1925 ही लागू होता था।
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हुड्डा सरकार के द्वारा बनाए गए इस कानून में कहा गया था कि हरियाणा के सभी गुरुद्वारों पर केवल राज्य के सिखों का ही नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन एसजीपीसी के कुछ सदस्यों ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और तर्क दिया कि यह पंजाब पुनर्गठन एक्ट, 1966 का उल्लंघन है और सिखों को बांटने की कोशिश है। उनका कहना था कि हरियाणा की सरकार सिखों के धार्मिक मामलों में बेवजह दखल दे रही है और इस तरह का कोई भी कानून बनाने का हक सिर्फ देश की संसद को है।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में तमाम सुनवाईयों के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि केवल संसद ही ऐसा कोई कानून बना सकती है जबकि 2014 के बाद हरियाणा की सत्ता में आई बीजेपी सरकार ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार ऐसा कानून बनाने में सक्षम है। बताना होगा कि 1966 में हरियाणा पंजाब से अलग हुआ था।
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रोष मार्च निकाला
इस मामले में विवाद बढ़ने के बाद एसजीपीसी के सदस्यों ने गुरुवार को अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर से लेकर अमृतसर के उपायुक्त के दफ्तर तक रोष मार्च निकाला। उन्होंने उपायुक्त को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की गई है कि सिखों के मामलों में किसी तरह का दखल ना दिया जाए। मार्च में एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी भी शामिल रहे। मार्च में शामिल सिखों ने काली पगड़ी पहन कर विरोध जताया और सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को लेकर नारेबाजी की।
इस दौरान एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण एसजीपीसी टूट जाएगी। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार एसजीपीसी की इस मांग पर ध्यान नहीं देती है तो भविष्य में बड़ा आंदोलन किया जाएगा। इस मामले में सिखों के अन्य संस्थानों श्री केशगढ़ साहिब, श्री आनंदपुर साहिब, तख्त श्री दमदमा साहिब, तलवंडी साबो और अंबाला आदि जगहों पर भी प्रदर्शन किया गया है। एसजीपीसी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दायर करने वाली है।
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बादल ने बोला हमला
इस मामले में पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने न्यूज़ 18 से बातचीत में कहा कि इस काम में सबसे बड़ा हाथ कांग्रेस का है और उसके बाद पंजाब में बनी आम आदमी पार्टी की सरकार के वकील ने भी हरियाणा के हक में फैसला कर दिया और बीजेपी ने भी उसका समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह तीनों ही राजनीतिक दल सिख पंथ के खिलाफ हैं।
जबकि हरियाणा की गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष बलजीत सिंह दादूवाल का कहना है कि इस तरह के जो भी प्रदर्शन हो रहे हैं, वह राजनीति से प्रेरित हैं और ऐसा करके पंजाब में एसजीपीसी के चुनाव के लिए अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की जा रही है।
यहां पर बड़ा सवाल यह है कि क्या हरियाणा सरकार के द्वारा बनाए गए इस एक्ट के जरिए सिख पंथ के धार्मिक मामलों में किसी तरह की दखलंदाजी की गई है क्योंकि ऐसा आरोप एसजीपीसी ने लगाया है।
इस मामले में एसजीपीसी और हरियाणा की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी आमने-सामने हैं। हरियाणा में बीजेपी की अगुवाई वाली मनोहर लाल खट्टर सरकार जिस तरह अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मामले में आगे बढ़ रही है निश्चित रूप से इससे यह टकराव और बढ़ेगा।
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