कर्नाटक के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया, उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, और कर्नाटक के कई अन्य कांग्रेस मंत्रियों, विधायकों और एमएलसी ने केंद्र के "कर्नाटक के आर्थिक उत्पीड़न" के विरोध में बुधवार, 7 फरवरी को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया। कर्नाटक ने टैक्सों के ट्रांसफर में कर्नाटक की कम हिस्सेदारी, जीएसटी मुआवजा प्रदान करने और ढांचागत परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी और वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित विशेष अनुदान को खारिज करने सहित अन्य के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को दोषी ठहराया है।
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दक्षिण भारत का कर्नाटक अकेला राज्य नहीं है जो ऐसा आरोप लगा रहा है। इसी तरह के आरोप, केरल, तमिलनाडु भी लगा चुके हैं। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी भी इस मुद्दे पर अक्सर नाराज रहती हैं। कई कांग्रेस शासित राज्य केंद्र पर ऐसा आरोप लगा चुके हैं। बिहार के सीएम नीतीश कुमार जब महागठबंधन में थे तो वो भी बिहार के साथ केंद्र के सौतेले व्यवहार का मुद्दा उठाते थे। यानी गैर भाजपा शासित राज्यों की शिकायतें ज्यादा हैं।
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने बुधवार को जंतर मंतर पर मीडिया से कहा, 'चलो दिल्ली' नामक विरोध प्रदर्शन "सिर्फ एक राजनीतिक आंदोलन नहीं है, बल्कि कन्नडिगाओं की पहचान पर जानबूझकर और व्यवस्थित हमले के खिलाफ एक सामाजिक आंदोलन भी है।"
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आरोप है कि केंद्र सरकार के सौतेले व्यवहार के कारण 2017-18 से कर्नाटक को 1,87,867 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यह नुकसान रेकॉर्ड पर है। जुबानी नहीं है।
डीके शिवकुमार ने कहा "केंद्रीय बजट का आकार दोगुना हो गया है, लोगों को लगता होगा कि हमारी हिस्सेदारी उसमें उसी अनुपात में बढ़ी होगी। लेकिन उसके विपरीत, हमारा हिस्सा आधे से भी कम हो गया है। यह गिरावट सिर्फ कागजों पर संख्या नहीं है, यह कर्नाटक के लोगों के खिलाफ बढ़ता अन्याय है। कर्नाटक के लिए 5,495 करोड़ रुपये के विशेष अनुदान की 15वें वित्त आयोग की सिफारिश को "अनौपचारिक ढंग से खारिज कर दिया गया। "उसी 15वें वित्त आयोग ने बेंगलुरु पेरिफेरल रिंग रोड के लिए 3,000 करोड़ रुपये और बेंगलुरु में झीलों के विकास के लिए 3,000 करोड़ रुपये की सिफारिश भी की थी। इस सिफारिश को भी खारिज कर दिया गया।"
सिद्धारमैया का कहना है- 14वें वित्त आयोग (2015-2020) के तहत, कर्नाटक को टैक्स हिस्सेदारी का 4.71 फीसदी प्राप्त हुआ, जिसे 15वें वित्त आयोग (2020-2025) ने घटाकर 3.64 फीसदी कर दिया, जिसमें 1.07 प्रतिशत की कमी है।
दो बड़े मुद्दे
टैक्स ट्रांसफर से अर्थ है केंद्र द्वारा राज्यों को केंद्रीय करों और कर्तव्यों की शुद्ध आय के वितरण से है, जो उन्हें विकास, कल्याण और प्राथमिकता क्षेत्र की परियोजनाओं और योजनाओं पर खर्च करने में मदद करता है। वर्तमान में, 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार, केंद्र के विभाज्य टैक्स पूल का 41 प्रतिशत 2021-22 से 2025-26 की पांच साल की अवधि को कवर करते हुए सालाना 14 किश्तों में राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है।
उत्तर बनाम दक्षिण भारत
2020 से पहले भी दक्षिणी राज्यों ने चिंताएं उठाई थीं। जब 15वें वित्त आयोग ने केंद्र सरकार से राज्यों को करों के ट्रांसफर का निर्णय लेने के लिए 2011 की जनसंख्या जनगणना का उपयोग करते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। जिसमें कहा गया था कि जिन राज्यों ने अपनी आबादी घटाई है, लेकिन उनकी आबादी ज्यादा है तो उन्हें ज्यादा हिस्सा मिलेगा। इस बहाने उत्तर भारत को ज्यादा हिस्सा मिला और संयोग से वहां भाजपा की सरकारें हैं। इस मुद्दे पर दक्षिण भारत के राज्य शुरू से अपनी चिन्ता से अवगत करा रहे हैं।इसका मतलब यह है कि नवीनतम जनगणना के अनुसार किसी राज्य की जनसंख्या जितनी अधिक होगी, उसे अपनी खर्च की जरूरतों के लिए केंद्र सरकार से उतनी ही अधिक धनराशि मिलेगी। इसलिए, भारत में कम आबादी वाले राज्यों को राजस्व के विभाज्य पूल से नुकसान होगा। यहीं पर उत्तर, दक्षिण विभाजन की बहस शुरू होती है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे उत्तर भारतीय राज्य जिनकी आबादी 1971 के बाद से तेजी से बढ़ी है, उन्हें स्वाभाविक रूप से पूर्ववर्ती 15वें वित्त पैनल के बदलाव के कारण धन का अपेक्षाकृत बड़ा हिस्सा मिलता है।
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